इस्लाम , दौलत और इक़तिदार ( शासन) के लिए लड़ाई

तेल की दौलत से बड़े बड़े स्टेडीयम और फ़लकबोस ( उँची)इमारतों की तामीर के बाद जो दरयाए वालगा की तरफ़ रूख किए हुए हैं , ऐसी ख़वातीन को भी देखा जा सकता है जो अपने सर पर हिजाब ओढ़े ऐसे दुकानात के चक्कर लगाती नज़र आती हैं जहां रूस में इस्लामी शरिया के मौज़ू पर वरकिए ( पर्चे/ पर्चियियां) फ़रोख्त किए जाते हैं। ख़ाज़ान , रूस की मुस्लिम अक्सरियत ( बहुसंख्यक) वाले तातार स्तान का दार-उल-ख़लाफ़ा (राजधानी) है ।

ये इलाक़ा ज़माना-ए-क़दीम से अपनी मज़हबी रवादारी ( भावनाओं) के लिए मशहूर है लेकिन इस नेकनामी को इस वक़्त दाग़ लग गया जब गुज़श्ता हफ़्ता रमज़ान उल-मुबारक के आग़ाज़ ( शुरू होने ) से सिर्फ चंद घंटे क़बल बम धमाके और फायरिंग के वाक़ियात रौनुमा हुए । किताब की दुकानात के बाहर दीवार पर तातारी ज़बान में एक पोस्टर चस्पाँ किया गया है जिस में मुसलमानों से अपील की गई है कि वो मुफ़्ती ईदूस फ़ीज़ोफ़ के ख़िलाफ़ मुत्तहिद हो जाएं जो हमले में शदीद ज़ख्मी हुए जबकि उन के नायब जांबाहक़ हो गए ।

दरि असना ( फिर भी) यहां की एक मुक़ामी ( स्थानीय) ख़ातून 43 साला अनीसा जो हिजाब पहने हुई थीं , ने कहा कि यहां के हालात अब मज़ीद ( भी) बिगड़ने वाले हैं और मुसलमानों को इसका सब से ज़्यादा ख़मयाज़ा भुगतना पड़ेगा । दूकान के करीब एक ऐसी जगह पर जहां क़ुरआन मजीद का स्टाक रखा गया है , वहां ठहरकर अनीसा ये बातें कर रही थीं। जब उन से पूछा गया कि क्या मज़ीद धमाकों के ख़दशात ( डर) हैं तो उन का जवाब मुशबत था ।

सदर व्लादीमीर पोटीन जिन्होंने अपनी सदारती 6 साला नई मीआद शुरू की है , ने हमेशा अवाम से अपील की है कि वो क़ौमी ( राष्ट्रीय) तौर पर मुत्तहदा (संयुक़्त) रहें और मज़हबी मुआमलात में भी रवादारी ( भावनाओं) का दामन थामे रखें। कई दहों तक रूस के शुमाली इलाक़े तशद्दुद के ज़ेर असर रहे और चेचन्या में अलहैदगी पसंदी की जंग में हज़ारों अफ़राद ( लोग) मारे गए ।