मुफ़्ती-ए-आज़म फ़लस्तीन शेख़ मुहम्मद अहमद हुसैन ने इस अज़म का इज़हार किया कि आज़ाद मुलिलकत फ़लस्तीन के क़ियाम और क़िबला अव्वल बैत-उल-मुक़द्दस की बाज़याबी के लिए जारी फ़लस्तीनीयों की जद्द-ओ-जहद ज़रूर कामयाब होगी।
इसराईली बरबरीयत और मज़ालिम फ़लस्तीनीयों के हौसलों को पस्त नहीं करसकते। सैंकड़ों नहत्ते फ़लस्तीनीयों ने आज़ादी के लिए जो क़ुर्बानियां दी हैं वो रायगां नहीं जाएंगी और वो दिन दूर नहीं जब फ़लस्तीन के अवाम आज़ादी के माहौल में दुसरे मुमालिक के अवाम की तरह ज़िंदगी बसर करेंगे।
मुफ़्ती-ए-आज़म फ़लस्तीन ने अपने दौरा हैदराबाद के मौके पर सियासत को ख़ुसूसी इंटरव्यू में इन ख़्यालात का इज़हार किया। उन्होंने कहा कि यक़ीनन फ़लस्तीनी अवाम आज़माईश के दौर से गुज़र रहे हैं और उन्हें इसराईल के मज़ालिम और मुख़्तलिफ़ तहदीदात का सामना है।
मज़ालिम और तहदीदात का मक़सद फ़लस्तीनीयों को जद्द-ओ-जहद के रास्ते से रोकना और आज़ादी के ख़ाब को भला देना है, लेकिन फ़लस्तीनी अवाम इन हथकंडों से ख़ौफ़ज़दा नहीं होंगे और अल्लाह ताआला की मदद ज़रूर शामिल हाल होगी।
शेख़ मुहम्मद अहमद हुसैन फ़लस्तीन के सातवें मुफ़्ती-ए-आज़म हैं जिन्हें फ़लस्तीनी सदर महमूद अब्बास ने जुलाई 2006 में इस ओहदे पर फ़ाइज़ किया। उन से पहले फ़ज़ीलत उल-शेख़ इक्रिमा सईद सबरी इस जलील-उल-क़दर ओहदे पर फ़ाइज़ थे।
फ़लस्तीन के मुफ़्ती-ए-आज़म यरूशलम के तमाम मज़हबी मुक़ामात बिशमोल क़िबला अव्वल मस्जिदे अकसा के निगरानकार होते हैं। मुफ़्ती-ए-आज़म के ओहदे पर फ़ाइज़ किए जाने से पहले फ़ज़ील उल-शेख़ मुहम्मद अहमद हुसैन मस्जिदे अकसा के इमाम थे लेकिन मुफ़्ती-ए-आज़म की हैसियत से वो अब ख़तीब की ज़िम्मेदारी भी निभा रहे हैं।
मुहम्मद अहमद हुसैन के सख़्त गीर मुख़ालिफ़ इसराईल रवैये के सबब इसराईली हुक्काम ने उन्हें 8 मई 2013 को गिरफ़्तार करते हुए पूछगिछ की थी।