इस्लामी माहौल का दावा करने वाले स्कूल्स पर मग़रिबी माहौल के असरात !

अब ये कोई ढकी छिपी बात नहीं रही कि दीगर तिजारती शोबों की तरह शोबा तालीम भी पैसा देने वाली गाय बन चुकी है, बस ! निथारने का फ़न चाहीए, इस फ़न में जो जिस क़दर माहिर होगा उसे उसी क़दर मुनाफ़ा हासिल होगा। तिजारत तो बहरहाल तिजारत है,मगर मसला उस वक़्त पैदा होता है जब कोई दीन और मज़हब के नाम पर तिजारत करता है। जहां तक असरी तालीम का सवाल है ,अक्सर दानिश्वर इन क़ौम और हमदर्द इन मिल्लत ने इस बात पर हमेशा ज़ोर दिया है कि कमअज़ कम मुस्लिम ज़ेर-ए-इंतज़ाम चलाए जा रहे स्कूलों में असरी तालीम को मग़रिबी तर्ज़ तालीम और मग़रिबी माहौल से पाक रखा जाय, और जहां तक मुम्किन हो इस्लामी माहौल और इस्लाम के पाकीज़ा तहज़ीब के दायरे में मयारी और आला तर्ज़ की असरी तालीम फ़राहम की जाय।

मगर अलमीया ये है कि मजमूई तौर पर इसी नुक़्ता नज़र का सहारा लेकर और मुस्लिम वालदैन को इन्हीं सब बातों के ज़रीया राग़िब कर के अपने स्कूलों की इबतदा करने वाले स्कूल इंतिज़ामीया जब अपना मक़सद हासिल कर लेते हैं तो धीरे-धीरे उनके स्कूलों में मुकम्मल इस्लामी माहौल का दावे सिर्फ़ दर्सी किताबों तक महिदूद होकर रह जाता है, जबकि ख़ुद को माडर्न और कॉरपोरेट साबित करने के धुन में अमली तौर पर स्कूल इंतिज़ामीया के किरदार पर मग़रिबी माहौल का रंग चढ़ जाता है जहां कल्चरल प्रोग्राम के नाम पर तमाम मग़रिबी कल्चर्स को फ़रोग़ दिया जाता है । सितम ज़रीफ़ी ये है कि उसे स्कूल इंतिज़ामीया उन तबदीलीयों को मजबूरी और ज़माने के साथ , एडजेस्टमेंट का नाम देते हैं। बा वसूक़ ज़राए के मुताबिक़, उसे ही बहुत सारे मुस्लिम ज़ेर-ए-इंतज़ाम स्कूलों में से एक, जिसे शहर और शहर के मज़ाफ़ाती इलाक़ा में क़ायम किया गया है , अपने स्कूल के तलबा -ओ- तालिबात को एजूकेशन टूर के नाम पर थाईलैंड ले जा रहे हैं ।

आम तौर पर तलबा यह तालिबात को तालीमी सयाहत यह एजूकेशन टूर के नाम पर , तालीमी , तहज़ीबी, और तारीख़ी अहमियत के मुक़ामात की सैर -ओ- सयाहत करने यह वुसअत निगाह की ऊंची मंज़िलों का शौक़ पैदा करने वाली चीज़ों का मुशाहिदा करवाया जाता है। मगर इबतिदाई और प्राइमरी दर्जों के लिए भी मुख़्तलिफ़ किस्म के फ़िसेस के नाम पर लाखों रुपय ऐंठने वाले इस स्कूल इंतिज़ामीया को कोई और शहर या कोई और मुल्क समझ में नहीं आया ,उन्हें सिर्फ़ थाईलैंड के सयाहती मुक़ामात ही पसंद आए जहां के सयाहती मुक़ामात की अक्सरियत अय्याशियों, और अहल दौलत-ओ-सरवत के लिए कारोबार इशक़ की हैसियत से शौहरत रखती है। मज़ीद ये कि बैरून मुल़्क होने वाले इस एजूकेशन टूर पर लाखों रुपय के मसारिफ़ आइद होंगे जो कि ज़ाहिर है कि ये सारे पैसे उन तलबा और तालिबात के सरपरस्तों से ही वसूल किए जाऐंगे।

क्या ही अच्छा होता कि बैरून मुलक एजूकेशन टूर के नाम पर होने वाले अख़राजात को , अंदरून-ए-मुल्क टूर के ज़रीया कम करके बचे हुए पैसों से उसे गरीब बच्चों की तालीम का इंतिज़ाम किया जाता जिन्हें महज़ तालीमी फीस की अदमे अदाइगी की वजह से इमतिहान लिखने से रोक दिया जाता है , उनकी तालीमी फीस अदा कर दे जाती, जो अपनी ग़ुर्बत के सबब स्कूल ड्राप करने पर मजबूर हो जाते हैं या फिर इन होनहार तालिब इलमों की स्कालरशिप के नाम पर मदद की जाती जो ज़हीन होने और अच्छे मार्क्स हासिल करने के बावजूद अपनी मुफ़लिसी के सबब आला तालीम हासिल करने से महरूम रह जाते हैं। मगर ताजिरों की भीड़ में कौन है जो भला इन सब बातों का ख़्याल करे। ठीक है इसी बातों की परवाह ना करें.मगर ख़ुदारा उन कम उम्र बच्चों और बच्चीयों को तो उन सांचे में ढालने की कोशिश ना करें जो मज़हबी इक़दार के ख़िलाफ़ हो।

याद रहे , अगर ये सिलसिला जारी रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ये नौख़ेज़ तलबा यह तालिबात अपनी वुसअत निगाह से महरूम हो जाऐंगे, शर्म वो हया का लिबास एक गैरज़रूरी बोझ महसूस करने लगेंगे, अख़लाक़ी औसाफ़ की ज़ीनत उन्हें क़दामत पसंदी की अलामत लगने लगेगी और हैदराबादी मुआशरे की क़दीम और रिवायती इस्लामी माहौल को वो पसमांदगी की अलामत तसव्वुर करने लगेंगे।