इत्तेबा-ए- नबवी की उम्दा मिसाल

हज़रत अबूहुरैरा रज़ी०से हज़रत सईद मक़बरी (ताबई) रज़ी० रिवायत करते हैं कि (एक दिन) वो (हज़रत अबूहुरैरा रज़ी०) कुछ लोगों के पास से गुज़रे (जो एक जगह खाने के दस्तरख़्वान पर जमा थे) और उनके सामने भुनी हुई बकरी रखी थी।

उन्होंने (खाने के लिए) हज़रत अबूहुरैरा रज़ी० को भी बुलाया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया और (अपने ना खाने के उज़्र में) फ़रमाया कि रसूल करीम स०अ०व०इस दुनिया से तशरीफ़ ले गए और कभी आप स०अ०व० ने जो की रोटी से भी अपना पेट नहीं भरा, लिहाज़ा ये कैसे गवारा हो सकता है कि में भुनी बकरी जैसी लज़ीज़ ग़िज़ा से अपना पेट भरूं, जब कि हुज़ूर अकरम स०अ०व० को पेट भर जो की रोटी भी मयस्सर ना होती थी। (बुख़ारी)

हज़रत अनस रज़ी०से रिवायत है कि (एक मर्तबा) वो हुज़ूर नबी करीम स०अ०व० की ख़िदमत में जौ की रोटी और ऐसी चर्बी लेकर आए, जो ज़्यादा दिन रखी रहने की वजह से बदबूदार हो गई थी। नीज़ (हज़रत अनस रज़ी० ने ही) बयान किया कि नबी करीम स०अ०व० ने (एक मर्तबा) अपनी ज़रा मदीना में एक यहूदी के पास गिरवी रख कर इससे अपने अहले बैत के लिए कुछ जौ लिए।

हज़रत अनस रज़ी० से रिवायत करने वाले ने ये भी बयान किया कि मैंने हज़रत अनस को ये फ़रमाते हुए सुना कि हुज़ूर अकरम स०अ०व० के अहले बैत की ऐसी कोई शाम नहीं होती थी, जिस में उन के पास एक सा गेहूं या कोई और गल्ला रहता हो, जब कि हुज़ूर स०अ०व० की नौ बीवीयां थीं। (बुख़ारी)