आलम अरब का मुस्तक़बिल

लीबिया के मुअम्मर क़ज़ाफ़ी की हलाकत को आलिम अरब में जारी सिलसिला वार तहरीकों का अफ़सोसनाक मरहला क़रार दिया जा सकता है। इस लड़ाई में उन के फ़र्ज़ंद मोतसिम भी हलाक होगई। इस हलाकत के बाद कई अरब सरबरहान-ए-ममलकत की आँखें खुल जानी चाहीए जो अपने अवाम के ग़म-ओ-ग़ुस्सा को फ़रोग़ दे कर अरब दुश्मन ताक़तों का काम आसान कर रहे हैं।

दुनिया में कई आमिरीयत पसंद रहनुमा गुज़रे हैं मगर हर एक का ख़ूनी अंजाम नहीं हुआ। मुअम्मर क़ज़ाफ़ी ने एक बाग़ियाना तहरीक के बाद चंद माह क़बल इक़तिदार से गिरिफ़त कमज़ोर होने के बावजूद आख़िर तक ख़ुद को लीबिया का मर्द आहन ही मुतसव्वर किया।

42 साल तक हुक्मरानी करने वाले अरब दुनिया के सब से तवील मुद्दत तक इक़तिदार पर रहने वाले हुक्मराँ को ख़तन करने के लिए आलमी ताक़तों का मंसूबा बहरहाल कामयाब हुआ। सहरा के पहले करिश्माती क़ाइद बन कर उन्हों ने शाह इदरीस को बेदखल करके लीबिया का इक़तिदार सँभाला था।

अपने अवाइल हुक्मरानी में मुल़्क की तेल की दौलत को तालीम, तामीर-ए-नौ और आलिम अरब के वक़ार को क़ौमियाने के लिए सरमाया कारी की। अपने दौर-ए-सदारत में अरब दुनिया को ख़ास फ़ायदा नहीं पहूँचा सके अलबत्ता लीबिया के साथ मिस्र और शाम को अरब फ़ैडरेशन में लाने की कोशिश की लेकिन इन का मक़सद पूरा नहीं हुआ।

रोज़ अव्वल से उन का तर्ज़ हुक्मरानी ना सिर्फ आलिम अरब बल्कि दुनिया के दीगर हुकमरानों के लिए एक मुनफ़रद पयाम देता था इसलिए उनकी एक मुनफ़रद शनाख़्त पैदा हुई। लीबिया के अवाम को हौसला अता करने के लिए उन की ख़िदमात का एक ख़ुसूसी बाब ही। मग़रिबी दुनिया ने उन्हें 1980 से एक दहश्तगर्द रहनुमा की हैसियत से तस्लीम किया तो इस की वजह ये थी कि इन के ताल्लुक़ से ये कहा जाता था कि उन्हों ने योरोपी ममालिक के बड़े शहरों में धमाके करने के लिए बम बर्दार दस्ते रवाना किए थे और मुसाफ़िर बर्दार तय्यारा को मार गिराया था।

इन की फ़ौज पर कीमीयाई, हयातयाती और न्यूक्लियर तजुर्बात को फ़रोग़ देने का शुबा ज़ाहिर किया जा रहा था। अमरीका ने इन का अर्सा हयात तंग करने की हर मुम्किना कोशिश की थी। 1986 में ही उन्हें हलाक करदिया जा सकता था मगर वो बच गई। इन को हलाक करने के लिए क्रूज़ मीज़ाईलस भी दागे़ गए थे जो तरह बुल्स में उन के महल के अहाता में गिर गई।

लॉकरबी के मसला पर उन्हें अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की तहदीदात का सामना करना पड़ा। साबिक़ सदर अमरीका रोनालड रीगन ने उन के ख़िलाफ़ सख़्त रेमार्क किया था जिस की आलिम अरब के बाअज़ गोशों ने शदीद तन्क़ीद की थी। अमरीका की दुश्मनी के बाइस उन्हें इबतिदा में कई मसाइल का सामना करना पड़ा और जब 2003 में अमरीका ने इराक़ पर हमला करके सद्दाम हुसैन को गिरफ़्तार करलिया तो उन्हें यक़ीन होगया था कि एक दिन उन की क़िस्मत का भी यही अंजाम होगा।

शायद इस लिए उन्हों ने किसी हद तक मग़रिब के साथ अपने ताल्लुक़ात को मामूल पर लाने की कोशिश की। 1988 ए- के लॉकरबी बम हमला के मुतास्सिरा अफ़राद के अरकान ख़ानदान को मुआवज़ा देने के फ़ैसला के बाद मग़रिबी मुल्कों में अपने लिए एक नरम गोशा बनाने की कोशिश की।

लेकिन इस नरमी और मौक़िफ़ में तबदीली का अंजाम ये हुआ कि मग़रिबी ताक़तों ने मुक़ामी अफ़राद में बाग़ियाना सरगर्मीयों को फ़रोग़ दिया। एक तो उन की बाअज़ पालिसीयों से नाराज़ अवाम को अरब तहरीक से हौसला मिला दूसरा लीबिया के पड़ोसी मुलक तीवनस और मिस्र में होने वाली इक़तिदार की तबदीली ने लीबिया के अवाम को भी बग़ावत के लिए उकसाया और नाटो अफ़्वाज की सरपरस्ती ने बाग़ी ग्रुप का काम आसान बनादिया। तीवनस और मिस्र के नताइज को देख कर लीबिया के अवाम ने फरवरी 2011 से तहरीक शुरू करके क़ज़ाफ़ी के अस्तीफ़ा के लिए ज़ोर दिया।

लेकिन उन के इनकार की वजह यही थी कि वो ख़ुद को लीबिया का जंगजू और इन्क़िलाबी मुतसव्वर करते थे इस लिए अपने ख़िलाफ़ उठने वाली नई इन्क़िलाबी तहरीक का उन्हों ने दरुस्त अंदाज़ा नहीं किया। 69 साल की उम्र में इन की मौत उन के अज़म का मज़हर है कि वो शहीद का दर्जा पाकर मरना पसंद करते थे उन के आख़िरी टी वी तक़ारीर से उन के अज़ाइम की झलक मिल रही थी मगर अरब दुनिया में इस तरह किसी हुक्मराँ का अंजाम मग़रिबी ताक़तों के लिए बहुत बड़ी फ़तह है जो एक के बाद दीगर अरब दुनिया को कमज़ोर करते जा रहे हैं। तीवनस, मिस्र, लीबिया के बाद शाम की सूरत-ए-हाल भी मुख़्तलिफ़ नहीं है।

सदर शाम बशारालासद के ख़िलाफ़ तहरीक को कुचलने के लिए शाम की फ़ौज ने 3000 से ज़ाइद बाशिंदों को हलाक किया ही। शाम के हालात पर नज़र रखने वाली मग़रिबी दुनिया लीबिया के बाद अपना रुख इस जानिब करसकती ही। लीबिया के सदर की मौत का सब से ज़्यादा असर सदर अमरीका बारक ओबामा के आइन्दा साल सदारती इंतिख़ाब के इमकानात पर पड़ेगा।

ओसामा बिन लादेन को हलाक करने के लिए सदर ओबामा की जानिब से फ़ौजी कार्रवाई की इजाज़त देने के 6 माह बाद मुअम्मर क़ज़ाफ़ी को हलाक किया गया है। बिन लादन की मौत के बाद बारक ओबामा के इंतिख़ाबी कामयाबी के इमकानात रोशन हो गए थे।

अब क़ज़ाफ़ी की हलाकत से ओबामा को मज़ीद फ़ायदा होगा। अमरीका और अक़वाम-ए-मुत्तहिदा को ख़ातिर में ना लाने वाले और सलामती कौंसल को एक दहश्तगर्द कौंसल क़रार देने वाले मुअम्मर क़ज़ाफ़ी की हलाकत आलिम अरब को कमज़ोर करदेने की साज़िशों का तसलसुल है।

इस वाक़िया का हक़ीक़त पसंदाना जायज़ा लिया जाय तो मग़रिबी दुनिया ख़ासकर अमरीका और नाटो पर मुअम्मर क़ज़ाफ़ी की हलाकतके ज़रीया जंगी जराइम की मुर्तक़िब होने का इल्ज़ाम आइद होगा। तेल की लालच में एक हुक्मराँ को बेदख़ल करने के लिए जारहीयत पसंदी का रुजहान अफ़सोसनाक तरीक़ा से फ़रोग़ पा रहा है।