शहर में हंगामी ख़िदमात अंजाम देने वाले इदारे किस हद तक मुस्तइद हैं और वो शहर से किस हद तक वाक़िफ़ हैं इस का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 108 एम्बुलेंस सर्विस के ड्राईवर चारमीनार का पता पूछते हैं और 100 नंबर पर पुलिस को किसी हंगामी सूरते हाल से मतला (आगाह) करने के लिए दोता तीन मिनट तफ़सीलात फ़राहम करने में लग जाते हैं और फिर मौके पर पुलिस को पहूंचने के लिए 30 मिनट लगते हैं।
शहरी इलाक़ों में हंगामी ख़िदमात की सूरते हाल से अंदाज़ा होता है कि हंगामी ख़िदमात की अंजामदेही के ज़िम्मेदार इदारे किस हद तक ख़िदमात की अंजामदेही के मुतहम्मिल हैं।
चंद यौम क़ब्ल न्या पूल के क़रीब हंगामा आराई को देखते हुए जब पुलिस को मतला (आगाह) किया गया तो ज़ाइद अज़ 4 फ़ोन काल्स के बाद पुलिस की गाड़ी मौके पर पहूँची उस वक़्त तक 4 अफ़राद बाशमोल दो ख़्वातीन ज़ख़्मी हो चुकी थीं और उन के सरों से ख़ून बह रहा था। इस के बावजूद पुलिस मुआमला को वहीं रफ़ा दफ़ा करने में मुस्तइद नज़र आ रही थी और हादसा पर पहूंचने वाले ओहदेदार 100 नंबर पर मतला (आगाह) करने वालों के मुताल्लिक़ ब्रहमी का इज़हार कर रहे थे कि आया लोग क्यों इतने ज़िम्मेदार शहरी बनने की कोशिश करते हैं कि सड़क पर होने वाली हंगामा आराईयों से भी 100 नंबर पर मतला (आगाह) कर देते हैं।
चूँकि हंगामी ख़िदमात की अंजामदेही कोई मामूली काम नहीं होता बल्कि बरवक़्त ख़िदमात की अंजामदेही का आग़ाज़ हंगामी ख़िदमात अंजाम देने वालों की ख़ुसूसीयत होती है लेकिन जब इलाक़ों से ही हंगामी ख़िदमात अंजाम देने वालों की वाक़फ़ीयत ना हो तो ख़िदमात की रसाई उन इलाक़ों तक कैसे हो पाएगी? इस सिलसिले में मुताल्लिक़ा मह्कमाजात को चाहीए कि वो इस ख़ुसूस में इक़दामात करते हुए ऐसे अफ़राद को हंगामी ख़िदमात के अहम बिलख़ुसूस अवामी राबिता के निज़ाम से मरबूत करे जो ना सिर्फ़ इलाक़ों और मुहल्लाजात से वाक़िफ़ हों या फिर कम अज़ कम शहर के अहम मुक़ामात से वाक़फ़ीयत रखता हो।