आज़ादी के शुभ अवसर पर हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा क़ायम करने की ज़रुरत

अभी पिछले साल की बात है एक 40 साल का आदमी जो ख़ाकी वर्दी में था एक और उतनी ही उम्र के शख्स से बात कर रहा था, उस रोज़ 14 अगस्त थी. आपस की उनकी गुफ़्तगू के दौरान एक ने दूसरे से पूछा “कल छुट्टी है क्या?”. इस सवाल पर दूसरे ने जवाब दिया “हाँ, कल 26 जनवरी है ना… तो छुट्टी है”. जब उनकी ये बात मैंने सुनी तो मैंने उनसे कहा कि नहीं, कल 15 अगस्त है, आज़ादी का दिन. इस पर उन्होंने ऐसे मूंह बनाया मानो मैंने उन्हें कोई बहुत ग़लत बात बता दी है. ये क़िस्सा असल में किसी गली, मोहल्ले, शहर तक सीमित नहीं है, ये लगभग हर जगह है. लोग ये भूलते जा रहे हैं कि भारत को आज़ादी कब मिली?, इसका एक कारण है बच्चों से माँ-बाप का ना बात करना, पढ़ाई को सिर्फ़ पैसे के लिए किया जाना और देश के इतिहास के प्रति उदासीनता.
मैं पिछले कई साल से इस बात को महसूस कर रहा हूँ कि लोग इस क़दर अपने इतिहास से अनजान हो रहे हैं कि क्या ही कहा जाए. एक 12वीं क्लास में पढ़ रही लड़की ने ये ही मानने से इनकार कर दिया कि भारत पे कभी अंग्रेज़ों का क़ब्ज़ा था और जब क़ब्ज़ा नहीं था तो आज़ादी का सवाल ही नहीं. ऐसे ही एक बीकॉम के छात्र से मैंने आज़ादी के बारे में पूछा तो उसने अपने जवाब में ये कहा.. “हम कॉमर्स पढ़ते हैं, हमसे हिस्ट्री क्यूँ पूछ रहे हैं आप?”. कुछ तो ऐसे भी मिल जाते हैं जो कहते हैं भारत मुसलमानों का ग़ुलाम था और जब उन्हें अंग्रेज़ों की बात बताओ.. तो कहते हैं, अच्छा, हम पता करेंगे, तुम्हारी बात क्यूँ मानें. इतना ही नहीं इन लोगों को व्हाट्सअप्प के द्वारा पता चलता है नाथूराम गोडसे ने मोहनदास गाँधी को मार कर अच्छा किया. एक दो गधों ने तो यहाँ तक कह डाला कि गोडसे ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी जब उनसे पूछो कब.. तो कुछ देर शांत रह कर कहते हैं , बताएँगे हम.
देश की शिक्षा व्यवस्था की जो हालत इन पैसा खाऊ स्कूलों ने बना दी है उससे तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब कोई देश का इतिहास जानेगा ही नहीं. एक बार एक हिमाचल प्रदेश की लड़की ने मुझसे फेसबुक पे बात की तो उसने अपनी क्लास की बात मुझसे साझा की, जब एक टीचर ने पूरी क्लास से पूछा कि आप लोग को घूमना हो तो कहाँ घूमोगे.. इस पर मेरी दोस्त ने जब लखनऊ का नाम लिए तो टीचर ने जवाब दिया कि वहाँ मुसलमान रहते हैं, वो मार डालेंगे सबको. ये किस तरह के लोग हैं और किस तरह से अध्यापक बन बैठे हैं. लखनऊ जो कि इतना महान और कई संस्कृतियों का शहर के बारे में ऐसी बात सोचना और एक धर्म-विशेष के बारे में ऐसी बात कहना कितना बुरा है. एक ही वाक्य में आपने नफ़रत भर दी.
खैर इन सब बातों से परे मैं आप लोगों से गुज़ारिश करूंगा कि आप अपने बच्चों को आज़ादी के वक़्त के क़िस्से सुनाएँ, आपसी भाईचारे को क़ायम करने की कोशिश करें और देश को मज़बूत करें.

(अरगवान रब्बही)

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