इस्लाम में पड़ोसीयों के हुक़ूक़

क़ुरान मजीद में इरशाद ए बारी हे और ख़ुदा ही की इबादत करो, इस के साथ किसी और को शरीक ना बनाओ ओर माँ बाप, क़राबत दारों, यतीमों, रिश्तेदारों, हमसाइयों, मुसाफ़िरों और क़रीब बेठने वालों और जो तुम्हारी सरपरस्ती में हों, सब के साथ एहसान यानी अच्छा सुलूक करो। अल्लाह ताला एहसान करने वालों को दोस्त रखता हे, तकब्बुर करने वालों और बड़ाई जताने वालों को दोस्त नहीं रखता। (सूरा निसाए)

चूँ कि माँ बाप का हक़ तमाम रिश्तेदारों से ज़्यादा हें, इस लिए रब तबारक ‍ओ‍ ताला ने अपनी इबादत के साथ उन की इताअत का हुक्म दिया हे। सरकार दो आलम स.व. ने इरशाद फ़रमाया कि रिश्तेदारों के साथ अच्छा सुलूक करने वालों की उमरदराज़ और रिज़्क में वुसअत होती हे (बुख़ारी-ओ-मुस्लिम) और फ़रमाया बेवा और मिस्कीन की इम्दाद और उन की ख़बरगीरी करने वाला मुजाहिद फ़ी सबील अल्लाह के मानिंद हें।

हज़रत सय्यदना इब्न अब्बास (रज़ी.) से रिवायत हे कि मेने रसूल अल्लाह स.व. को ये फ़रमाते हुए सुना कि वो कामिल दर्जा का मोमीन नहीं जो ख़ुद पेट भर खाए और इस के पहलू में इस का पड़ोसी भूका रहे। (मीश्कात‌ शरीफ़)
पड़ोसीयों के हुक़ूक़ में एक हक़ ये भी हे कि इन के साथ बेहतर सुलूक करते रहें, यानी उन के दुख सुख में शरीक होकर कामिल हमदर्दी और दस्तगीरी-ओ-जांनिसारी का इज्हार करें। अगर वो बीमार हों तो उन की तीमारदारी करें, अगर वो मुफ्लिस‍ ओ‍ मोहताज हों तो माली इम्दाद करें, अगर वो मुलाक़ात के लिए आएं तो ख़ंदापेशानी के साथ ख़ातिर तवाजु करें, अगर वो भूके हों तो उन्हें पेट भर खाना खिलाएं, अगर वो कप्ड़ा ख़रीदने की सकत ना रखते हों तो उन्हें कप्ड़े खरीदकर पहनाएं, अगर नागहानी आफ़त या मुसीबत का शिकार हो जाएं तो हत्तलमक्दूर अपनी इस्तिताअत के मुताबिक़ मदद करें, उन की हिम्मतअफ़्ज़ाई करें और उन्हें दिलासा दें।
हुज़ूर अकरम स.व. ने इरशाद फ़रमाया कि हज़रत जिब्रईल अलैहि स्सलाम हमेशा पड़ोसीयों के बारे में मुझे ख़ुदा का हुक्म सुनाते रहे कि इन के साथ भलाई करते रहो, यहां तक कि मुझे ये ख़्याल होने लगा कि अनक़रीब अल्लाह ताला पड़ोसी को इस के पड़ोसी का वारिस बना देगा। (बुख़ारी शरीफ़)
हुक़ूक़ अल्लाह और हुक़ूक़ उल-ईबाद (अल्लाह ताला और इस के बंदों के हुक़ूक़) हर शख़्स की ज़िम्मेदारी हे, कमा हक्कहू उस को पूरा करने की कोशिश की जाए। चूँ कि पड़ोसीयों के हुक़ूक़, हुक़ूक़ उल-ईबाद में आते हे, लिहाज़ा इस का हरवक़त ख़्याल रहे।

हज़रत सय्यदा आईशा सिद्दीक़ा (रज़ी.) से मर्वी हें कि सरकार दो आलम स.व. ने इरशाद फ़रमाया कि ए आईशा! पड़ोसी का बच्चा अगर तुम्हारे घर आजाए तो इस के हाथ में कुछ ना कुछ दो, इस से मुहब्बत में इज़ाफ़ा होगा। एक हज़रत ने हुज़ूर अकरम स.व. की ख़िदमत में हाज़िर होकर हमसाया की शिकायत की तो आप स.व. ने फ़रमाया तुम सब्र करो। ज़ाहिर हे कि पड़ोसी की ईज़ा रसानी पर हम सब्र करेंगे तो अज्र का ख़ज़ाना हाथ आएगा।
किसी बुज़ुर्ग के घर में चूहों की कसरत थी, किसी ने इन को मश्वरा दिया कि आप बिल्ली पाल लें, तो बुज़ुर्ग ने जवाब दिया कि मुझे इस बात का अंदेशा हें कि चूहे, बिल्ली की आवाज़ सुन कर ख़ौफ़ से भाग कर हमसाइयों के घर में घुस जाएंगे, तो गोया में एसा आदमी बन जाउंगा, जो ख़ुद तो इस तक्लीफ़ को पसंद नहीं करता, मगर दूसरों को वही तकलीफ़ पहुंचाना चाहता हें

हमें अपने अस्लाफ़ के किरदार-ओ-अमल को अपनाने की सख़्त ज़रूरत हें।