आमाल में सबसे बेहतरीन अमल

हजरत इब्ने अब्बास (रजि० ) कहते हैं कि नबी करीम (स०अ‍०व०) से किसी ने पूछा कि बेहतरीन आमाल में से कौन सा अमल अफजल है। आप ने इरशाद फरमाया- ‘‘हाल मरतहल’’। लोगों ने पूछा कि हाल मरतहल क्या चीज है? नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया कि वह साहबे कुरआन हैं जो अव्वल से चले यहां तक कि आखिर तक पहुंचे और आखिर के बाद फिर अव्वल पर पहुंचे जहां ठहरे फिर आगे चल दे।

हाल कहते हैं मंजिल पर आने वाले को और मरतहल कूच करने वाले को। यानी यह कि जब कलाम पाक खत्म हो जाए तो फिर नए सिरे से शुरू कर ले। यह नहीं कि बस अब खत्म हो गया, दोबारा फिर कभी देखा जाएगा। कंजुल आमाल की एक रिवायत में इसकी शरह वारिद हुई कि खत्म करने वाला और साथ ही शुरू करने वाला…. यानी एक कुरआन खत्म करने के बाद साथ ही दूसरा शुरू कर ले। इसी से गालिबन वह आदत माखूज है जो हमारे दयार में रायज है कि खत्मे कुरआन शरीफ के बाद मुफलिहून तक पढ़ा जाता है मगर अब लोग इसी को मुस्तकिल अदब समझते हैं और फिर पूरा करने का एहतेमाम नहीं करते।

हालांकि ऐसा नहीं बल्कि दरअसल दूसरा कुरआन शरीफ शुरू करना बजाहिर मकसूद है जिसको पूरा करना चाहिए। शरह एहया में और अल्लामा सेवती ने इत्तकान में बरिवायत दारमी नकल किया है कि नबी करीम (स०अ०व०) जब ‘‘कुल अयूजूबेरव्विन्नास’’ पढ़ा करते तो सूरा बकरा से मुफलिहून तक साथ ही पढ़ते और इसके बाद खत्म कुरआन की दुआ फरमाते थे।

अबू मूसा अशरी (रजि०) ने नबी करीम (स०अ०व०) से नकल किया है कि कुरआन शरीफ की खबरगीरी किया करो। कसम है उस जात पाक की जिस के कब्जे में मेरी जान है कि कुरआन ए पाक जल्द निकल जाने वाला है सीनो से बनिस्बत ऊंट के अपनी रस्सियों से। (बुखारी)

सईद बिन सलीम (रजि०) नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद नकल करते हैं कि कयामत के दिन अल्लाह तआला के नजदीक कलाम पाक से बढ़कर कोई सिफारिश करने वाला न होगा, न कोई नबी न फरिश्ता वगैरह।

कुरआन पाक का शफीअ और इस दर्जे का शफीअ होना जिसकी शफाअत मकबूल हो और भी कई रिवायत से मालूम होता है। अल्लाह तआला अपने फजल से मेरे और तुम्हारे लिए इसको शफीअ बना दे न कि फरीके मुखालिफ। मुद्दई लाली मसनूआ में बजार की रिवायत से नकल किया है और वजअ का हुक्म भी इस पर नहीं लगाया कि जब आदमी मरता है तो उस के घर के लोग तजहीज व तकफीन में मशगूल होते हैं और उसके सिरहाने निहायत हसीन व जमील सूरत में एक शख्स होता है जब कफन दिया जाता है तो वह शख्स कफन के और सीने के बीच होता है।

जब दफन करने के बाद लोग लौटते हैं और मुंकिर नकीर आते हैं तो वह उस शख्स को अलग करना चाहते हैं कि सवाल यकसूई में करें। मगर यह कहता है कि यह मेरा साथी है मेरा दोस्त है मैं किसी हाल में इसको तनहा नहीं छोड़ सकता। तुम सवालात के अगर मामूर हो तो अपना काम करो मैं उस वक्त तक इससे अलग नहीं हो सकता जब तक कि मैं इसको जन्नत में दाखिल न करा दूं।

इसके बाद वह अपने साथी की तरफ मुतवज्जो होकर कहता है कि मैं ही वह कुरआने करीम हूं जिसको तू कभी बुलंद आवाज में पढ़ता था और कभी आहिस्ता, तू बेफिक्र रह मुंकिर नकीर के सवालात के बाद तुझे कोई गम नहीं है। इसके बाद जब वह अपने सवालात से फारिग हो जाते हैं तो यह मलाए आला से बिस्तर वगैरह का इंतेजाम करता है जो रेशम का होता है और उसके बीच मुश्क भरा हुआ होता है। अल्लाह तआला अपने फजल से हम सब को इनाम नसीब फरमा दे.. आमीन। (मौलाना मोहम्मद जकरिया)

———————-बशुक्रिया: ज़दीद मरकज़