आलम-ए-बाला की मुलाक़ात ने मुशरिकीन मक्का के मज़ालिम में इज़ाफ़ा कर दिया

यही अय्याम थे, जब रसूल अल्लाह स.व. को मेराज का एज़ाज़ अता हुआ, कि आप स.व. आलम-ए-बाला में अल्लाह ताला से हम मज्लिस हुए और आप स.व. को आस्मानों पर बहुत से अजाइबात और अस्रार का मुशाहिदा कराया गया। वाप्सी पर आप स.व. अल्लाह ताला की तरफ़ से अपनी उम्मत के लिए नमाज़ का तोहफ़ा लेकर आए, जो बंदे और ख़ुदा के दरमयान यकगूना बराह-ए-रास्त राबते का एक वसीला है। ये अमर काबिल-ए-ज़िकर है कि मुसल्मान जब नमाज़ अदा करते हैं तो इस के आख़िरी हिस्सा में जो कलिमात अदा किए जाते हैं, वो वही हैं जो हमकलामी के वक़्त अल्लाह ताली जल्लाजलालुहू और रसूल अल्लाह स.व. के माबैन अदा किए गए थे और ये उन कलिमात से अलामती तौर पर मुसल्मानों की अल्लाह के सामने हुज़ूरी का इज़हार होता है। यानी तमाम कोली इबादतें और तमाम फ़ाली इबादतें और तमाम माली इबादतें अल्लाह के लिए ही हैं। सलाम हो तुम पर ए नबी और अल्लाह की रहमतें और इस की बरकतें हों, सलाम हो हम पर और अल्लाह के नेक बंदों पर।

कमियो नैन (omminion) की मसीही इस्तिलाह ख़ुदाई में शिरकत के मायना देती है, इस लिए रसूल अल्लाह स.व. की आस्मानों पर तशरीफ़ आवरी और अल्लाह ताला से हमकलामी के शरफ़ के इज्हार के लिए मुसल्मान मेराज का लफ़्ज़ इस्तिमाल करते हैं, जिस में ख़ुदाए बुज़ुर्ग-ओ-बरतर की ज़ात जलालत मआब अपनी जगह बरक़रार रहती है और इंसान अपनी हैसियत पर क़ायम रहता है और दोनों के बाहमी ताल्लुक़ में कोई उलझन पैदा नहीं होती।

आलम-ए-बाला की इस मुलाक़ात की ख़बर ने मुशरिकीन मक्का के मज़ालिम में इज़ाफ़ा कर दिया, मजबूरन रसूल अल्लाह स.व. ने अपना आबाई शहर छोड़कर किसी दूसरी जगह पनाह लेने की कोशिश की। आप स.व. ताइफ तशरीफ़ ले गए, जहां आप के मामूं मुक़ीम थे, मगर वहां के लोगों ने आप स.व. से बदसुलूकी की और बदकुमाश लड्कों को आप स.व. के पीछे लगा दिया, जिन्हों ने पत्थर मार मार कर आप स.व. को ज़ख़मी कर दिया और आप स.व. को वापिस मक्का आना पड़ा।

हज ए बैतुल्लाह के लिए हर साल पूरे अरब से लोग मक्का आया करते थे। आप स.व. ने कोशिश की कि कोई क़बीला आप स.व. को पनाह दे दे (यानी आप स.व. के तहफ़्फ़ुज़ की ज़िम्मेदारी क़बूल करले) ताकि आप स.व. अल्लाह का पैग़ाम फैलाने का काम जारी रख सकें। आप स.व. ने इस कोशिश के दौरान पंद्रह क़बाइल के वफ़ूद से राबिता किया, मगर सब ने सख़्ती से इनकार कर दिया।

इसी दौरान आप स.व. की मुलाक़ात मदीना के छः अफ़राद से हुई, जो यहूदीयों और मसीहीयों के हमसाया होने की वजह से अल्लाह के रसूलों और किताबों के बारे में इल्म रखते थे। उन्हों ने ये भी सुन रखा था कि अहल-ए-किताब एक पैग़ंबर मौऊद आख़िरी फ़ारक़लीत मसीहा की आमद के मुंतज़िर भी हैं, इस लिए इन छः ने फ़ैसला किया कि क्यों ना नेक काम में सबक़त हासिल की जाए। चुनांचे उन्हों ने इस्लाम क़बूल कर लिया और वाय‌दा किया कि अगले साल वो मज़ीद लोगों को साथ लाएंगे और हर किस्म की मदद भी बहम पहुंचाएंगे।

अगले साल मदीना के 12 के लग भग मज़ीद ख़ुशनसीब दायरा इस्लाम में दाख़िल हो गए और उन्हों ने रसूल अल्लाह स.व. से इस्तिदा की कि इन के साथ एक मुअल्लिम को भेजा जाए, जो उन्हें नया दीन सीखाए और तब्लीग़ करे। वो मुअल्लिम हज़रत मुस्अब (रज़ी.) थे, उन की कोशिशें तवक़्क़ो से ज़्यादा काम्याब साबित हुईं और वो हज के मौक़ा पर मदीना के ७३ मर्द और औरतों को लेकर मक्का आए, जिन्हों ने रसूल अल्लाह स.व. के दस्त मुबारक पर इस्लाम क़बूल किया और आप स.व. से वफ़ादारी का अह्द किया। इन मदनी मुसल्मानों ने रसूल अल्लाह स.व. को दावत दी कि आप स.व.अपने मक्की साथीयों के हमराह मदीना तशरीफ़ ले आएं, जहां आप स.व. को ना सिर्फ मुकम्मल तहफ़्फ़ुज़ फ़राहम किया जाएगा, बल्कि हम आप स.व. और आप के साथीयों को अपने भाई और बहनें तसव्वुर करेंगे और आप आज़ादी के साथ अल्लाह का पैग़ाम इस के बंदों तक पहुंचाएं।

चुनांचे आप स.व. की इजाज़त से मुसल्मानों की एक बड़ी तादाद खु़फ़ीया तौर पर छोटे छोटे ग्रुपों में मदीना हिज्रत कर गई। इस पर कुफ़्फ़ार मक्का तैश में आगए। उन्हों ने ना सिर्फ मुहाजिरीन की अम्लाक ज़ब्त करलीं, बल्कि (नऊज़-बिल-लाह) रसूल अल्लाह स.व. की जान लेने का मंसूबा बना लिया।

चुनांचे आप स.व. का घर पर ठहरना नामुम्किन हो गया। ये बात काबिल-ए-ज़िकर है कि एक तरफ़ मुशरिकीन मक्का की आप स.व. से दुश्मनी इंतिहा को पहुंच हुई थी, मगर दूसरी तरफ़ आप स.व. की दियानत पर इस क़दर एतिमाद था कि अपनी तमाम अमानतें आप स.व. के पास रख्वाते थे। आप स.व. ने ये तमाम अमानतें अपने चचाज़ाद भाई हज़रत अली (रज़ी.) के सपुर्द करदीं कि इन के मालिकों को लौटा दें और ख़ुद अपने वफ़ादार दोस्त हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ (रज़ी.) के हमराह खु़फ़ीया तौर पर घर से रवाना हो गए और ख़तरात से बचते हुए एक तवील सफ़र तय करके बिल्आख़िर बहिफ़ाज़त मदीना पहुंच गए।