आज़ाद भारत का असली मालिक आज भी अपने ही देश में है ग़ुलाम !

वैसे तो 15 अगस्त को देश आज़ाद नही हुआ था हां सत्ता शक्ति में फेरबदल जरूर हुआ था। जिसे “Transfer of Power Agreement” कहते हैं। ये कोई आज़ादी नही बल्कि एक प्रस्ताव पारित किया गया था।

फिर भी अगर देश आज़ाद हुआ भी तो आज भी देश का असली मालिक दलित-आदिवासी आज भी गुलाम ही है। मूल सुविधाओं से वंचित आदिवासियों को विकास व् शहरीकरण के नाम पर उन्ही की ज़मीन से उजाड़ा जा रहा है। उनकी खदानों पर कब्ज़ा कर रहीसो को सुविधाएं दी जा रही है।

आदिवासियों की लड़ाई केवल अपनी ज़मीन व् अस्तित्व की लड़ाई है जिसके लिए वो लड़ रहा है तो उसे नक्सली बता कर मारा जा रहा है । नक्सलवाद के नाम पर लाखों मासूम आदिवासियों को मार उनकी ज़मीन सरकारों द्वारा हड़पी जा रही है। खुदको दलित आदिवासी हितैषी बताने वाली दलित पार्टियाँ भी आदिवासियों के साथ हो रहे इस जुल्म के बारे आवाज नही उठाती फिर चाहे वो बसपा हो या बामसेफ,आर.पी.आई,बी.ऍम.पी या फिर अन्य। कोई भी आदिवासियों को मुख्य धारा में शामिल नही करता। अब मनुवादी सरकार फिरसे नक्सलवाद के नाम पर लाखो बेकसूर आदिवासी परिवारों को मार उनकी ज़मीन हड़पने की त्यारी कर रही है जिसे Opration Green का नाम दिया गया है और इसके लिए विशेष तोर पर दुर्गा ब्रिगेड भी तैयार की जा रही है।
इसके खिलाफ दलित आदिवासियों को मिलकर गुजरात की तरह आन्दोलन करना चाहिए।जब हम एकता कर पायेंगे तभी हम अपने ही देश में आज़ाद व् सुरक्षित होंगे।

लेख- विक्की देवान्तक

( ये लेखक के निजी विचार हैं हिंदी सियासत का सहमत होना आवश्यक नहीं है )

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