इदारा अदबीयात उर्दू में ख़त्ताती के फ़न कारों की नुमाइश

नुमाइंदा ख़ुसूसी
तहसील हुस्न ख़त इंसान को बाइज़्ज़त तनाफ़ुस की दावत देता है जिस की बुनियाद पर वो आइन्दा ज़िंदगी में सरगर्म अमल हो कर बाकमाल बन जाता है । अपने हम असुरों से फ़ौक़ियत ले जाता है और आख़िरश तारीख़ में अपना नक़्श सबुत करजाता है । तहसील हुस्न ख़त से जमाल पसंदी का मलिका भी प्रवान चढ़ता है क्यों कि ख़ुशख़त एक आर्ट , पेंटिंग , नक़्श निगारी और लौह नवीसी का अमल है । एहसास जमाल और क़दर अफ़्ज़ाई लताफ़त-ओ-नफ़ासत एक पाकीज़ा सिफ़त है । इस के ज़रीया इंसान अच्छे बुरे में तेज़ करता है । मसाइब-ओ-मुहासिन के साथ सही बरताव करता है और एहसास जमाल उस की ज़िंदगी और कैरेक्टर पर मुनाकिस हो कर इस के मिज़ाज-ओ-मज़ाक़ को हम आहंगी-ओ-तवाज़ुन के सांचे में ढाल देता है ।

उलमाए नफ़सियात इंसान की ख़ुशख़ती और इस कीबदख़ती से इस की अंदरूनी कैफ़यात का अंदाज़ा करलेते हैं , क्यों कि इंसान के नफ़सियाती ख़साइस-ओ-इमतियाज़ात इस के ज़ाहिरी आमाल-ओ-अहवाल मैं मुजस्सम हो जाया करते हैं । ख़त्ताती के लाज़वाल मैदान में बहुत से हज़रात ने कारहाए नुमायां अंजाम दीए । इन्हीं में से उभरती हुई एक होनहार तालिबा हसनी फ़ातिमा हैं जिन्हों ने जामाता अलहसनात मुरादनगर से आलमीत का निसाब मुकम्मल करने और उर्दू मीडियम से सैकिण्ड अर में फ़रस्ट डीवीझ़न से कामयाब होने के साथ साथ ख़त्ताती में भी कामयाब कोशिश की ।

ये 20 साला तालिबा इदारा अदबीयात उर्दू , हैदराबाद में कीली गिर इफ्फी की तर्बीयत हासिल कररही है ये दो साला कोर्स है जिस के इस ने दीढ़ साल मुकम्मल करलिए हैं । इदारा अदबीयाततलबा तालिबात की जानिब से तैय्यार करदा ख़त्ताती के फ़न पारों की नुमाइश रखता है । साल-ए-रवां 10 ता 21 मार्च बमुक़ाम ऐवान उर्दू पंजा गट्टा में ये नुमाइश रखी गई है इसनुमाइश को देखने के बाद आप को यक़ीनन ख़ुशी होगी और ये भी वाज़िह होगा कि हमें ख़ुशख़ती सीखना क्यों ज़रूरी है और हमारी मादरी ज़बान के फ़रोग़ में इस की क्या एहमीयत है । मज़कूरा नुमाइश मैं हसनी फ़ातिमा के हाथ से ख़ूबसूरत ख़त में लिखी हुईसूरा मुज़म्मिल नाज़रीन की तवज्जा का मर्कज़ बनी हुई है ।

हसनी फ़ातिमा के वालिद अबदुर्रहीम एक ख़ानगी मुलाज़िम हैं और ये अबदुल ग़फ़्फ़ार उस्ताज़ ख़त्तात की तलमीज़ा है ।नीज़ इस नुमाइश मैं हसनी ही के हाथ का लिखा हुआ कलिमा तुय्यबा , दरूद शरीफ़ और प्यारे अंदाज़ में गुलदान पर लिखा हुआ माशा अल्लाह भी रखा गया है । जिस वक़्त हम नेहसनी से ख़ुसूसी मुलाक़ात की तो वो अंडा पर बिसमिल्लाह लिख रही थी जो बहुत हुसैन और मस्हूर कुन था । हसनी ने बतायाकि वो क्लास के इलावा घर में भी काफ़ी मश्क़ करती हैं । मज़ीद इस ने बताया कि सूरा मुज़म्मिल लिखने में 3 महीने लगे । मैंने उसे 5मर्तबा लिखा छुट्टी मर्तबा में आख़िरी शक्ल दे कर नुमाइश के लिए रखा । हसनी के हाथ की लिखी हुई सूरत की ख़ूबसूरत और दिलकश किताबत की वजह से इंतिज़ामीया ने उसे प्रिंटिंग की शक्ल दे कर आम करने का फ़ैसला किया । चुनांचे उस की 3 हज़ार कापीयांतबा कराकर बतौर हदया रख ली गई हैं । हसनी के मुताबिक़ इस ने अपनी इस काविश के लिए ख़त्ताती का आली मयारी क़लम इस्तिमाल किया है ।

इस तरह इस तालिबा ने पेंसिल से ख़ूबसूरत दरूद शरीफ़ लिख कर नुमाइश में रखी है । गुफ़्तगु के इख़तताम पर हसनी ने बताया कि इस अमल से मेरा मक़सद सिर्फ और सिर्फ ख़िदमत-ए-ख़लक़ और अल्लाह पाक को राज़ी करना है । क़ारईन ! हुस्न ख़त इंसान का बहुत ख़ूबसूरत ज़ेवर है । लिहाज़ा हर तालिब-ए-इल्म को ज़रूर ख़ुशख़त होना चाहीए । आजकल स्कूलों में फ़ुज़ूल ड्राइंग की जाती है जिस से ना दुनिया का कोई फ़ायदा है ।

ना आख़िरत का , हम अख़ीर में यही दुआ करते हैं कि अल्लाह हसनी फ़ातिमा को मज़ीद तर कुयात से नवाज़े और ऐसी दुख़तर मिल्लतऔर होनहार तालिबा हर घर में हो जो दोनों जहां में बरकत का बाइस बने । आमीन ।।