आलमी उर्दू ऐडीटर्ज़ कान्फ़्रैंस को मुक़तदिर इदारा बनाने की ज़रूरत

हैदराबाद 31 दिसंबर (सियासत न्यूज़) कुहना मशक सहाफ़ी जनाब महमूद शाम ग्रुप ऐडीटर ए आर वाई चयानलस पाकिस्तान ने आलमी उर्दू एडीटरस कान्फ़्रैंस की इफ़्तिताही तक़रीब से ख़िताब करते हुए कहा कि अगरचे टैक्नोलोजी की बदौलत उर्दू अख़बारात की सफ़ा बंदी तरसील दूसरी ज़बानों के अख़बारात की तरह होरही है लेकिन टैक्नोलोजी हमें चयालनज कररही है।फ़िलहाल हम टैक्नोलोजी को नहीं बल्कि टैक्नोलोजी हमें इस्तिमाल कररही है। ये आलमी उर्दू एडीटरस कान्फ़्रैंस इस चयालनज को क़बूल करते हुए ऐसे ठोस इक़दामात का ऐलान करसकती है जिस से उर्दू मीडीया प्रिंट और टी वी दोनों एक तरफ़ टैक्नोलोजी के दोष पर सवार मुख़्तलिफ़ आफ़ाक़ तसख़ीर करें।

दूसरी तरफ़ उर्दू की क़ुव्वत नमु को खुल कर खुलने का मौक़ा दिया जा सके।आलमी उर्दू एडीटरस कान्फ़्रैंस एक ऐसे मुक़तदिर इदारा में ढल जाय जहां आज के तमाम उलूम सयासी तहरीकों आलमगीरीयत माहौलियात के हवाला से दुनिया भर की यूनीवर्सिटीयों थिंक टैंकों से बाज़ाबता इश्तिराक हो। मीडीया ग्रुप और उर्दू के फ़रोग़ के लिए क़ायम मुख़्तलिफ़ सरकारी और निम सरकारी इदारों के दरमयान बाक़ायदा फ़आल राबिता हो। नई इस्तिलाहात नए अलफ़ाज़ नई तराकीब पुरानी ज़रब उलामसाल मुहावरों में पैवन्दकारी हो। मीडीया ग्रुप, अपने हाँ मुस्तनद अहल-ए-क़लम को मुशीर की हैसियत दे कर उन के तजुर्बे और इलम से इस्तिफ़ादा करें।

पाकिस्तान और भारत में सरकारी और ग़ैर सरकारी सतह पर उर्दू के फ़रोग़ के लिए बरसर-ए-कार इदारों में भी आपस में बाक़ायदा इश्तिराक हो। साल में एक या दो मर्तबा उन के बाहमी इजलासमुनाक़िद हूँ। इसी तरह आलमी उर्दू एडीटरस कान्फ़्रैंस का हर साल इनइक़ाद हो। इस कीमुख़्तलिफ़ कमेटियां अपनी अपनी कारगुज़ारी की रूदाद और सिफ़ारिशात इरसाल करें। उर्दू की नई पुरानी बस्तीयों में जो नया ख़ून उस की रगों में शामिल होरहा है वो आलमी सतह पर गर्दिश करे। रंगों में रंग, ख़ुशबू में ख़ुशबूएं मिलें उर्दू मज़ीद राणा, मज़ीद हसिन और मज़ीद तवाना होती चली जाए। जनाब महमूद शाम ने कहा कि इन दिनों आम अख़बार से कहीं ज़्यादा क़ारईन नैट ऐडीशनों को मयस्सर आते हैं और ये एक जगह नहीं दुनिया भर में मुख़्तलिफ़ मुआशरों में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।

इस लिए इस कान्फ़्रैंस में ये भी तए किया जाना चाहीए कि नैट ऐडीशनों में आम अख़बार से हट कर भी कुछ शामिल किया जाए जिस से इन सब को अपनाईयत महसूस हो। उन्हों ने कहा उर्दू आज दुनिया की सब से ज़्यादासुन्नी फिर बोली फिर पढ़ी और फिर लिखी जाने वाली चंद ज़बानों में शुमार की जा रही है और अपनी पुरानी बस्तीयों से कहीं ज़्यादा ये नई बस्तीयों में मुहब्बत और रब्त की ख़ुशबू फैला रही है। आज हम चारमीनारों के साय में उर्दू का दर्द बांटने के लिए जमा हुए हैं। हैदराबाद वो मुक़ाम है जहां उर्दू के मुस्तक़बिल के लिए सब से पहले फ़िक्रमंदी की गई।

उस्मानिया यूनीवर्सिटी इस शहर की आग़ोश में अनगड़ाईआं ले रही है जहां बरसों पहले दूसरी ज़बानों में मौजूद मुख़्तलिफ़ उलूम-ओ-फ़नून की इस्तिलाहात को उर्दू क़ालिब में ढालने का अमल शुरू किया गया। दूर रोज़ा आलमी उर्दू एडीटरस कान्फ़्रैंस इस हसीन रिवायत का तसलसुल है। ऐसे नुमाइंदा इजतिमा का एहतिमाम सोज़ों से बेताब हस्तियां ही करसकती हैं। दुनिया भर में उर्दू सहाफ़त के उफ़ुक़ पर चकमते सभी सितारे यहां सूरत कहकशां आरास्ता हैं। उन्हों ने कहा कि जिगर ने तो कहा था

उन का जो काम है वो अहल सियासत जानें       मेरा पैग़ाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे

लेकिन जनाब ज़ाहिद अली ख़ान ऐसे अहल सियासत हैं जिन का काम और पैग़ाम दोनों मुहब्बत है। वो सियासत करते नहीं निकालते हैं। जनाब ज़ाहिद अली ख़ान के पैग़ाम मुहब्बत ने हमारे दिलों को एक वलवला ताज़ा दिया है। उन्हों ने कहा कि उर्दू की पुरानी बस्तीयों में भी जाना होता है। नई बस्तीयों में भी, अजनबी सरज़मीनों में भी। पाकिस्तान में जहां उर्दू क़ौमी ज़बान कहलाती है। वहां ऐसे करीये भी हैं जहां उर्दू का दाख़िला ममनू है। तास्सुबात, हद बंदीयों, बाज़ाबता अदावत के बावजूद उर्दू फल फूल रही है। उर्दू राबिता का सब से बड़ा वसीला है। सिंधी, पंजाबी उर्दू में हमकलाम होते हैं। बलोच , पंजाबी भी उर्दू में ही एक दूसरे से बात बढ़ाते हैं। उर्दू अख़बार, रिसाला, हफ़तरोज़ा कि माहनामा दूसरी किसी भी ज़बान से ज़्यादा इशाअत हासिल करता है। टी वी चिया नल भी उर्दू वाले सब से ज़्यादा देखे जाते हैं। अंग्रेज़ी अशराफ़िया की ज़बान है।

साहिबान रसूख़ का ज़रीया उर्दू सब से मक़बूल ज़बान भी है लेकिन सब से मज़लूम भी। रोज़नामा सियासत हैदराबाद दक्कन की आलमी उर्दू कान्फ़्रैंस के इनइक़ाद की कोशिश उर्दू की मज़लूमियत ख़तम करने मेंयक़ीनन एक संग-ए-मेल साबित होगी। हैदराबाद। चारमीनार। तंग गलियां। उस्मानिया यूनीवर्सिटी। महल। चोबारी। जहां सदीयां हाथ में हाथ डाले महव ख़िराम रहती हैं वहां उर्दू बोलने वालों की कई नसलें आपस में मिलेंगी। तख़ैयुलात। तसव्वुरात का तबादला होगा। तमन्नाओं और ख़्वाहिशों का इज़हार होगा। अज़ाइम और हक़ायक़ का मुअनिक़ा होगा तो उर्दू के लिए जन्नत इमकां के नए दरवाज़े खुलींगी। टैक्नोलोजी के नए आफ़ाक़ तसख़ीरहोंगी। उर्दू मैं ख़ुद इतनी क़ुव्वत। लचक। इस्तिदाद। और अहलीयत है कि बदलते ज़मान-ओ-मकां में ग़ैर नहीं अपनी होती रहती है। हर तबदीली को अपनाने की सकत रखती है। हर नई आवाज़ को क़बूल भी करलेती है। और अदा भी करसकती है। हर लहजे में घुल जाती है। हर लब पे खुल जाती है।

ये दरबार की नहीं बाज़ार की ज़बान है। ये ख़वास की नहीं अवाम की बोली है। उन्हों ने कहा कि उर्दू क़ौमी ज़बान तो पाकिस्तान की है लेकिन इस की तरक़्क़ी के लिए ज़्यादा नुमायां और अमली इक़दामात भारत में होते दिखाई देते हैं।तरक़्क़ी उर्दू पाकिस्तान के लिए सुबाई और शहरी हुकूमत की जानिब से अलल-तरतीब 20 और 30 लाख रुपय सालाना ग्रांट का ऐलान क्या हुआ है वहीं बताया गया कि हकूमत-ए-हिन्द उर्दू की तरक़्क़ी के लिए 5 करोड़ रुपय सालाना की ग्रांट दे रही है। उन्हों ने ये भी एतराफ़ किया कि हिंदुस्तानी सरकारी उर्दू जराइद-ओ-रसाइल में इस्तिमाल होने वाला काग़ज़ मयारी तज़ईन दीदा जे़ब तहरीरों का मयार बुलंद और ख़्याल अंगेज़ होता है जबकि हकूमत-ए-पाकिस्तान की सरपरस्ती में छपने वाले रसाइल सदरी और माअनवी एतबार से बहुत पस्त हैं।

जनाब ज़ाहिद अली ख़ान ऐडीटर सियासत ने अपनी सदारती तक़रीर में कहा कि ये मुस्लिमा हक़ीक़त है 125 साला जद्द-ओ-जहद आज़ादी में उर्दू सहाफ़त की ग़ैरमामूली ख़िदमात रही हैं। उर्दू सहाफ़त शानदार माज़ी की तारीख़ रखती है जिस ने 199 सालतकमील करलिए हैं और आइन्दा बरस दो सदीयां तकमील करलेगी मगर आज़ादी के बाद उर्दू के साथ मुनासिब सुलूक नहीं हुआ। तकसीम-ए-हिंद के बाद पाकिस्तान ने उर्दू को अपनी क़ौमी ज़बान क़रार दे दिया मगर उस की तरक़्क़ी के लिए हिंद-ओ-पाक में कुछ नुमायां इक़दामात नहीं किए गई। जनाब ज़ाहिद अली ख़ान ने कहा कि हिंदुस्तान में उर्दू बोलने वालों की तादाद शायद पाकिस्तान से ज़्यादा है। उर्दू बला लिहाज़ मज़हब अवाम कीज़बान है। ये प्रेम चंदर ख़ुशवंत सिंह और कृष्ण चंद की ज़बान रही है। उमरीता प्रीतम और फ़िराक़ गोरखपोरी उर्दू की शायर तस्लीम किए गए हैं।

उन्हों ने कहा कि वज़ीर-ए-आज़मडाक्टर मनमोहन सिंह ने ख़ुद उन्हें बताया कि इन के पास उन की वालिदा के उर्दू में तहरीरकरदा ख़ुतूत आज भी महफ़ूज़ हैं। इन्दर कुमार गुजराल और वे पी सिंह की उर्दू दानी से सभी वाक़िफ़ हैं। उर्दू कई ज़बानों मज़हब और तहज़ीबों का गुलदस्ता है। एक सैकूलर हुकूमत का क़रीना है कि इस ज़बान की तरक़्क़ी के लिए मुकम्मल दिलचस्पी ली। उर्दूज़बान में इतनी लचक है कि वो मुख़्तलिफ़ तहज़ीबों को समोसकीं। उर्दू ज़बान अपनेदमख़म पर सरहदों को पार करचुकी है। शेमाली अमरीका से जापान तक आज उर्दू बोलने वाले मिलेंगे। उर्दू में ये ख़ूबी है कि वो ना सिर्फ क़ौमी यकजहती बल्कि सारे आलम में आलमी भाई चारगी में नुमायां किरदार अदा करसकती है। उन्हों ने शरकाए कान्फ़्रैंस सेख़ाहिश की कि वो अपनी मुफ़ीद तजावीज़ पेश करें ताकि फ़रोग़ उर्दू और सहाफ़त के लिए नुमायां उसूल मुरत्तिब किए जा सकें।

जनाब ज़ाहिद अली ख़ान ने उर्दू अख़बारात के एक कनसोरशीम की तशकील की तजवीज़ पेश की और ये पेशकश की कि इदारा सियासत इस कनसोरशीम में शामिल तमाम उर्दू अख़बारात के लिए ख़बरें रवाना करेगा ताकि उन अख़बारात को ख़बरें के तर अजीम और प्रोसेसिंग पर आइद मसारिफ़ में कमी आसके और इस बचत से मआशी ख़सारा की पा बजाए करसकें। उन्हों ने इस कनसोरशीम में शामिल अख़बारात के सहाफ़ीयों के लिए एक लाख रुपय के हीलत इंशोरंस की स्कीम की तजवीज़ पेश करते हुए इदारा सियासत की जानिब से फ़रस्ट प्रीमीयम की अदाई की पेशकश की। उन्हों ने उर्दू और उर्दू सहाफ़त के लिए जदीद अलफ़ाज़ के इस्तिलाहात वज़ा करने में भी अपने तआवुन का पेशकश किया और कहा कि तमाम उर्दू अख़बारात में एक जैसी इस्तिलाहात के इस्तिमाल से यकसानियत पैदा होगी।

जनाब ज़ाहिद अली ख़ान ने रियास्ती हुकूमत पर ज़ोर दिया कि कम अज़ कम उन 16 अज़ला में जहां उर्दू को दूसरी सरकारी ज़बान का दर्जा दिया गया है वहां उर्दू के अमली नफ़ाज़ के इक़दामात करे और तेलगु ज़बान के साथ साथ उर्दू के नफ़ाज़ को यक़ीनी बनाने सरकारी ज़बान से मुताल्लिक़ क़ानून में मुनासिब तरमीम करी। उर्दू एकेडेमी को ख़ातिरख़वाह फंड्स फ़राहम कियाजाए और इस के बोर्ड में उर्दू अदब से वाबस्ता शख़्सियतों को शामिल किया जाय ताकि उर्दू के फ़रोग़ के लिए अमली इक़दामात किए जा सकें। जनाब आमिर अली ख़ान न्यूज़ ऐडीटर सियासत ने ख़ौरमक़दम किया। अल्लामा एजाज़ फ़र्ख़ु ने निज़ामत के फ़राइज़ अंजाम दीए और शुक्रिया अदा किया।

इस दो रोज़ा कान्फ़्रैंस में पाकिस्तान के सहाफ़ीयों के इलावा हिंदुस्तानी उर्दू अख़बारात के मुदीर एन ने भी शिरकत की जिन में काबिल-ए-ज़िकर मसरज़ म अफ़ज़लऐडीटर इनचीफ़ अख़बार नौ-ओ-साबिक़ एम पी शाहिद लतीफ़ ऐडीटर इन्क़िलाब मुंबई मासूम मुरादाबादी ऐडीटर जदीद ख़बर दिल्ली मुनीर अहमद आदिल ऐडीटर सालार बैंगलौर शुऐबख़ुसरो ऐडीटर इनचीफ़ औरंगाबाद टाईम्स अहमद इबराहीम अलवी मुदीरे आअला आग लखनऊ डाक्टर हाजी हाफ़िज़ माजिद हुसैन यफ़ ऐडीटर उर्दू ऐक्शण ज़ुबैर अहमद फ़ारूक़ी चीफ़ ऐडीटर अनवार क़ौम कानपूर मुहम्मद हुसैन शैदा मेरठी ऐडीटर अनवार वीकली मालिगांव ख़्याल अंसारी ऐडीटर ख़ैरअंदेश वीकली मालिगांव मुहम्मद यूसुफ़ ऐडीटर रोज़नामा तर्जुमान उर्दू मालिगांव और मुहम्मद तक़ी ऐडीटर रोज़नामा वर्क़ ताज़ा नानडेड़ और दूसरे शामिल हैं।