इसराफ़ के ख़ातमे के लिए ठोस लायेहा-ए-अमल की ज़रूरत

मुकम्मिल ज़िंदगी गुज़ारने के लिए शादीशुदा होना ज़रूरी है, तब ही दीन पर चलने में आसानी पैदा होती है, क्युंकि नबी करीम(स०)एक कामयाब-ओ-कामरान, तामीरी-ओ-फ़लाही मुआशरह के ख़ाहां थे। आप(स०) ने फ़रमाया जोड़े इतमीनान क़लब, सुकून, हुक़ूक़ उल-ईबाद और नसल इंसानी का सिलसिला चलाने के लिए बनाए गए हैं।

इसी लिए अल्लाह ने औरत और मर्द में एक कशिश रखी है, जिन का पूरा होना ज़रूरी है। वालिदैन का फ़र्ज़ बनता हैके लड़कीयां जब सन बलूग़ को पहुंच जाएं तो मारूफ़ तरीक़े से लड़कों के साथ निकाह करदें, वर्ना इन का गुनाह उनके वालिदैन के हिसाब में लिख दिया जाएगा।

इन ख़्यालात का इज़हार इक़बालुद्दीन इंजीनियर ने निकाह की एहमीयत-ओ-इफ़ादीयत के उनवान पर मस्जिद क़बा-ए-टीपू सुलतान कॉलोनी बीदर में हफ़तावारी इजतेमा से ख़िताब के दौरान किया। उन्होंने एक हदीस शरीफ़ के हवाले से बताया कि शादी में इसराफ़ ना हो। समाजी ज़िम्मे दारान, क़ाज़ी हज़रात और फंक्शन हाल के मालकीयन आपस में मिल बैठ कर शादी और वलीमा से इसराफ़ ख़त्म करने के लिए एक ठोस लायेहा-ए-अमल तैयार करें, तब ही हम अल्लाह की मदद के मुस्तहिक़ हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हम इत्तिबा सुन्नत का दावा तो बहुत करते हैं, जबकि हमें मालूम होना चाहीए कि हुज़ूर नबी करीम(स०) ने अपनी उम्मत को सादगी का दरस दिया है, जबकि हमारा ये हाल हैके लाखों रुपये सिर्फ़ पकवान पर सिर्फ़ करदेते हैं। अल्लाह फुज़ूलखर्ची से बचाए, क्युंकि पिछली कौमें इसराफ़ और फुज़ूलखर्ची के घिनौने जुर्म की वजह से तबाह हुई हैं।