इरशाद अली और मोरीफ क़मर आतंकवाद के आरोपों से ११ साल बाद बरी

दिल्ली। स्थानीय निचली अदालत ने एक दशक से भी अधिक समय के पश्चात गुरुवार को दो मुस्लिम युवकों इरशाद अली और मोरीफ क़मर को आतंकवाद के आरोपों से बरी कर दिया। इन दोनों को दिसंबर 2005 में गिरफ्तार किया गया था तथा एक सप्ताह के लिए ‘अवैध तरीके से हिरासत’ में रखा गया था। इसके बाद इन दोनों का आतंकी साजिश के आरोप में नामित किया गया था। दोनों दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ और इंटेलीजेंस ब्यूरो के लिए मुखबिरी किया करते थे।

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पुलिस ने दावा किया था कि इन दोनों को दिल्ली में मुकरबा चौक पर 9 फरवरी 2006 में हथियार और गोला बारूद के साथ गिरफ्तार किया गया था, जहाँ से वे जम्मू से बस से जाने वाले।इस मामले को लेकर भाई ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी जिस पर अदालत ने घटना के मामले सीबीआई जांच का आदेश दिया में था। सीबीआई ने 11 नवम्बर को अपनी क्लोज़र रिपोर्ट पेश की थी जिसमे कहा गया था कि ये दोनों दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ और इंटेलीजेंस ब्यूरो के लिए मुखबिरी किया करते थे।इन पुलिस ने इन दोनों को गलत तरीके से फंसाया था। ये दोनों वर्ष २००९ में जमानत पर रिहा हुए थे।

रिहाई तक का 11 साल का सफर। …

– वर्ष 2001 में इरशाद अली, जो एक ऑटो रिक्शा चालक था, विशेष प्रकोष्ठ और आईबी के लिए एक मुखबिर के रूप में काम शुरू कर दिया।

– 11दिसंबर 2005 में को अली का एक आईबी अधिकारी के साथ एक विवाद हुआ था। अली को कथित तौर पर जम्मू-कश्मीर में एक आतंकवादी शिविर में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा था, लेकिन उसने मना कर दिया।

12 दिसंबर 2005 को इस आईबी अधिकारी ने अली को धौला कुआं पर बुलाया था, जिसके बाद उसका विशेष प्रकोष्ठ और आईबी के अधिकारियों ने “अपहरण कर लिया”।

14 दिसंबर 2005 को अली के पिता मोहम्मद यूनुस लापता की शिकायत दर्ज करने के सुल्तानपुरी पुलिस थाने के पास गये।

22 दिसंबर 2005 को कमर उर्फ ​​नवाब को दिल्ली के कश्मीरी गेट से आंखों पर पट्टी बांधकर विशेष प्रकोष्ठ और आईबी के अधिकारी कहीं बुला ले गए था।

28 दिसंबर 2005 को कमर के परिवार के सदस्यों को दिल्ली में भजनपुरा पुलिस थाने में इसके लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई।

31 दिसंबर 2005 को अली के मामले में दायर की गई रिपोर्ट के सम्बन्ध में पुलिस थाने के रिकॉर्ड में कहा गया कि मोहम्मद यूनुस की शिकायत 26 दिसंबर को प्राप्त की गई थी।

7 से 10 जनवरी के बीच कमर के भाई ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, दिल्ली के पुलिस आयुक्त और उपराज्यपाल को टेलीग्राम भेजा तथा उसके लापता भाई का पता लगाने के लिए मदद की मांग की।

9 फरवरी, 2006 को भजनपुरा पुलिस स्टेशन के एसएचओ ने एक नोटिस एक अख़बार में प्रकाशित करवाया तथा इस सम्बन्ध में जनता से मदद की मांग की।

उसी शाम स्पेशल सेल ने दावा किया कि ये दोनों तो अल बद्र के उग्रवादी थे और जम्मू से वापसी पर इनको गिरफ्तार किया गया था। स्पेशल सेल ने दावा किया कि आरडीएक्स, कारतूस, डेटोनेटर और एक चीनी पिस्तौल उनके पास से बरामद किए गए। दोनों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

25 फरवरी को कमर के भाई काशिफ अली ने एक याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष पेश की तथा सीबीआई को मामले के हस्तांतरण की मांग की।

4 अप्रैल 2006 को दिल्ली पुलिस ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट हाईकोर्ट के समक्ष दायर कर अपनी पुरानी कहानी दोहराई लेकिन लेकिन यह बात छुपा ली कि ये दोनों आईबी के लिए काम कर रहे थे।

6 मई 2006 को मामला उच्च न्यायालय में लंबित था, वहीं स्पेशल सेल का आरोपपत्र निचली अदालत में दायर किया।

9 मई 2006 को हाई कोर्ट ने स्पेशल सेल की जांच के बारे में संदेह व्यक्त किया। उसका यह कहना कि यह मामला स्वतंत्र एजेंसी से जांच के लिए एक उपयुक्त नहीं है। तब मामले क्र जाँच सीबीआई से करने के निर्देश दिए।

4 जुलाई 2007 को सीबीआई ने अपनी पहली प्रारंभिक रिपोर्ट पर विशेष प्रकोष्ठ की कहानी पर सवालिया निशान लगा दिया था फिर उच्च न्यायालय ने सी बीआई को इस मामले में “गहराई से जांच” का निर्देश दिया।

24 अक्टूबर 2007 को कोर्ट ने सीबीआई की जांच में देरी पर अपनी असंतुष्टि जताई।

28 नवंबर 2007 को सीबीआई की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें फिर स्पेशल सेल के मामले को खारिज कर दिया।

11 नवंबर 2008 को विस्तृत जांच करने के बाद सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि एक झूठे मामले में इरशाद अली और कमर, जो विशेष प्रकोष्ठ और आईबी के अधिकारियों के लिए मुखबिरों के रूप में काम कर रहे थे, के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। अपने निष्कर्षों की पुष्टि करने के लिए इरशाद के मोबाइल फोन के कॉल विवरण रिकॉर्ड भी हासिल किया।दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की भी की गई।

24 दिसंबर, 2008 को इरशाद ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट के आधार पर मुक्ति की मांग कर निचली अदालत के समक्ष एक आवेदन पेश किया।

13 जनवरी 2009 को सीबीआई ने इरशाद के आवेदन पर अनापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया।

31 जनवरी, 2009 को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के इस आवेदन का विरोध किया।