आरक्षण: अब जज भी कठघरे में?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
गुजरात उच्च न्यायालय के जज जे.बी. पारडीवाला को बधाई कि उन्होंने एक दम खरा सच बोल दिया। हार्दिक पटेल के मामले में अपना फैसला सुनाते हुए उन्होंने बीच में कह दिया कि दो बातों ने देश को बर्बाद कर दिया है। एक तो आरक्षण और दूसरा भ्रष्टाचार! उनके इस कथन से नाराज़ होकर राज्यसभा के 58 सदस्यों ने उन पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव रख दिया है। बहुत खूब! कितने अक्ल का काम किया है, इन सांसदों ने? पता नहीं, उन्होंने ऐसा क्यों किया है? वे आरक्षण की बात से चिढ़ गए हैं या भ्रष्टाचार की बात से? दोनों ही मामलों में हमारे नेतागण सबसे आगे रहते हैं याने नेतृत्व करते हैं। ये दोनों ही मुद्दे ऐसे हैं, जो नेताओं को सबसे अधिक प्रिय हैं। एक मुद्दा उन्हें वोट दिलाता है तो दूसरा मुद्दा उन्हें नोट दिलाता है। वोट और नोट ही हमारी राजनीति के अनुलोम-विलोम हैं। पारडीवाला इतने बड़े ओहदे पर पहुंच गए लेकिन दिल के वे बड़े भोले हैं। उन्हें क्या जरुरत थी कि वे इन राजयोगियों की दुखती रग पर उंगली रखते। आश्चर्य है कि लोकसभा के सदस्यों को उन पर गुस्सा नहीं आया। वे तो नामजद नहीं होते। वे चुनकर आते हैं। आरक्षितों के वोटों से भी चुने जाते हैं। नोटो के बिना चुनाव कैसे हो सकता है? वे चुप है लेकिन जो पार्टी-नेताओं के द्वारा नामजद किए जाते हैं और पार्टी-विधायक, जिन पर आंख मीचकर ठप्पा लगा देते हैं, वे बौखलाए हुए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि पारडीवाला गुजराती हैं और उन्हें भी नरेंद्र मोदी ने इशारा कर दिया हो। आजकल देश में सभी छापे और मुकदमे नरेंद्र मोदी के इशारे पर ही चल रहे हैं। शायद इसीलिए सारे विरोधी दिग्गजों ने महाभियोग की अर्जी पर दस्तखत पेल दिए हैं।
लेकिन सांसदों की इस अर्जी की हवा पहले ही निकल चुकी है। पारडीवाला ने अपने फैसले के मूल-पाठ में से वे दो-तीन वाक्य तुरंत निकाल दिए हैं, जिन पर हमारे नेतागण उत्तेजित हो रहे हैं। पारडीवाला पर सांसदों ने आरोप लगाया है कि आरक्षण का विरोध करके उन्होंने संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन किया है। यह बहुत ही बोदा तर्क है। संविधान में 100 संशोधन हुए हैं। क्या इन संशोधनों को संविधान का उल्लंघन माना जाएगा? संविधान तो सतत परिवर्तनशील दस्तावेज है। वह समाज का, देश का, लोगों का प्रतिबिंब होता है। समय के साथ-साथ वह भी बदलता है। यदि कोई जज उसमें परिवर्तन की मांग करता है तो उसको धमकाना असंवैधानिक है।
वास्तव में जाति पर आधारित आरक्षण हमारे समाज का कैंसर बन गया है। यह सबसे ज्यादा नुकसान आरक्षितों का ही करता है। आरक्षितों की मलाईदार पर्तें सारे कुर्सियां झपट लेती हैं और करोड़ों गरीबों, वंचितों, ग्रामीणों को अपने मुंह पर पट्टी बांधकर पड़े रहना पड़ता है। आरक्षण आजाद भारत का सबसे बड़ा पाखंड बन गया है। इसे जन्म की बजाय जरुरत के आधार पर दिया जाना चाहिए और नौकरियों में नहीं, सिर्फ शिक्षा में दिया जाना चाहिए और शतप्रतिशत दिया जाना चाहिए।