इंतिख़ाबी मुहिम का आख़िरी मरहला, क़ाइदीन की अदाकारी वो रियाकारी

शहर हैदराबाद में इंतिख़ाबी मुहिम का इख़तेताम हमारे लिए दिलचस्पी का बाइस होता है बल्कि बाज औक़ात बेहतरीन वक़्त गुज़ारी का ज़रीए भी साबित होती है। दोनों शहरों में इंतिख़ाबी मुहिम अब जबकि ख़त्म होने के क़रीब है, ऐसे में अवाम इंतिख़ाबी मुहिम के आख़िरी मराहिल के मुताल्लिक़ पेशन गोईयां शुरू कर चुके हैं और मुख़्तलिफ़ सियासी जमातों के क़ाइदीन की हरकात पर तबसरे किए जाने लगे हैं।

सियासी हालात में आ रही तेज़ तर तबदीली को देखते हुए अवाम का ये कहना है कि अब सियासी क़ाइदीन मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से अवाम को राग़िब करने की कोशिश कर सकते हैं बल्कि अपने जल्से आम के ज़रीए अवाम में ये तास्सुर देने का भी इरादा रखते हैं कि अगर वो नहीं रहे तो अवाम का कोई पुर्साने हाल नहीं होगा।

अवाम का कहना है कि इंतिख़ाबी मुहिम के इख़तेताम पर मुनाक़िद होने वाले जल्सों में इस मर्तबा ना सिर्फ़ वोट की भीक के लिए दामन फैलाए जाएंगे बल्कि शरफ़ाए शहर पर बुहतान तराशी की इंतिहा के साथ साथ अपनी बेबसी और लाचारी का इस तरह इज़हार किया जाएगा कि अगर इन्हें अवाम की ताईद हासिल नहीं हुई तो ना सिर्फ़ वो बल्कि अवाम भी तबाह और बर्बाद हो जाएंगे।

इतना ही नहीं ये भी कहा जा रहा है कि बाअज़ क़ाइदीन तो अपनी शोला ब्यानी और अदाकारी के जौहर दिखाते हुए शहि नशीन पर लड़खड़ाने और गिर पड़ने के मुताल्लिक़ भी मंसूबा तैयार कर रहे हैं ताकि उन की इस हालत पर रहम खाते हुए उन्हें वोट दें। ऐसी इत्तिलाआत भी मौसूल हो रही हैं कि इस अदाकारी के इलावा बाअज़ क़ाइदीन सियासी मैदान में अपनी आइन्दा नसल को रोशनास करवाने के लिए भी इस मौक़ा से फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं।

इतना ही नहीं अब अवाम को इस बात का भी अंदाज़ा हो चला है कि वास्ते, वसीले की ज़रूरत और राय दहिन्दों की अहमीयत इंतिख़ाबी मुहिम के इख़तेताम पर जितनी होती है ये आइन्दा पाँच बरसों में उन की वो अहमीयत बरक़रार नहीं रहती बल्कि उन की अहमीयत भी उतनी ही रह जाती है जितनी एक यौम के लिए मज़दूर को अहमीयत देते हुए इस से मज़दूरी करवाई जाती है।