इंसान की हिर्स ओ‍ तमह ( खाहिशात)

हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया अगर (बिलफ़र्ज़ वालतक़दीर) आदमी के पास माल-ओ-दौलत से भरे हुए दो जंगल हों 0तब भी वो तीसरे जंगल की तलाश में रहेगा (यानी उस हिर्स-ओ-तमह की दराज़ी का ये आलम है कि किसी भी हद पर पहुंच कर उसको सेरी हासिल नहीं होती) और आदमी के पेट को मिट्टी के अलावा और कोई चीज़ नहीं भर सकती (यानी जब तक वो क़ब्र में जाकर नहीं लेट जाता, उस वक़्त तक उसकी हिर्स ओ-तमह का ख़ातमा नहीं होता।

ताहम ये बात अक्सर लोगों के एतबार से फ़रमाई गई है, वर्ना ऐसे बंदगान ख़ुदा भी हैं, जिनमें हिर्स-ओ-तमह के होने का तो क्या सवाल अपनी ज़रूरत के बक़दर माल-ओ-अस्बाब की भी उन्हें परवाह नहीं होती) और अल्लाह तआला बुरी हिर्स से जिस बंदे की तौबा चाहता है कुबूल कर लेता है। (बुख़ारी-ओ-मुस्लिम)

हदीस शरीफ़ के आख़िरी अलफ़ाज़ का मतलब ये है कि गुनाहों से तौबा को कुबूल करना चूँकि परवरदीगार की शान ए रहमत है और उन गुनाहों का ताल्लुक़ ख़ाह ज़ाहिरी बद अमलियों से हो या बातिनी बुराईयों से, इसलिए बुरी हिर्स में मुब्तला होने वाला शख़्स अगर इख़लास-ओ-पुख़्तगी के साथ इस बुराई से अपने नफ्स को बाज़ रखने का अहद कर लेता है और अपने परवरदीगार से तौबा-ओ-इस्तिग़फ़ार करता है तो उसकी तौबा कुबूल की जाती है।

या ये मतलब‌ हैं कि अल्लाह तआला जिस शख़्स को इस बुराई से पाक करना चाहता है, इस पर अपनी रहमत के साथ मुतवज्जा होता है, बाएं तौर कि उसको इस बुरी ख़सलत के अज़ाला की तौफ़ीक़ और नफ्स को पाकीज़ा-ओ-मुहज़्ज़ब बनाने की बातिनी ताक़त अता फ़रमाता है।

इस हदीस ए शरीफ़ में ये तंबीह‌ भी है कि इंसान की जिबलत में बुख़ल का माद्दा रखा गया है और ये बख्श ही है जो हिर्स-ओ-तुम्ह का बाइस बनता है, लिहाज़ा हर शख़्स को चाहीए कि इन्फ़ाक़-ओ-ईसार के ज़रीए बख्श की सरकूबी करता रहे, ताकि हिर्स को राह पाने का मौक़ा ना मिले।