आर टी आई क़ानून और हुक्मराँ तबक़ा

हक़े मालूमात क़ानून के ज़रीया सेयासी, समाजी और इंसानी हुक़ूक़ की तंज़ीमों ने कई सरकारी फ़ैसलों से जानकारी हासिल की इस से कई बड़े एस्क़ामस और बदउनवानीयों का पता चला, कमपेटरोलर ऐंड आडीटर जनरल से लेकर मुख़्तलिफ़ सरकारी महिकमों में होनेवाली ख़राबियों से अवाम वाक़िफ़ हो रहे हैं। हक़ मालूमात क़ानून RTI ने ही रिश्वत सतानी के ख़िलाफ़ मुहिम को तक़वियत पहोनचाई है। आर टी आई के लिए कई तंज़ीमों ने अपने कारकुनों को सरगर्म रखा है। भोपाल की एक आर टी आई रुकन ने भी सियासतदानों की बदउनवानीयों को आशकार करने की तैय्यारी करली थी लेकिन बयो रियो क्रेसी और सियासतदानों के गठजोड़ ने इंसिदाद रिश्वत सतानी मुहिम की रुकन को मौत की नींद सुला दिया। अना हज़ारे ने भी मलिक के सिस्टम को बेहतर बनाने का बीड़ा उठाया है। आर टी आई क़ानून लाने का नेक मक़सद भी यही था कि शफ़्फ़ाफ़ हुक्मरानी के साथ अवाम की ख़िदमत को यक़ीनी बनाया जाए। सयासी पार्टीयों ने इबतदा-ए-में नेक नीयती का मुज़ाहरा करके साफ़ सुथरी दयानतदाराना पर मबनी हुक्मरानी का ख़ाब दिखाकर आर टी आई क़ानून को मंज़ूरी दी थी मगर बाद के दिनों में ये क़ानून और इस से इस्तिफ़ादा करने वालों की बढ़ती तादाद हुक्मराँ तबक़ा के अफ़राद के लिए गले की हड्डी बन गया है। कई सियासतदां इस क़ानून से बच निकलने की सोच रहे हैं। अपनी बदउनवानीयों की तवील फ़िहरिस्त बाख़बर सियासतदानों को अवाम की तेज़ निगाहों से दूर रहने की फ़िक्र लाहक़ होगई है। सियासतदानों ने आर टी आई के नफ़ाज़ के वक़्त ये ख़्याल किया था कि इस क़ानून को बे सिमरी से दो-चार करदिया जाय लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सियासतदानों की ख़ुशगुमानी ये थी कि क़ानून का मतलब सिर्फ़ बयो रियो क्रेसी को आर टी आई के चंगुल में फंसाया जाएगा मगर बाद के दिनों में सियासतदानों की धांदलीयाँ भी आशकार होने लगीं। आर टी ए बनाने से क़बल हर एक आज़ाद था कि जो चाहे कहे और जिस तरह की भी रिश्वत, बदउनवानीयाँ करे लेकिन रिश्वत सतानी का पता चलाने के लिए आर टी आई क़ानून को निज़ाम हुकूमत और बयो रियो क्रेसी को दरुस्त करने वाला नुस्ख़ा कीमिया तसव्वुर करने वालों को इस वक़्त मायूसी हुई जब सियासतदानों ने इस क़ानून के असरात को भी ज़ाइल करने मंत्र हासिल करलिया। अब हुक्मराँ कांग्रेस हक़ मालूमात क़ानून (RTI) पर अज सर-ए-नौ नज़रसानी करने के लिए यू पी ए हलीफ़ पार्टीयों में ज़ेर गशत तजावीज़ पर मुहतात रवैय्या इख़तियार कररही है। कई पार्टीयों ने क़ानून की असल रूह को नरम बनाने पर ज़ोर दिया है। इस मसला पर सयासी हलक़ों में बेहस मुबाहिस जारी हैं। ये कोशिश हो रही है कि क़ानून में बड़ी तबदीलीयां लाई जाएं। बिलाशुबा जब क़ानून बनाया गया था तो ये शौक़ और जज़बा उत्तम पाया जाता था कि इस क़ानून की मदद से रिश्वत सतानी और ख़राबियों को दूर करलिया जाएगा और ये क़ानूनी इदारों, को बा इख़तियार बनाए गा। लेकिन अब अवाम इस्तिफ़सार करने लगे हैं कि आया ये क़ानून पूरी नेक नीयती से रूबा अमल लाया जा रहा है।? क्यों कि इस क़ानून ने हुकूमत की ही ख़राबियां आशकार करना शुरू करदी हैं। मौजूदा वज़ीर-ए-क़ानून सलमान ख़ुरशीद और उन से क़बल के वज़ीर-ए-क़ानून वीरप्पा मोईली ने क़ानून की सख़्त गेरी पर तशवीश ज़ाहिर की है। इस क़ानून ने अपनी शुरूआत से ही हुक्मरानी पर मनफ़ी असरात मुरत्तिब किए हैं। सरकारी इदारा जाती कारकर्दगी और इस के काम काज के तरीका-ए-कार को ज़रब पहूंचने का उज़्र पेश करके क़ानून में तरमीम या तहरीफ़ की ज़रूरत नहीं है मगर हुकूमत और सियासतदां का एक तबक़ा क़ानून को कमज़ोर बनाने के लिए कोशां हो तो असल मक़सद फ़ौत हो जाएगा। हुकूमत की कारकर्दगी और सरकारी काम काज में शफ़्फ़ाफ़ियत जवाबदेही और इदारा जाती इफ़ादीयत के दरमयान तवाज़ुन पैदा करने के लिए आर टी आई को मूसिर बनाने पर तवज्जा देना चाआई। मगर अब कोशिश ये की जा रही है कि क़ानून के मज़बूत हाथ हुकूमत की ख़राबियों तक ना पहूंच पाउं। सरकारी राज़ को मालूम करने की कोशिश बेकार है मर्कज़ी काबीना के फ़ैसलों या दीगर महिकमों के दाख़िली मुरासलात तक एक आम शहरी को रसाई हासिल करने से रोकने पर ग़ौर किया जा रहा है। 2G अस्क़ाम में वज़ारत फ़ीनानस का वज़ीर-ए-दाख़िला चिदम़्बरम के ख़िलाफ़ पी ऐम ओ को रवाना करदा नोट का इन्किशाफ़ होया PMO की कारकर्दगी से मुताल्लिक़ मालूमात को आर टी आई के ज़रीया ही आशकार किया गया। इस से हुकूमत एक वक़्त के लिए बोहरान का शिकार होने के दहाने पर पहूंच गई जिस के बाद कांग्रेस और दीगर यूपी ए हलीफ़ पार्टीयों की बेचैनी में इज़ाफ़ा होने लगा कि आख़िर आर टी आई के ज़रीया जिस जिन को आज़ाद करदिया गया था उसे दुबारा बोतल में किस तरह बंद करदिया जाई, आर टी आई क़ानून अपने वजूद के सिर्फ 6 साल पूरे किए हैं मगर इन 6 बरसों में हुकूमत के ऐवान में खलबली मचा दी है। हुक्मराँ को जवाबदेह बनाने का जज़बा सर्द पड़ने लगा है। हिंदूस्तान जैसे वसीअ आबादी वाले मुल्क में बद उनवान अफ़राद को इंसाफ़ के कटहरे में लाने की कोशिश बज़ाहिर सयासी नौईयत की होती हैं लेकिन इबरतनाक सज़ा का कोई तसव्वुर पूरा नहीं किया जाता। इस लिए रिश्वत के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने वालों ने बद उनवान सियासतदानों, दागदार किरदार के हामिल लीडरों को इंतिख़ाबात से दूर रखने के लिए इंतिख़ाबी इस्लाहात पर ज़ोर दिया है। मगर इंतिख़ाबात में इस्लाहात का जज़बा भी एक दिन आर टी आई की तरह बेअसर साबित हो जाएगा।