इराक़ में मसल्की तशद्दुद

इराक़ बदतरीन सयासी बोहरान के दरमयान गुरु ही-ओ-मसलकी कशीदगी से भी दो-चार होरहा है। बग़दाद और नसीरीया में हुए सिलसिला वार बम धमाकों में 75 से ज़ाइद अफ़राद हलाक हुई। हमला आवरों ने मख़सूस ग्रुप को निशाना बनाया।

दिसम्बर में अमरीकी फ़ौज के आख़िरी दस्ते की इराक़ से वापसी के बाद कई बम धमाके तशवीश की बात है। अमेरीका और मग़रिबी दुनिया की पालिसी पोशीदा या खुले आम यही है कि दुनिया तबाह होजाए और वो तवाना-ओ-ताक़तवर रहीं। लोग भूके मरें उन के अवाम आराम से ताय्युशात की ज़िंदगी गुज़ारें।

इराक़ के अवाम को एक वक़्त की रोटी से महरूम कर देने वाली मग़रिबी ताक़तें जंग से तबाह इस मुल्क को बे यार-ओ-मददगार छोड़कर फ़रार होने में कामयाब होगई हैं। अब इराक़ में इक़तिदार की लड़ाई ने सयासी बोहरान पैदा करदिया है।

इराक़-ओ-अफ़्ग़ानिस्तान को ख़ाक-ओ-ख़ून में नहला कर पाकिस्तान पर धौंस जमाते हुए ईरान को जंग के दहाने पर लाखड़ा करने की कोशिश करनेवाली मग़रिबी ताक़तों ने इराक़ के लिए बहुत ख़राब और बदतरीन पालिसी बनाई है। मसलकी झगड़ों को हुआ दे कर अमन-ओ-इस्तिहकाम को तबाह कर दिया गया है। बग़दाद और नसीरीया के जिन इलाक़ों को निशाना बनाया गया वहां शीया अफ़राद की अक्सरीयत है।

मसलकी झगड़ों को कशीदा बनाने की ख़ातिर की गई कार्यवाईयों की संजीदगी से जायज़ा लेने की ज़रूरत है ये ऐसे हमले हैं जिस की मदद से दुश्मन ताक़तें इराक़ को मज़ीद अबतर बनाना चाहती हैं ताकि इराक़ के शहरी चाहे वो सुन्नी हूँ या शीया या कुरद तमाम आपस में मुतसादिम होकर बदअमनी की कैफ़ीयत से दो-चार रहें।

इराक़ के दार-उल-हकूमत बग़दाद में मसरूफ़ तरीन औक़ात में धमाका किया गया जहां सुबह के वक़्त मज़दूर तबक़ा अपनी रोज़मर्रा की मज़दूरी के लिए इंतिज़ार करता ही। इस के फ़ौरी बाद सब से ज़्यादा हलाकत ख़ेज़ धमाका ज़िला काज़मीह में किया गया। ये इलाक़ा भी शीया अक्सरीयती आबादी वाला है।

इस तशद्दुद में अचानक इज़ाफ़ा ऐसे वक़्त हुआ जब वज़ीर-ए-आज़म नूरी अलमालिकी ने सयासी ख़ला को पर करने के लिए जारी कोशिशों के दरमयान एक मज़बूत इक़तिदार की ख़ाहिश की।

अमरीकी फ़ौज की वापसी के बाद इराक़ पर एक मज़बूत और ताक़तवर अज़म वाली हुकूमत का होना ज़रूरी है जो जंग से तबाह मुल्क का नज़म-ओ-ज़बत किसी तास्सुब पसंदी के बजाय ग़ैर जांबदाराना, बेबाकी से चलासकी। लेकिन अमरीकी फ़ौज के जाने के बाद सिलसिला वार धमाकों के ज़रीया ये तास्सुर देने की कोशिश की जा रही है कि इराक़ में अमरीकी फ़ौज का ठहरना ही मुनासिब था।

पंद्रह दिन क़बल भी बग़दाद में ताक़तवर धमाका हुआ था जिस में 63 से ज़ाइद अफ़राद हलाक हुए थे। गुज़श्ता एक साल के दौरान इस शहर में सब से ज़्यादा धमाके हुए हैं और अम्वात भी इसी शहर में ज़्यादा दर्ज की गईं।

हर रोज़ किसी ना किसी घर से जनाज़ा उठता है लेकिन हालिया धमाकों की वजह अक्सरीयती शीया और सुन्नी तबक़ा के दरमयान बाहमी इत्तिहाद के जज़बा को फ़रोग़ देने की कोशिशों को नाकाम बनाना है। इराक़ में सुनी अक़ल्लीयत में होने के बावजूद बरसों हुक्मरानी के फ़राइज़ अंजाम दिये।

मगर जो ताक़तें सुनी और शीया के दरमयान दुश्मनी को हवा देना चाहती हैं उन की ही कारस्तानी है कि उन्हों ने एक ऐसे वक़्त खूँरेज़ हमले किए जब शीया तबक़ा के लाखों अफ़राद सोगवारी के अय्याम से गुज़रते हैं। कर्बला और दीगर मुक़द्दस मुक़ामात पर शीया सोगवार उन की एक बड़ी तादाद जमा होती है।

ऐसे ख़ास मौक़ा पर ख़ुदकुश या बम धमाके मंसूबा बंद साज़िश का हिस्सा ही होते हैं जिस को समझते हुए शीया बिरादरी के ज़िम्मेदारों को मुख़ालिफ़ सुनी जज़बात भड़काने से गुरेज़ करना चाहीए। ख़ून का बदला ख़ून या इंतिक़ाम की कार्यवाईयों से इराक़ का हर इलाक़ा क़ब्रिस्तान में तबदील हो जाएगा।

ग़ैर मुल्की अफ़्वाज ने इराक़ को बदअमनी के ख़तरनाक दहाने पर छोड़ने के इलावा सयासी बोहरान को शिद्दत की नज़र करदिया है। इस लिए वज़ीर-ए-आज़म नूरी अलमालिकी की हुकूमत को अपने अंदरून-ए-मुल्क जारी सयासी बोहरान की कैफ़ीयत को दूर करने के लिए ठोस क़दम उठाने होंगी।

इस के इलावा इराक़ की ग़ैर शीया पार्टीयां जो सुन्नीयों की नुमाइंदगी करती हैं और कुर्दिश को पार्लीमैंट-ओ-काबीना का बाईकॉट करने के फ़ैसला से दस्तबरदार होना चाहीए। नायब सदर तारिक़ हाश्मी पर दहश्तगर्दी के आइद कर्दा इल्ज़ामात के तनाज़ुर में अगर सुनी सयासी पार्टीयां सख़्त मौक़िफ़ पर क़ायम रहें तो सयासी बोहरान को हल करने में मदद नहीं मिलेगी। नायब सदर तारिक़ हाश्मी पर इल्ज़ामात आइद होने से ही वो कुर्दिश शहर अरबेल में रुपोश होगए हैं।

इराक़ की सूरत-ए-हाल का जायज़ा लेने के लिए सयासी इंतिक़ाम का जज़बा तर्क करना ज़रूरी है। मसलकी तशद्दुद और सयासी दुश्मनी से इराक़ का अमन तबाह होरहा है। आम शहरीयों की ज़िंदगी ग़ैर मुल्की अफ़्वाज के चले जाने के बाद भी अजीर्ण बनी रहे तो फिर इराक़ को एक पुरअमन मुल्क बनाने की फ़िक्र कोई नहीं करेगा।

इराक़ या इस से बाहर सयासी अमल की दुश्मन ताक़तों को नाकाम बनाने का वाहिद रास्ता सयासी मुआमलाफह्मी और बाहमी इत्तिहाद हैं। ग़ौर-ओ-फ़िक्र के ज़रीया सयासी पार्टीयां अपने मुल्क के मुस्तक़बिल को संवारने केलिए आपस में मिल बैठ कर फ़ैसला करें।

इराक़ को तबाह करने वाले मुल्कों को भी ये सोचना ज़रूरी है कि आया वो इराक़ को बदअमनी के दलदल में झोंक कर दाख़िली तौर पर महफ़ूज़ रह सकेंगी?