आलमी मोआशी बोहरान

दुनिया भर में जो ममालिक अमरीका की गु़लामी और बालादस्ती में सांस ले रहे थे, उन्हों ने 9/11 के बाद दहश्तगर्दी के ख़िलाफ़ उस की जंग का हिस्सा बन कर मईशत को तबाही के दहाने पर ले जाते हुए मआशी अदम इस्तिहकाम और ग़ुर्बत, भूक, फ़ाक़ाकशी, बेरोज़गारी को हआ दी। दहश्तगर्दी के ख़िलाफ़ जंग के नाम पर मग़रिबी दुनिया ने यूरोप और एशीया के हुकमरानों को मरीज़ा ना ज़हनीयत में मुबतला करदिया, जिस का नतीजा ये निकला कि बड़े ममालिक से लेकर तरक़्क़ी पज़ीर मुल्कों में मआशी नाहमवारी, अदम मुसावात, जंग-ओ-जदल और दीगर मसाइल का अंबार खड़ा हुआ। नौजवानों में बेरोज़गारी का ग़म बढ़ता गया। इस ग़म के इज़हार के लिए ये लोग सड़कों पर निकल आए तो आज अमरीका से लेकर लंदन, यूरोप, रुम तक एहतिजाज की लहर उठ गई है। सरमाया दाराना निज़ाम के ख़िलाफ़ अवाम का एहतिजाज हुकमरानों के लिए लम्हा फ़िक्र है। कल तक यहां ताक़तवर और कमज़ोर क़ौमों के दरमयान फ़र्क़ पैदा करके हुकूमत करने वाले मुल्कों में अपने ही अवाम की ब्रहमी देखी जा रही है। दूसरी जंग-ए-अज़ीम के बाद आलमी निज़ाम क़ायम करके अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के तमाम अरकान एक दूसरे के बराबर होने का दावा करने वाले अब मआशी बोहरान और बदहाल मुआशरा से दो-चार हैं। दुनिया के पसमांदा अक़्वाम को इक़तिसादी और समाजी एतबार से अपने पैरों पर खड़ा करने के बहाने उन के इलाक़ों-ओ-वसाइल को हड़प कर लेने वाले अक़्वाम अज़खु़द पसमांदगी का शिकार होने जा रहे हैं। न्यूयार्क में सरमाया दाराना निज़ाम के ख़िलाफ़ एहतिजाज, लंदन की सड़कों पर अवाम का हुजूम, रुम, बर्लिन में तशद्दुद पर आमादा नौजवानों से पूछा जाय तो वो यही कहेंगे कि इन के हुकमरानों ने दूसरों के लिए क़ब्र खोदते हुए अपने महल तामीर करवाए थे और ये महल अब उन के लिए ख़ुद क़ब्र बन जाएंगी। अवाम की मआशी तरक़्क़ी और ख़ुशहाली पर तवज्जा दिए बगै़र उन की नाम निहाद सलामती के बहाने इराक़, अफ़्ग़ानिस्तान, मशरिक़ वुसता और दीगर मुस्लिम मुल्कों में अफ़्वाज और फ़ौजी कार्रवाई पर अरबों खरबों डालर ख़र्च करने वाले मुल़्क अपने इलाक़ों में लाक़ानूनीयत, तशद्दुद, आतिशज़नी और भूक के ख़िलाफ़ पत्थर उठा लेने पर आमादा नौजवानों की तादाद तो बढ़ा चुके हैं। दूसरे मुल्कों को इंसानियत और इंसानी हुक़ूक़ का दरस देने वाले मुल्कों में एहितजाजियों पर पुलिस ज़ुलम-ओ-ज़्यादतियां होरही हैं। माह सितंबर से अमरीका के शहरों में सरमाया दाराना निज़ाम के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ एशीया, अफ़्रीक़ा और यूरोप तक फैल गई है। 83 मुल्कों के 951 शहरों में लाखों पुरजोश अवाम रोज़गार, बेहतर मआशी ज़िंदगी और ख़ुशहाली के लिए लड़ रहे हैं। आलमी सतह पर मआशी हमवारी केलिए वे वांट ग्लोबल चेंज यानी हम आलमी तबदीली चाहते हैं का नारा लगा रहे हैं। अवाम जब हुकमरानों की पालिसीयों के ख़िलाफ़ बग़ावत करते हैं तो इस का हतमी नतीजा भयानक होता है। अरब ममालिक में तहरीक को हुआ दे कर हुकमरानों को बेदखल करने की साज़िश पर अमल पैरा मुल्कों में इस के अवाम की तहरीक का सामना है। दुनिया को अमन का दरस देने वाले या अपने सोपर पावर के ज़ोअम में दूसरे मुल्कों पर धौंस जमाने वाले अमरीका को अपनी नाक के नीचे होने वाली अवामी नाराज़गियों का इलम ना रहना अफ़सोसनाक है। अमरीकी अवाम की बग़ावत एक ऐसे वक़्त उठी जब सदर बारक ओबामा को दूसरी मीयाद के लिए इंतिख़ाबात का मुक़ाबला करना है। अमरीका उस वक़्त शदीद क़र्ज़ में जकड़ा हुआ है। सूद की रक़म ने इस के पैरों में मज़बूत बेड़ियां डाल दी हैं। इन हालात में इस तसव्वुर की मुकम्मल नफ़ी नामुमकिन है कि अमरीका या इस के सदर मआशी पालिसीयों के ज़रीया क़र्ज़ के बोझ को कम करने में कामयाब होंगी। सरमाया कारी और बैंकिंग के निज़ाम में टैक्नोलोजी और सरमायादारी निज़ाम के इमतिज़ाज ने पढ़े लिखे नौजवानों को ख़बरदार करदिया है कि अगर यही सूरत-ए-हाल बरक़रार रही तो उन का मुस्तक़बिल इक़तिसादी और समाजी एतबार से मुतज़लज़ल होजाएगा। अमरीका जिस के माहिरीन मईशत दूसरे मुल्कों की इक़तिसादी सूरत-ए-हाल का ज़ाइचा तैय्यार करते थे अपने मलिक को सूद पर पलने से बचाने में नाकाम होगए हैं। अवाम को उधार की ज़िंदगी जीने पर मजबूर करने वाले हुकमरानों को आने वाले दिनों में अवामी बग़ावत का बदतरीन सामना करना पड़ेगा। कसादबाज़ारी और बेरोज़गारी का ख़ौफ़ यूरोप पर मुसल्लत होचुका है। यूरो करंसी की क़दर घट जाने से अवाम को तशवीश लाहक़ होरही है। अमरीका अपने क़र्ज़ का बोझ दोस्त मुल्कों पर डालने की कोशिश कररहा है। जिस के जवाब में जर्मनी ने अपने हाथ खींच लिए हैं, लेकिन मआशी बोहरान की इस लहर में अक़्वाम को ख़ासकर ताक़तवर अक़्वाम को एक दूसरे का सहारा तलाश करके अपने अवाम के साथ साथ आलमी सतह पर इक़तिसादी बोहरान को बचाने केलिए ठोस इक़दामात करने होंगी। कर्ज़ों को मज़ीद बढ़ने से रोकना होगा। ठोस बजट और कर्ज़ों में कमी वक़्त का तक़ाज़ा है। इक़तिसादी हंगामी मंसूबे तैय्यार करलिए जाएं तो बोहरान पर क़ाबू पाने में मदद मिलेगी। यूरोप हो या अमरीका-ओ-एशिया अफ़्रीक़ी मुल्कों को अपने बंकिंग निज़ाम को बेहतर बना कर बोहरान से निमटने केलिए नए मरबूत मंसूबे तैय्यार करने होंगी। अमरीका को जो मसाइल दरपेश हैं वही मसाइल यूरोप को भी हैं। ये वक़्त उन मसाइल की ज़िम्मेदारी एक दूसरे के सर थोपने का नहीं है बल्कि फ़ौरी एहतियाती इक़दामात करने का है, वर्ना अवाम की बढ़ती नाराज़गी बहुत बड़ा चैलेंज बन जाएगी और उन मुल्कों में भी तीवनस , मिस्र और लीबिया के वाक़ियात का अक्स दिखाई देने लगेगा।