जिस तरह इशरत जहां का एनकाउंटर फ़र्ज़ी और क़तल का वाक़िया क़रार पाया है इसी तरह अब एक और हक़ीक़त भी सामने आई है कि मुंबई से ताल्लुक़ रखने वाली इस कालेज तालिबा के दहश्तगरदों से रवाबित नहीं थे ।
इशरत जहां फ़र्ज़ी एनकाउंटर की तहक़ीक़ात करनेवाली ख़ुसूसी तहक़ीक़ाती टीम ने पहले तो अपनी तहक़ीक़ात के बाद ये वाज़िह कर दिया कि इशरत जहां को किसी एनकाउंटर में हलाक नहीं किया गया बल्कि इस का इस के तीन साथीयों के साथ बुज़दिलाना क़तल करके नाशें सड़क पर डाल दी गईं और उसे एक एनकाउंटर का नाम दे दिया गया था ।
अब ऐस आई टी ने सी बी आई में एक शिकायत दर्ज करवाई है जिस के नतीजा में गुजरात पुलिस के 20 ओहदेदारों के ख़िलाफ़ ताज़ा एफ़ आई आर दर्ज की गई है । इस एफ़ आई आर में ऐस आई टी ने एक और बात की वज़ाहत करदी कि इशरत जहां के दहश्तगरदों से कोई रवाबित नहीं थे । जिस वक़्त इशरत को क़तल किया गया था उस वक़्त से बाअज़ गोशों की जानिब से दावे किया जा रहा था कि इशरत लश्कर-ए-तयेबा की कारकुन थी ।
गुजरात पुलिस ने तो ये तक दावे करदिया था कि इशरत और इस के साथी चीफ़ मिनिस्टर नरेंद्र मोदी को हलाक करने के मिशन पर थे । इस तरह के दावे करते हुए बेक़सूर नौजवानों को हलाक करके तमगे और तरक़्कीयां हासिल करना उस वक़्त गुजरात पुलिस के एक मख़सूस गोशे का वतीरा बन गया था । जब गुजरात पुलिस ने ये इद्दिआ किया तो उस वक़्त के मर्कज़ी मोतमिद दाख़िला जी के पिलई ने भी गुजरात पुलिस के दावे की तौसीक़ की थी ।
इसी तरह जब मुंबई हमलों के सिलसिला में अमरीका में मुक़ामी दहश्तगर्द डेविड हीडले को गिरफ़्तार किया गया तो ये इद्दिआ किया गया कि हेडली ने दौरान-ए-तफ़तीश तौसीक़ कर दी है कि इशरत जहां लश्कर-ए-तयेबा की रुकन थी । ताहम अब ये सारे दावे बेबुनियाद साबित हुए हैं और अदालत के अहकामात की तामील में क़ायम की गई ख़ुसूसी तहक़ीक़ाती टीम ने ये भी वाज़िह करदिया है कि इशरत जहां के दहश्तगरदों से किसी तरह के रवाबित नहीं थे और ना डेविड हेडली ने जो इद्दिआ किया है इस का कोई सबूत ही दस्तयाब है ।
अब ये वाज़िह हो चुका है कि इशरत जहां मासूम और बेगुनाह थी। इस तालिबा को गुजरात पुलिस के फिक्रोपरस्त ओहदेदारों ने बे रहमाना अंदाज़ में क़तल कर दिया ।
जिस वक़्त इशरत जहां के एनकाउँटर को फ़र्ज़ी और बे रहमाना क़तल का वाक़िया क़रार देते हुए एस आई टी की रिपोर्ट पेश की गई तो उस वक़्त भी मिस्टर जी के पिलाई ने फिर एक ब्यान देते हुए कहा था कि तहक़ीक़ाती रिपोर्ट में सिर्फ ये कहा गया है कि इशरत का एनकाउँटर फ़र्ज़ी था और ये नहीं कहा गया था कि इशरत के दहश्तगरदों से रवाबित नहीं थे ।
अब ये बात भी वाज़िह हो गई है कि इशरत के दहश्तगरदों से कोई रवाबित नहीं थे और ना डेविड हीडले के ब्यान का कोई सबूत मौजूद है । ऐसे में अब मिस्टर जी के पिलाई को ये वज़ाहत करनी चाहीए कि मोतमिद दाख़िला जैसे हस्सास और ज़िम्मेदार ओहदा पर फ़ाइज़ रहते हुए उन्हों ने किस बुनियाद पर गुजरात पुलिस के इस इद्दिआ की ताईद की थी कि इशरत जहां का लश्कर-ए-तुयेबा से वाबस्ता थी और वो गुजरात में चीफ़ मिनिस्टर नरेंद मोदी को हलाक करने के मिशन पर आई हुई थी ।
इस तरह के ब्यान से एक मासूम और बेगुनाह लड़की के ताल्लुक़ से सारे मुल्क में एक नफ़रत का माहौल पैदा होसकता था और बाअज़ गोशों की जानिब से यक़ीनी तौर पर मुस्लिम नौजवानों के ताल्लुक़ से ऐसी सूरत-ए-हाल पैदा करने की कोशिश की गई ।
हद तो ये होगई कि ख़ुद मर्कज़ी मोतमिद दाख़िला ने भी गुजरात पुलिस के ब्यान की दीगर ज़राए से जांच किए बगै़र ताईद करते हुए गोया इस तरह की रुसवा कुन मुहिम पर तौसीक़ की महर लगादी थी । यही नहीं जब एनकाउँटर फ़र्ज़ी क़रार दे दिया गया तो उन्हों ने एक नया अंदाज़ इख़तियार किया और ये कहा कि इशरत के दहश्तगरदों से रवाबित की इस रिपोर्ट में तरदीद नहीं की गई है ।
लिहाज़ा एक तरह से मिस्टर पिलाई अपने साबिक़ा ब्यान पर क़ायम थे । अब जबकि तहक़ीक़ाती रिपोर्ट में ये भी वाज़िह होगया कि इशरत के दहश्तगरदों से किसी तरह के रवाबित का कोई सबूत नहीं है तो मिस्टर पिलाई को और गुजरात पुलिस के दावे को दरुस्त समझने और दरुस्त क़रार देने की कोशिश करने वाले तमाम दूसरे अफ़राद को जवाब देना होगा कि उन्हों ने किस बुनियाद पर इस दावे की ताईद की थी। ये मुआमला सिर्फ मिस्टर पिलाई तक महिदूद भी नहीं है ।
ये मर्कज़ी हुकूमत की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वो अपने एक ज़िम्मेदार तरीन ओहदेदार के इस तरह के ब्यानात पर ख़ुद अपने मौक़िफ़ की वज़ाहत भी करे ।
अब जबकि इशरत जहां के क़तल की तफ़सीलात का इन्किशाफ़ होता जा रहा है और हक़ायक़ को मंज़रे आम पर लाया जा रहा है तो यक़ीनी तौर पर कुछ गोशे ऐसे हैं जिन्हें बेचैनी महसूस हो रही होगी । इन गोशों को कभी गवारा नहीं होगा कि इस मुल्क् के मुस्लमानों को हमेशा शक की सूई घूमती रहे ।
ताहम इस मुल़्क की अदलिया ने हमेशा ही आली तरीन उसूलों को क़ायम रखते हुए इंसाफ पसंदी के तक़ाज़ों की बहरसूरत तकमील की है और इसी अदलिया की वजह से ही इशरत जहां के क़तल के वाक़ियात और हक़ायक़ मंज़रे आम पर आए हैं।
ये दाग़ भी अब धुल गया है कि इशरत जहां दहश्तगर्द थी । ये होसकता है कि इस के साथीयों के दहश्तगरदों से रवाबित रहे हूँ लेकिन कॉलिज की ये तालिबा बेक़सूर और मासूम थी । अब जबकि ये हक़ीक़त सामने आ गई तो इशरत के ताल्लुक़ से बेबुनियाद दावे करने वाले फ़िर्क़ा परस्तों को अपना मुहासिबा करना चाहीए और हुकूमतों को अपने मौक़िफ़ की वज़ाहत भी करनी ज़रूरी हो गई है ।