आशिक मिजाज मैडम नूरजहाँ

दिल्ली, 23 सितंबर: दुनिया के किसी भी कोने में ‘मैडम’ शब्द का जो भी अर्थ लगाया जाता हो, पाकिस्तान में यह शब्द सिर्फ मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

जब नूरजहाँ को दिल का दौरा पड़ा, तो उनके एक मुरीद और नामी पाकिस्तानी पत्रकार खालिद हसन ने लिखा था- दिल का दौरा जो उन्हें पड़ना ही था। पता नहीं कितने दावेदार थे उसके! और पता नहीं कितनी बार वह धड़का था उन लोगों के लिए जिन पर मुस्कराने की इनायत की थी उन्होंने।

नूरजहाँ ने महान बनने के लिए बहुत मेहनत की थी और अपनी शर्तों पर जिंदगी को जिया था। उनकी जिंदगी में अच्छे मोड़ भी आए और बुरे भी।

उन्होंने शादियाँ की, तलाक दिए, प्रेम संबंध बनाए, नाम कमाया और अपनी जिंदगी के अंतिम क्षणों में बेइंतहा तकलीफ भी झेली। एक बार पाकिस्तान की एक नामी शख्सियत राजा तजम्मुल हुसैन ने उनसे हिम्मत कर पूछा कि आपके कितने आशिक रहे हैं अब तक?

‘सब आधे सच।’ उन्होंने जवाब दिया। ‘तो आधे सच ही बता दीजिए’- तजम्मुल ने जोर दिया। नूरजहाँ कुछ ज्यादा ही दरियादिल मूड में थीं। उन्होंने गिनाना शुरू किया। कुछ मिनटों बाद उन्होंने तजम्मुल से पूछा, ‘कितने हुए अब तक?’

तजम्मुल ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया- अब तक सोलह! नूरजहाँ ने पंजाबी में क्लासिक टिप्पणी की- हाय अल्लाह! ना-ना करदियाँ बी सोलह हो गए नें!

एक बार किसी ने उनसे पूछने की जुर्रत की कि आप कब से गा रही हैं? नूरजहाँ का जवाब था, ‘मैं शायद पैदा होते समय भी गा ही रही थी।’

सुर में रोना : सन 2000 में जब उनकी मौत हुई, तो उनकी एक बुजुर्ग चाची ने कहा था, जब नूर पैदा हुई थी तो उनके रोने की आवाज सुनकर उनकी बुआ ने उनके पिता से कहा था, ‘यह लड़की तो रोती भी सुर में है।’

नूरजहाँ के बारे में एक और कहानी भी मशहूर है। तीस के दशक में एक बार लाहौर में एक स्थानीय पीर के भक्तों ने उनके सम्मान में भक्ति संगीत की एक खास शाम का आयोजन किया।

एक लड़की ने वहाँ पर कुछ नात सुनाए। पीर ने उस लड़की से कहा, ‘बेटी कुछ पंजाबी में भी हमको सुनाओ।’ उस लड़की ने तुरंत पंजाबी में तान ली, जिसका आशय कुछ इस तरह का था…इस पाँच नदियों की धरती की पतंग आसमान तक पहुँचे!

जब वह लड़की यह गीत गा रही थी, तो पीर अवचेतन की अवस्था में चले गए। थोड़ी देर बाद वह उठे और लड़की के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘लड़की तेरी पतंग भी एक दिन आसमान को छुएगी।’

जरा वाजा लाओ : नूरजहाँ को दावतों के बाद या कहें लोगों की फरमाइश पर गाना सख्त नापसंद था। एक बार दिल्लीClick here to see more news from this city के विकास पब्लिशिंग हाउस के प्रमुख नरेंद्र कुमार उनसे मिलने लाहौर गए। उनके साथ उनका किशोर बेटा भी था।

यकायक नरेंद्र ने मैडम से कहा, ‘मैं अपने बेटे के लिए आपसे कुछ माँगना चाह रहा हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वह इस क्षण को ताजिंदगी याद रखे। सालों बाद वह लोगों से कह सके कि एक सुबह वह एक कमरे में नूरजहाँ के साथ बैठा था और नूरजहाँ ने उसके लिए एक गाना गाया था।’

वहाँ उपस्थित लोगों की सांसे रुक गईं क्योंकि उन्हें पता था कि नूरजहाँ ऐसा कभी कभार ही करती हैं। नूरजहाँ ने पहले नरेंद्र को देखा, फिर उनके पुत्र को और फिर अपने उस्ताद गुलाम मोहम्मद उर्फ गम्मे खाँ को।

‘जरा वाजा तो मँगवाना।’ उन्होंने उस्ताद से कहा। एक लड़का बगल के कमरे से ‘वाजा’ उठा लाया। वाजा यानी हारमोनियम।

उस्ताद गम्मे खान ने तान ली…फिर दूसरी और फिर तीसरी…फिर उनकी तरफ देखा। मैडम ने कहा, ‘अपर वाला सा लाओ’ वह चाहती थीं कि वह एक सप्तक और ऊँचा लगाएं।

उन्होंने नरेंद्र से पूछा क्या गाऊँ? नरेंद्र को कुछ नहीं सूझा। किसी ने कहा ‘बदनाम मोहब्बत कौन करे गाइए।’ नूरजहाँ के चेहरे पर जैसे नूर आ गया।

उन्होंने मुखड़ा गाया और फिर बीच में रुक कर नरेंद्र से कहा, ‘नरेंद्र साहब, आपको पता है इस देश में ढ़ंग का हारमोनियम नहीं मिलता। सिर्फ कलकत्ता में अच्छा हारमोनियम मिलता है। यह सभी लोग भारत जाते हैं, बाजे लाते हैं और मुझे उनके बारे में बताते हैं लेकिन…टूटपैने मेरे लिए कोई हारमोनियम नहीं लाता।’

नरेंद्र ने कहा मैं भेजूँगा आपके लिए। नरेंद्र यह वादा शायद कभी पूरा नहीं कर पाए।