इल्म की बरकतें: तालिब ए इल्म अल्लाह का हबीब है

इल्म व अमल:- हजरत इब्ने मसूद (रजि०) ने एक मौके पर फरमाया कि लोगों! आज हमारे इस दौर में अमल की अहमियत इल्म से ज्यादा है, एक दौर आएगा कि इल्म की अहमियत अमल से बढ़ जाएगी। (आज किताबों, मैगजीनों, पोस्टरों और दूसरे जराए से इल्म जितना फैलता नजर आ रहा है, अमल उतना ही कम होता जा रहा है)

तीन उम्दा अमल:- अबू सईद खुदरी (रजि०) ने नबी करीम (स०अ०व०) का फरमान नकल किया कि दुनिया में तीन अमल सबसे अफजल व आला है। एक तालिब इल्म, दूसरे जेहाद और तीसरे हलाल कमाई। तालिब इल्म अल्लाह का हबीब है तो मुजाहिद वली उल्लाह और हलाल रोजी कमाने वाला सिद्दीकुल्लाह (अल्लाह का दोस्त) है।

अल्लाह के लिए इल्म हासिल करने वाला उसके मिस्ल है जो दिन को रोजा रखे और रात भर इबादत करे। इल्म का एक बाब सीखना अबू कबीस पहाड़ के बराबर सोना मिल जाने से भी बेहतर है। इल्म ऐसी अजीब दौलत है कि हासिल करते वक्त खुदा न ख्वास्ता अगर अल्लाह की रजा की नीयत न भी हो तब भी उम्मीद है कि किसी वक्त इल्म गालिब आए और उसकी नीयत को दुरूस्त कर दे।

हजरत मआज (रजि०) की वलवला अंगेज तकरीर:- लोगो! इल्म हासिल करो। इल्म हासिल करना नेकी, उसकी तलब इबादत, उसका मजाकरा तस्बीह और बहस जेहाद है। जाहिल को इल्म सिखाना सदका है तो अहले इल्म के सामने इल्मी गुफ्तगू कुर्बे इलाही का सबब है। इल्म मनाजिले जन्नत का रास्ता, वहशत का यूनुस, मुसाफरत का साथी, तनहाई में बातें करने वाला, राहत व आराम की राह बताने वाला, मुसीबतों मे काम आने वाला, दोस्तों की मजलिस की जीनत और दुश्मनों के मुकाबले में हथियार है।

इसी के जरिए उलेमा कौम के इमाम व रहनुमा बनते हैं। फरिश्ते उनसे दोस्ती के ख्वाहिशमंद होते है, बरकत के लिए उनसे मुसाफहा करते और इस्तेकबाल के लिए पैरों तले पर बिछाते हैं। हर तर व खुश्क चीज उनके लिए दुआ करती है यहां तक कि पानी की मछलियां, जमीन के कीड़े-मकोड़े और जंगलों के दरिंदे।

इल्म जिहालत की मौत से निकाल कर दिलों को जिंदगी बख्शने वाला, तारीकियों ( अंधेरों) में चिराग और कमजोरियों में ताकत है। इसके जरिए इंसान दुनिया व आखिरत के बुलंद दर्जात हासिल करता है। इल्म का मुताला नफिली रोजो और इसका मजाकरा तहज्जुद के कायम मकाम है।

इससे इंसान सिलारहमी सीखता और हलाल व हराम में तमीज पैदा कर सकता है। इल्म इमाम है अमल मुक्तदी, इल्म मुफीद सिर्फ नेक लोगों को हासिल होता है।

हजरत हसन बसरी का वाज दिल पजीर:- लोगो! जेहाद बिला शुब्हा दीन का अहम तरीन रूक्न और अफजल तरीन इबादत है लेकिन इल्म इससे भी अफजल व आला है। इसलिए जब कोई शख्स इल्म हासिल करने के लिए घर से निकलता है तो फरिश्ते अपने पर बिछाकर उसका इस्तेकबाल करते हैं।

पानी की मछलियां जंगलों के परिंदे, फिजाओं के परिंदे सब उसके हक में दुआ करते हैं। जहां तक हो सके इल्म हासिल करो और इसके लिए खुद में सकीना, वकार और बुर्दबारी पैदा करो।

उस्ताद व शागिर्द एक दूसरे के साथ इंकसारी से पेश आए। उलेमा आपस में एक दूसरे पर फख्र न करें। इल्म को जाहिलों से लड़ने का जरिया न बनाओ। इल्म को लेकर अमीरों के पास न जाओ। इसके जरिए लोगों पर ज्यादती न करो वरना तुम्हारा शुमार उन जाबिर व जालिम उलेमा में होगा जो अल्लाह के अजाब में गिरफ्तार होकर जहन्नुम के मुस्तहक करार पाएंगे।

ऐसा और इस तरह इल्म हासिल करो कि वह इबादत में रूकावट न बनें। इबादत भी इस तरह करो जो इल्म से न रोके। उन लोगों की तरह न बनों जो इल्म से बेनियाज होकर इबादत में लग गए, इबादत करते करते निढाल हो गए तो लोगों पर तलवार लेकर निकल आए (यानी उनकी सख्त पकड़ की) अगर इल्म हासिल करते तो वह इल्म उनको इस हरकत से बाज रखता।

इल्म के बगैर इबादत करने वाला उस जैसा है जो सही रास्ते से हट कर चले (चल तो रहा है मगर सही रास्ते पर न होने की वजह से मंजिले मकसूद तक पहुंचना दुश्वार है) ऐसे लोगो से इस्लाह की उम्मीद कम फसाद का खतरा ज्यादा है।

किसी ने अर्ज किया कि हजरत यह बताएं कि आप को कहां से यह बातें हासिल हुईं। फरमाया- इसके लिए सत्तर बदरी सहाबा से मुलाकात की और चालीस साल सफर किया। काश! इस दौर के उलेमा इस तकरीर को बार-बार पढ़कर सबक हासिल करे।

इल्म कैसे उठेगा?:- नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद है कि कयामत के करीब इल्म को सीधे नहीं उठाया जाएगा। उलेमा अपनी जगह खाली छोड़कर दुनिया से जाते रहेंगे और उनकी मुसनद पर जाहिल कब्जा कर लेंगे। लोग उन्हीं को अमीर व मुफ्ती बनाकर उनकी पैरवी करेंगे वह गलत मसले बताकर खुद भी गुमराह होंगे दूसरों को भी गुमराह कर देंगे।

मालूम होता है कि कयामत बिल्कुल करीब है कि यह पेशीनगोई हर्फ व हर्फ पूरी होती हुई हर शख्स देख रहा है।

इल्म से इज्जत मिलती है:- सालिम बिन जाद (रजि०) ने फरमाया कि मैं गुलाम था, मेरे आका ने सिर्फ तीन सौ दरहम में मुझे खरीदा। जब उसने आजाद किया तो मैंने इल्म का पेशा इख्तियार किया। उसका नतीजा यह निकला कि कुछ ही दिन के बाद खलीफा-ए-वक्त, मुलाकात के लिए मेरे पास आया और मैंने मिलने से इंकार कर दिया।

हुसूले इल्म कब तक?:- अब्दुल्लाह बिन मुबारक (रजि०) से किसी ने सवाल किया कि इल्म कब तक हासिल किया जाए? उन्होंने जवाब दिया कि जब तक जिहालत को बुरा जानो। इब्ने मुबारक झगड़े मे मुब्तला थे और एक साहब कागज कलम लिए पास बैठे थे। किसी ने कहा कि मियां यह लिखने का वक्त है? फरमाने लगे कि हो सकता है कि इस आखिरी वक्त में कोई मसला ऐसा मालूम हो जाए जो अब तक न सुना हो। (मौलाना मोहम्मद खालिद नदवी गाजीपुर)

——————बशुक्रिया: जदीद मरकज