‘इस्लाम’ को जितना बदनाम किया गया , उतना ही फैलता गया : इतिहासकार राजेंद्र नारायण लाल

राजेन्द्र नारायण लाल (एम॰ ए॰ (इतिहास) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) के अनुसार संसार के सब धर्मों में इस्लाम की एक विशेषता यह भी है कि इसके विरुद्ध जितना दुष्प्रचार हुआ किसी अन्य धर्म के विरुद्ध नहीं हुआ।
 सबसे पहले तो महाईश दूत मुहम्मद (PBUH) साहब की जाति कु़रैश ही ने इस्लाम का विरोध किया और अन्य कई साधनों के साथ दुष्प्रचार और अत्याचार का साधन अपनाया। यह भी इस्लाम की एक विशेषता ही है कि उसके विरुद्ध जितना दुष्प्रचार हुआ वह उतना ही फैलता और उन्नति करता गया तथा यह भी प्रमाण है कि

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इस्लाम के ईश्वरीय सत्य-धर्म होने का। इस्लाम के विरुद्ध जितने दुष्प्रचार किए गए हैं और किए जाते हैं उनमें सबसे उग्र यह है कि इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला, यदि ऐसा ही है तो संसार में अनेक धर्मों के होते हुए इस्लाम चमत्कारी रूप से संसार में कैसे फैल गया? इस प्रश्न या शंका का संक्षिप्त उत्तर तो यह है कि जिस काल में इस्लाम का उदय हुआ उन धर्मों के आचरणहीन अनुयायियों ने धर्म को भी भ्रष्ट कर दिया था। अतः मानव कल्याण हेतु ईश्वर की इच्छा द्वारा इस्लाम सफल हुआ और संसार में फैला, इसका साक्षी इतिहास है।

‘‘…मुसलमानों का अस्तित्व भारत के लिए वरदान ही सिद्ध हुआ। उत्तर और दक्षिण भारत की एकता का श्रेय मुस्लिम साम्राज्य, और केवल मुस्लिम साम्राज्य को ही प्राप्त है। मुसलमानों का समतावाद भी हिन्दुओं को प्रभावित किए बिना नहीं रहा। अधिकतर हिन्दू सुधारक जैसे रामानुज, रामानन्द, नानक, चैतन्य आदि मुस्लिम-भारत की ही देन है। भक्ति आन्दोलन जिसने कट्टरता को बहुत कुछ नियंत्रित किया, सिख धर्म और आर्य समाज जो एकेश्वरवादी और समतावादी हैं, इस्लाम ही के प्रभाव का परिणाम हैं। समता संबंधी और सामाजिक सुधार संबंधी सरकरी क़ानून जैसे अनिवार्य परिस्थिति में तलाक़ और पत्नी और पुत्री का सम्पत्ति में अधिकतर आदि इस्लाम प्रेरित ही हैं…।’’

– ‘इस्लाम एक स्वयंसिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था’
पृष्ठ 40,42,52 से उद्धृत साहित्य सौरभ, नई दिल्ली, 2007 ई॰