इजरायल और अमेरिका की नीतियां सिर्फ़ मुस्लिम विरोधी!

झूठ बोलने वाले जायोनी अमेरिका के साथ मिलकर ईरान को क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताने की चेष्टा में हैं और दावा करते हैं कि ईरान परमाणु हथियार प्राप्त करने का इरादा रखता है। ईरानोफोबिया को हवा देने के लिए प्रयास करना अमेरिका और इस्राईल की संयुक्त नीति का भाग है। इस्राईल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतेनयाहू की वाशिंग्टन यात्रा का एक लक्ष्य इस विषय को हवा देने के लिए प्रयास करना है।

बिनयामिन नेतेनयाहू ऐसे समय में अमेरिका गये हैं जब अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में चुनाव होने वाले हैं। नेतेनयाहू ने वाशिंग्टन जाने से पहले कहा था कि वह ईरान सहित क्षेत्र के कुछ मामलों के बारे में ट्रंप से वार्ता करेंगे। इससे पहले अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोम्पियो ने भी क्षेत्र की यात्रा के दौरान ईरान और हिज़्बुल्लाह पर दबाव बढ़ाने के लक्ष्य से निराधार आरोप मढ़ने का प्रयास किया था।

नेतेनयाहू अपनी इस प्रकार की कई यात्राओं में ईरान के खिलाफ दुष्प्रचार को हवा देने का प्रयास किया परंतु वह इसमें सफल नहीं हुए।
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह पर दबाव में वृद्धि और दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का ईरान पर आरोप लगाना अमेरिका, इस्राईल और सऊदी अरब का संयुक्त कार्यक्रम है। उनकी यह नीति व कार्यक्रम सर्वविदित हो चुका है और इसमें उन्हें सफलता नहीं मिलेगी।

इन सबके बावजूद झूठ बोलने वाले जायोनी अमेरिका के साथ मिलकर ईरान को क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताने की चेष्टा में हैं और दावा करते हैं कि ईरान परमाणु हथियार प्राप्त करने का इरादा रखता है। यह झूठ ऐसे समय में बोला जा रहा है जब विश्व जनमत इस बात को बहुत अच्छी तरह जानता है कि इस्राईल के पास कम से कम 200 परमाणु वार हेड्स हैं।

अभी कुछ समय पहले क्यूबा के एक विशेषज्ञ ख्वान गैलमेन ने नेतेनयाहू को झूठे व्यक्ति की संज्ञा देते हुए लिखा था कि नेतेनयाहू ने कई साल पहले राष्ट्रसंघ की महासभा के वार्षिक अधिवेशन में दावा किया था कि ईरान अगले कुछ महीनों में 90 प्रतिशत यूरेनियम का संवर्द्धन कर लेगा। नेतेनयाहू के कथनानुसार वह रेड लाइन तक पहुंच जायेगा।

इस प्रकार नेतेनयाहू ने वर्ष 1996 में कहा था कि ईरान ने परमाणु बम बना लिया है।” यह झूठ विश्व समुदाय की जानकारी और समझ का अपमान है जबकि अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर जान मेर्सियारमेर ने कहा है कि ईरान क्षेत्र के किसी भी देश के लिए ख़तरा नहीं है और वास्तविकता यह है कि अमेरिका सीधे तौर पर ईरान के लिए ख़तरा है न कि ईरान अमेरिका के लिए।

पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका की ट्रंप सरकार ने इस्राईल और सऊदी अरब के कहने पर ईरान को लक्ष्य बना रखा है और वह ईरान की इस्लामी व्यवस्था को बदलना चाहती है।

बहरहाल इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने पिछले महीने कहा था कि अमेरिकी सऊदी अरब और क्षेत्र के कुछ देशों के उकसाने पर उन्हें और ईरान को आमने सामने करना चाहते हैं परंतु अगर उन्हें बुद्धि होगी तो अमेरिकी छलावे में नहीं आयेंगे।