सलतनते आसफ़िया के ख़ात्मा और इंज़िमाम हैदराबाद के बाद से शहर हैदराबाद और सिकंदराबाद के इलावा मुल्क की मुख़्तलिफ़ रियास्तों में निज़ाम हैदराबाद की जायदादें जो ज़रख़रीद थीं उन की तबाही के अमल का आग़ाज़ हुआ और आज भी कई जायदादें जोकि निज़ाम की जानिब से दीगर ख़ानवादूं को बतौर अतीया दी गईं या फिर ख़ुद आसिफ़ जाहि हुक्मरानों की जानिब से छोड़ी गई जायदादें लैंड ग्रैबर्स को खटक रही हैं लेकिन इस के बरअक्स नवाब मीर बरकत अली ख़ान मुकर्रम जाह बहादुर ने दूर अंदेशी और फ़हम का मुज़ाहरा करते हुए अपनी जायदादों को तालीमी ट्रस्ट के तहत महफ़ूज़ कर लिया जिस के नतीजा में आज शहर के कई मर्कज़ी मुक़ामात पर ट्रस्ट की मिलकीयत जायदादें मौजूद हैं और उन पर भी अब निगाहे बद पड़ने लगी है।
मुकर्रम जाह एजूकेशनल ऐंड लर्निंग ट्रस्ट जोकि पुरानी हवेली मुसर्रत महल से चलाये जाता है और ट्रस्ट के मर्कज़ी प्रोजेक्ट में मुकर्रम जाह स्कूल शामिल है इस में गुज़िश्ता यौम तबदीलीयों बल्कि इज़ाफ़ी ट्रस्टीज़ के ऐलान से ये बात वाज़ेह हो रही है कि आसिफ़ सामन नवाब मीर बरकत अली ख़ान मुकर्रम जाह बहादुर ने ट्रस्ट की बागडोर अपने फ़रज़न्दों को सौंप दी है।
बानी और सदर नशीन मुकर्रम जाह एजूकेशनल ऐंड लर्निंग ट्रस्ट मुकर्रम जाह बहादुर ने अपने बड़े फ़र्ज़ंद वाला शान साहिबज़ादा मीर अज़मत अली ख़ान अज़मत जाह को सदर नशीन और ट्रस्टी बनाने के इलावा अस्रा जाह बहादुर की दुख़तर अज़मत जाह की हक़ीक़ी बहन साहबज़ादी शाहकार जाह और हेलन से तव्वुलुद हुए दूसरे फ़र्ज़ंद साहिबज़ादा सिकंदरे आज़म ख़ान आज़म जाह को ट्रस्टीज़ की फ़ेहरिस्त में शामिल करते हुए ट्रस्ट की सरगर्मीयों को वुसअत देने का फ़ैसला किया है।
इस के इलावा ट्रस्ट की जानिब से जायदादों के हुसूल के लिए की जाने वाली क़ानूनी चाराजोई को देखते हुए ऐसा महसूस हो रहा है कि मुकर्रम जाह ट्रस्ट की सरगर्मीयों को वुसअत देने के इलावा मुकर्रम जाह बहादुर की नसल ख़ुद उन सरगर्मीयों में शामिल होने कोशां है।
ट्रस्ट की जानिब से ना सिर्फ़ जायदादों के क़ाबिज़ीन को तख़्लिया की नोटिसें रवाना की गई हैं बल्कि किराया और ट्रस्ट की आमदनी में इज़ाफ़ा की कोशिश भी की जा रही है।
दोनों बिरादरों के दरमयान पैदा होने वाली इन तल्ख़ियों का फ़ायदा किसे हासिल होगा ये तो मुस्तक़बिल के हालात और अदालती फ़ैसलों पर मुनहसिर करता है लेकिन शहर में मौजूद ट्रस्ट की इन जायदादों के तहफ़्फ़ुज़ के ज़रीए मिल्लत-ए-इस्लामीया को काफ़ी फ़ायदा पहुंचाया जा सकता है। अगर ये जायदादें बदतीनत टोलियों के क़ब्ज़ा और तसर्रुफ़ में चली जाती हैं तो ऐसे में मिल्लत के नौनिहालों के नुक़्सान का ख़द्शा है।