कोलकाता की मुख्य मस्जिद के इमाम सैयद मोहम्मद नुरूर रहमान बरकती के खिलाफ कोलकाता पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है। हाल ही में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले के विरोध में बयान दिया था। उनके बयान में कुछ जगहों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आपत्तिजनक बातें कही गई थी जिसके आधार पर उनके खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया है।
उनके बयान के बाद से ही ये मामला सियासी रंग पकड़ लिया था। भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने इमाम के ख़िलाफ़ थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। पार्टी के महासचिव और पश्चिम बंगाल के प्रभारी सिद्धार्थ नाथ सिंह ने उनके बयान की निंदा करते हुए उनकी गिरफ़्तारी की मांग की थी।
उनके बयान को ‘फतवा’ करार देते हुए भाजपा के पश्चिम बंगाल प्रभारी सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा था कि हमारी मांग है कि ममता बनर्जी तत्काल उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दें। हमारे प्रधानमंत्री के खिलाफ फतवा बहुत निंदनीय है।
वहीं पश्चिम बंगाल के स्थानीय भाजपा नेता मानस सरकार ने अपने वीडियो स्टेटमेंट में कहा है कि इमाम नुरूर का सिर काटकर काली के चरणों में रखने वाले को वह एक करोड़ का इनाम देंगे।
क्या था मामला
कोलकाता प्रेस क्लब में एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस ऑल इंडिया मजलिसे शुरा और ऑल इंडिया माइनॉरिटी फ़ोरम की तरफ़ से शनिवार दोपहर आयोजित की गई थी मजलिसे शुरा की नुमाइंदगी टीपू सुल्तान मस्जिद के इमाम सैय्यद मुहम्मद नूरूर रहमान बरकती कर रहे थे और माइनॉरिटी फ़ोरम के चेयरमैन टीएमसी सांसद इदरीस अली भी मौजूद थे।
इस प्रेस कांफ्रेंस के वीडियो में मौलाना नूरुर रहमान ने कहा कि वह फ़तवा जारी कर रहे हैं प्रधानमंत्री के खिलाफ। उन्होंने कहा कि अगर कोई बहादुर शख़्स प्रधानमंत्री के चेहरे पर स्याही लगाता है तो उसे 25 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा।
हालांकि बाद में उन्होंने इस बात से इंकार किया कि उन्होंने कोई फतवा जारी किया है। उन्होंने कहा कि मैंने फ़तवा नहीं बयान दिया है। फ़तवा तो किसी सवाल का जवाब होता है। यह मेरा बयान है जिसे फ़तवा नहीं कहा जा सकता।
हालांकि मीडिया का एक धड़ा और बीजेपी उनके बयान को फतवा करार दे रही है लेकिन इस्लामिक मामलों के जानकारों के मुताबिक फतवा सुनाने का हक इस्लाम उनकों देता है जो मुफ़्ती होते हैं। इस्लाम का गहराई से अध्ययन मुफ़्ती होने की अहम शर्त है। इमाम बरकाती को अगर मुफ्ती मान भी लिया जाये लेकिन तब भी इमाम के बयान को तो हरगिज फतवा नहीं माना जा सकता। फतवा के मायने इस्लाम और कुरआन की रोशनी में रखकर राय देने जैसा होता है।