आरक्षण का आर्थिक आधार, यानी सवर्णों का तुष्टीकरण

सिआसत हिन्दी के लियें इस आर्टिकल को वसीम अकरम त्यागी (सहसंपादक विज़न मुस्लिम टूडे पत्रिका) द्वारा लिखा गया है

गुजरात में नई आरक्षण नीति को जन्म दिया गया है। जिसके तहत आर्थिक रूप से पिछड़े स्वर्ण कैटागिरी को आरक्षण दिया जायेगा। इस नीति की जो शर्तें हैं वे अपने आप में हास्यपद और ऊंची जाति का तुष्टीकरण करने वाली हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान भारतीय संविधान में नहीं है।

संविधान के अनुसार शैक्षणिक व समाजी तौर पर पिछड़े लोग ही आरक्षण पा सकते हैं, मगर उसमें भी जातिय शर्तें हैं। मगर भाजपा ने गुजरात में जो मसौदा तैयार किया है वह संविधान की धज्जियां उड़ाने वाला तो है साथ ही ऊंची जात वालों का तुष्टीकरण कर रहा है।

भाजपा के अनुसार जिस ऊंची जाति वाले परिवार की मासिक आमदनी 50 हजार रूपये से कम होगी उन्हें दस प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा। सवाल यह पैदा होता है कि जिस परिवार की मासिक आमदी 50 हजार रुपये से कम यानी 40 हजार रुपये है क्या उस परिवार को आरक्षण की जरूरत है ? भले ही ऊंची जाति का परिवार आर्थिक रूप से कितना ही पिछड़ा क्यों न हो मगर वह सीना ठोककर खुद को तथाकथित ऊंची जाति का बताता है। हमारा समाज पढ़े लिखे दलित को वह सम्मान नहीं देता जैसा सम्मान किसी अनपढ़ ‘ब्राह्मण’ को देता है।

गुजरात के जिस पटेल समुदाय को आरक्षण देने का मसौदा तैयार किया गया है वह समुदाय गुजरात का सबसे सक्षम, साधन संपन्न समुदाय है। उसके बावजूद अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का गैरसंवैधानिक दांव चला है। दरअस्ल इसकी एक वजह यह भी है कि राज्य में 2017 में विधान सभा चुनाव होना है। भाजपा पटेलों को नाराज करके चुनाव में दांव खेलना नहीं चाहती इसलिये उसका आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का दांव महज एक राजनीतिक तुष्टीकरण है।

हालांकि इससे पहले राजस्थान सरकार ने आर्थिक आधार पर गूर्जरों को आरक्षण दिया था जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। भाजपा भी इसी फिराक में है कि फिलहाल आर्थिक आधार पर पटेलों को दस प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाये और बगैर पटेलों को नाराज किये चुनाव करा लिये जायें। गुजरात में करीब 20 फीसद आबादी पटेल समाज की है. यह समुदाय पिछले दो दशकों से भाजपा के साथ रहा है.

क्योंकि जब तक कोर्ट का फैसला आयेगा तब तक राज्य में चुनाव भी संपन्न हो जायेंगे। कानून के मुताबिक समाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े समुदायों को ही आरक्षण मिल सकता है। और वह भी तब संभव है जब आरक्षण प्राप्त करने वाली जाति की कसौटी पर आप खरे उतरें। सरकार ने सबसे बड़ा बदलाव आरक्षण के आधार में बदलाव कर किया है.

संविधान में साफ कहा गया है कि राज्य सामजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े समुदाय के विकास के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है. लेकिन पहली बार गुजरात सरकार ने इसके आगे जाते हुए आर्थिक आधार पर आरक्षण घोषित किया है. सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक आधार की जगह आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला किया है.

गुजरात में पहले से ही 49.5 फीसदी आरक्षण है और इस 10 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण के बाद यह तय सीमा 50 फीसदी से अधिक हो जाएगी. जबकि संविधान 50 फीसदी आरक्षण की मंजूरी देता है. साफ शब्दों में समझा जाए तो गुजरात सरकार के इस फैसले को संवैधानिक संशोधन के बिना लागू करना संभव नहीं है. तो फिर सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण ही क्यों दिया, जब वह उसे लागू हीं नहीं करा सकती?

सत्ता पाने के लिये भाजपा अब तक ध्रुवीकरण कराती आई है, अब आरक्षण का खेल रही हैं, एक तरफ हरियाणा में पांच हजार करोड़ की संपत्ती फूंकने वाले जाटों के आरक्षण पर मुहर लगा दी गई तो दूसरी तरफ उतनी ही संपत्ती को गुजरात में जलाकर राख कर देने वाले पटेलों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का मसौदा तैयार कर लिया गया है।

तर्क दिया कि जिस परिवार की आय छः लाख रुपये वार्षिक से कम है वह आरक्षण प्राप्त कर सकेगा। अजीब मजाक है जिस देश में पांच सौ रुपये देकर पंद्रह सो रुपये प्रतिमाह आय का सर्टिफिकेट बन जाता हो वहां यह तरीका भला कैसे सफल हो सकता है ? जो समुदाय इतना सशक्त हो कि भारी फोर्स की मौजूदगी में भी हजारों की संपत्ती को फूंक सकने का माद्दा रखता है क्या उसे आरक्षण जैसी ‘भीख’ की जरूरत है ? दरअस्ल यह आरक्षण लेना नहीं बल्कि आरक्षण खत्म करना चाहते हैं।

भाजपा, संघ परिवार, मिलकर आरक्षण के खिलाफ ऐसी हवा बना रहे हैं जिससे लगने लगे कि आरक्षण राष्ट्रीय खतरा है। भाजपा का आर्थिक आधार पर आरक्षण का तर्क, तर्क न होकर कुतर्क है। कहीं ये मोहन भागवत के उस बयान के अमल की तो शुरुआत नहीं जिसमें उन्होंने कहा था कि आरक्षण की फिर से समीक्षा होनी चाहिये ? संघ परिवार घोर आरक्षण विरोधी रहा है उनके इस विरोध का कारण दलित सशक्तीकरण है, उन्हें ये लगता है कि दलितों को दलित और स्वर्णों को स्वर्ण ही रहना चाहिये। बहरहाल गुजरात सरकार यह फैसला कोर्ट में कितना टिक पायेगा यह तो वक्त ही बतायेगा मगर एक बात तो साफ है कि भाजपा ने स्वर्णों के तुष्टीकरण करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।