धमकी भरे ई-मेल के मामले में दहशतगर्द तंज़ीम इंडियन मुजाहिद्दीन के 21 मेम्बर्स पर मकोका के तहत केस नहीं चलाने का खुसूसी अदालत के फैसले को रियासत की हुकूमत बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती देगी. इस फैसले के बाद आईएम के मेम्बर्स की जमानत की राह आसान हो गई है. साथ ही सवाल ये खड़ा हो गया है की क्या मुंबई पुलिस बिना सोचे समझे इन लोगों के खिलाफ सख्ती से लड़ने के लिए बने इस कानून को इस्तेमाल करती है.
पहले पुणे के जंगली महाराज ब्लास्ट मामले में इंडियन मुजाहिद्दीन के लोगों पर से मकोका हटा और अब 2008 टेरर मेल मामले में खुसूसी अदालत कि तरफ से ये कहते हुए मकोका हटा दिया कि दहशतगर्दाना हमले के मामलों में मकोका लागू नहीं हो सकता. क्योंकि ऐसे जुर्म माली फायदे के लिए नहीं किए जाते. कहीं न कहीं मुंबई पुलिस के काम करने के तरीके पर ही सवाल खड़ा कर रहा है. उधर दहशतगर्दों की तरफ से केस लड़ने वाले जमाते उलेमा हिन्द का इल्ज़ाम है कि पुलिस मुस्लिम नौजवानों को बिना किसी सबूत के ही ऐसे कानून में दाल देती थी जिसमे जमानत न हो.
इंडियन मुजाहिद्दीन के 23 दहशतगर्दों को मुंबई पुलिस ने 2008 में पुणा, मुंबई और कुछ दिगर रियासतों से गिरफ्तार कर इंडियन मुजाहिद्दीन गिरोह का भांडाफोड़ किया था और उनपर मकोका के तहत कार्रवाई की. मकोका में इकबालिया बयान भी सबूत के तौर पर होता है, साथ ही उसमे जमानत का कानून नहीं है, लेकिन अब वो बयान भी काम नहीं आएगा इसलिए उनकी जमानत के इम्कानात बढ़ गए हैं.
ये सभी दहशतगर्द रियाज़ भटकल की अगुवाई वाली तंज़ीम इंडियन मुजाहिद्दीन के हैं जिनपर कई ब्लास्ट को अंजाम देने का इल्ज़ाम है. इस फैसले का असर दहशतगर्दाना हमलों के कई मामलों की सुनवाई पर पड़ेगा. जुलाई 2011 सीरियल धमाका मामला, 2006 सीरियल ट्रेन धमाका मामला, औरंगाबाद हथियारों की बरामदगी का मामला लेकिन रियासत की हुकूमत इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देगी.