इंसानी तारीख़ में तर्जुमा एक क़दीम तरीन फ़न

हैदराबाद, 05 दिसंबर: इंसानी तारीख़ में तर्जुमा एक क़दीम तरीन फ़न है। दुनिया में जब से मुख़्तलिफ़ ज़बानों का आग़ाज़ हुआ उसी वक़्त से तर्जुमा का अमल शुरू हुआ। तर्जुमा सिर्फ़ दो ज़बानों के दरमयान मतन की मुंतक़ली नहीं है बल्कि ये दो तहज़ीबों के दरमयान तबादले का अमल है।

इन ख़्यालात का इज़हार मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनीवर्सिटी में शोबा-ए-तर्जुमा और क़ौमी तर्जुमा मिशन के इश्तिराक से जारी तर्जुमा के वर्कशॉप में वाइस चांसलर प्रोफेसर मुहम्मद मियां ने किया।

वर्कशॉप के दूसरे दिन शुरका को ख़िताब करते हुए वाइस चांसलर ने कहा कि मुतर्जिम को अपना ज़हन खुला रखना चाहीए और मुख़्तलिफ़ लोगों के तजुर्बात से उन्हें इस्तिफ़ादा करना चाहीए। प्रोफेसर मुहम्मद मियां ने यूनीवर्सिटी में
तर्जुमा के काम की हिम्मत अफ़्ज़ाई करते हुए कहा कि इस तरह के वर्कशॉप मुसलसल जारी रहने चाहीए।

यूनीवर्सिटी के शोबा‍ तर्जुमा के हवाले से वाइस चांसलर ने कहा कि यहां मुस्तक़बिल में मौलाना आज़ाद की मुख़्तलिफ़ किताबों का अंग्रेज़ी और दीगर इलाक़ाई ज़बानों में तर्जुमा करना चाहीए ताकि इन ज़बानों के बोलने वाले लोग भी मौलाना आज़ाद के ख़्यालात से वाक़िफ़ हो सके।

मौसूफ़ ने यूनीवर्सिटी में उर्दू तर्जुमे और तर्जुमा शूदा किताबों की इशाअत के सिलसिले में मुकम्मल तआवुन का तयक्कुन दिया। क़ब्लअज़ीं आज के प्रोग्राम का आग़ाज़ वर्कशॉप के कोआर्डीनेटर प्रोफेसर मुहम्मद ज़फ़र उद्दीन सदर शोबा-ए-तर्जुमा के ख़ैर मुक़द्दमी कलिमात से हुआ।

उन्होंने बताया कि इस वर्कशॉप के ज़रीया शुरका में तर्जुमा से रग़बत पैदा करने की कोशिश की जा रही है और तवक़्क़ो है कि इसी के बाद लोगों में तर्जुमा का शौक पैदा होगा। आज के मेहमान मुक़र्रर प्रोफेसर ए आर फतहि शोबा-ए-लिसानियात अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी ने अपने लेक्चर में तर्जुमा के मुख़्तलिफ़ पहलूओं पर तफ़सीली गुफ़्तगु करते हुए कहा कि तर्जुमा सिर्फ़ बैन लिसानी ही नहीं बल्कि दरों लिसानी भी होता है और ये बैन तहज़ीबी भी है।

उन्होंने कहा कि मुतर्जिम दरअसल एक सक़ाफ़्ती सफ़ीर है जो एक ज़बान की तहज़ीब की ख़ुसूसीयात को दूसरी ज़बान की तहज़ीब तक ले जाता है। ज़बान के इस्तेमाल के सिलसिले में बयान करते हुए उन्होंने कहा कि मुख़्तलिफ़ इलाक़ाई लहजों में मुस्तामल अलग अलग अलफ़ाज़-ओ-मुहावरों की एहमीयत है और उन्हें ग़लत नहीं कहा जा सकता।

तर्जुमा करते हुए दीगर ज़बानों के अलफ़ाज़-ओ-इस्तिलाहात को इख्तेयार करते हुए हमें तवाज़ुन क़ायम रखना ज़रूरी है। दूसरे दिन के प्रोग्राम के आग़ाज़ में डाक्टर अबदुल हलीम कन्सलटेंट क़ौमी तर्जुमा मिशन ने मर्कज़ी इदारे की सरगर्मीयों पर रोशनी डाली और बताया कि हिंदूस्तान की मुख़्तलिफ़ जमआत के निसाब में शामिल अहम किताबों के तर्जुमा का काम शुरू किया गया है।

क़ौमी तर्जुमा मिशन तर्जुमा को एक ऐसे शोबा की शक्ल देना चाहता है जिसमें लोग तर्जुमा को अपनाकर करीयर बना सके। सदर शोबा-ए-तर्जुमा प्रोफेसर मुहम्मद ज़फ़र अली उद्दीन ने बताया कि मौलाना आज़ाद यूनीवर्सिटी के कोर्स एम ए तर्जुमा में तलबा को अमली तर्जुमा के प्राजेक्ट के ज़रीया मुख़्तलिफ़ किताबों के तर्जुमा की मश्क़ करवाई जाती है जिसके ज़रीया एक अच्छे मुतर्जिम बन सकते हैं।

इस वर्कशॉप में शोबा तर्जुमा शोबा अरबी शोबा फ़ारसी शोबा तरसील आम्मा-ओ-सहाफ़त के इलावा हैदराबाद सेंटर्ल यूनीवर्सिटी के असातिज़ा-ओ-तलबा शरीक हैं।