इस्लाम हर इंसान का मजहब; गोरखपुर के लालबाबू 30 साल से रख रहे हैं रोज़े

इस दुनिया में पैदा होने के साथ ही एक मजहब के धागों में इंसान ऐसा उलझ जाता है की कई बार फिर सारी उम्र नहीं निकल पाता। आखिर मजहब है क्या इस बात को लेकर न जाने कितनी बार बहस हो चुकी और बहस करने वाले किसी नतीजे पर पहुँचते नज़र नहीं आते।

कुछ लोग जो धर्म के बारे में समझ पाये हैं उन्हें मजहब का मतलब पूछें तो जवाब मिलता है कि मजहब वो है जो इंसान को इंसान से मिलाता है; मजहब वो है जो सही रास्ता दिखाता है

रमजान के इस महीने में हम सभी मुस्लिम अल्लाह के बताये हुए रास्ते पर बिना डोले हुए चलते हैं वहीँ गैर-मुस्लिम भी अल्लाह के इस रास्ते को ठीक मानते हुए रोज़ा रखते हैं और इफ्तार के बाद ही कहना खाते हैं।

ऐसे लोगों में से ही एक हैं गोरखपुर के रहने वाले लालबाबू जो पिछले 30 सालों से रोज़ा रखते आ रहे हैं ऐसा नहीं है की उनके परिवार में रोज़ा रखने वाले वो अकेले हैं लालबाबू के पिता स्वर्गीय गंगा प्रसाद भी रोज़ा रखते थे। लालबाबू का मानना है कि रोज़े रखने के लिए मुस्लिम होना जरूरी नहीं है। यह तो अल्लाह का बताया एक नेक रास्ता है जैस्पर जो भी चाहे चलकर उसी और जाता है।

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