अजमेर 13 नवंबर: जमीअत उलेमा ए हिन्द के 33 अधिवेशन आम मिली इत्तेहाद और क़ौमी एकता के नारे की गूंज के साथ शुरू हुआ
अपनी विस्तृत सचिव रिपोर्ट में मौलाना मदनी ने तलाक सलसा और समान नागरिक संहिता के संबंध में केंद्र सरकार के इरादों पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता का नारा दे कर अहकाम इस्लाम की बारीकियों को समझे बिना उसका मजाक बनाने की कोशिश की जा रही है।
मौलाना मदनी ने कहा कि यह बात पूरे विश्वास से कह रहा हूं कि हमारी व्यवस्था और हमारे धर्म महिलाओं को जितने अधिकार और संरक्षण प्रदान किए हैं वह किसी पर्सनल लॉ में नहीं हैं। हालांकि मौलाना मदनी ने इस बात को स्वीकार किया कि महिलाओं के अधिकारों के संबंध में हमारी ओर से कोताही हुई है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम इस्लाम को छोड़ दें हम अपने अंदर सुधार के लिए तैयार हैं और हमें इसकी चिंता करनी चाहए.के दोसरों की तरफ से तनकीस की कोशिश हमारे लिए बेदारी का एक अवसर प्रदान किया है,हम ये चाहेंगे कि उलेमा और दानशोरान क़ौम व मिल्लत महिलाओं के अधिकारों के संबंध में अपने-अपने क्षेत्रों में बेदारी पैदा करें और बिला उचित कारण तीन तलाक देने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहए.
मोलाना ने कहा कि इजतिमाईयत का मफ़हूम यह नहीं है कि मुसलमानों में आपसी मतभेद न हो, बल्कि इजतिमाईयत का मतलब है कि मुसलमान असंतोष रखते हुए भी परस्पर एकजुट रहें उन्होंने इस संबंध में दो सुझाव भी उलेमा के सामने रखी कि अपनी बात को बिलकुल्लिया सही मानना और दूसरे की बात का विरोध करने के लिए गिरोहबंदी करना और सीमा से गुजर जाना यह नकारात्मक अस्बाब हैं, उनको ख़त्म करके मसलकी दोरियें को हटाया जा सकता है।