इस्लाहात के लिए सयासी जमातों से तआवुन की ख़ाहिश

नई दिल्ली, ०९ अक्तूबर (पी टी आई) वज़ीर फायनेन्स मिस्टर पी चिदम़्बरम ने अपोज़ीशन जमातों पर ज़ोर दिया कि वो रुकावट पसंदाना तर्ज़ इख़तियार ना करें। उन्होंने कहा कि अगर अहम इस्लाहात ( सुधार) को आगे बढ़ाया नहीं जा सका तो मुल्क को तेज़ और मुसलसल मआशी सुस्त रवी का ख़तरा लाहक़ हो जाएगा।

सालाना इकनॉमिक एडीटर्स कान्फ्रेंस से ख़िताब करते हुए मिस्टर चिदम़्बरम ने कहा कि हर हुकूमत को अपने तौर पर पालिसीयां तैयार करने का हक़ हासिल है। अपोज़ीशन को इन पालिसीयों को बेहतर बनाने का काम करना चाहीए । रुकावटें खड़ी नहीं करनी चाहीए ।

उन्होंने कहा कि किसी भी मौजूदा हुकूमत को लाज़िमी तौर पर पॉलीसी साज़ी और ज़रूरत पड़ने पर क़ानूनसाज़ी का मौक़ा बहरसूरत ( हर हाल में) दिया जाना चाहीए ताकि उन पर अमल आवरी (Implementation/प्रक्रिया) को भी यक़ीनी बनाया जा सके । मिस्टर चिदम़्बरम का हवाला अपोज़ीशन ( विपक्ष) की जानिब से रीटेल शोबा ( Sector) में रास्त बैरूनी सरमाया कारी ( Investors/ निवेशको) ) को रोकने अपोज़ीशन के मंसूबों की जानिब था।

ये वाज़िह ( स्पष्ट) करते हुए कि हिंदूस्तानी मईशत ( माली हालात) के लिए चैलेंज्स हैं मिस्टर चिदम़्बरम ने कहा कि बगैर इस्लाहात ( सुधार ) के हमें मुसलसल और तेज़ मआशी सुस्त रवी का ख़तरा दरपेश रहेगा । मौजूद हालात में हिंदूस्तान ये ख़तरा मोल लेने का मुतहम्मिल ( सहनशील) नहीं हो सकता क्योंकि हमें फ़िलहाल रोज़गार के मवाक़े ( मौके) पैदा करने में और अपनी कसीर ( बहुत ज़्यादा) आबादी के लिए आमदनी चाहीए ।

हमारी आबादी की अक्सरियत नौजवानों पर मुश्तमिल ( बहुसंख्यक) है। ये तख़मीना करते हुए कि सिर्फ इंशोरंस शोबा ही को 5 ता 6 बिलियन डॉलर्स की फ़ौरी ( फौरन) ज़रूरत है । उन्होंने कहा कि हुकूमत पार्लीमेंट के सरमाई इजलास से क़बल बी जे पी और दीगर ( अन्य) जमातों से मुलाकातें करना चाहती है ताकि इंश्योरेंस शोबा ( Insurance Sector) में रास्त बैरूनी सरमाया कारी (विदेशी निवेशकों) ) की हद को मौजूदा 26 फीसद से बढ़ाकर 49 फीसद करने में इनका तआवुन (पारस्परिक सहायता) ) हासिल किया जा सके।

उन्होंने इद्दिया ( दावा) किया कि फायनेन्स से मुताल्लिक़ पारलीमानी स्टैंडिंग कमेटी ने जो सिफ़ारिशात की थीं इंश्योरेंस बिल की तफ़सीलात बहैसियत मजमूई वही हैं। उन्होंने वाअदा किया कि वो इफ़रात‍ ए‍ ज़र ( सूचकांक/ Index) से निमटने तेज़ रफ़्तारी से सरमाया निकासी और इक़तिसादी ख़सारा ( माली / आर्थिक नुकसान) को कम करने के इक़दामात ( कार्यनिष्पादन) करेंगे ।

इस सिलसिला में पहले वो केलकर कमेटी रिपोर्ट पर तजावीज़ (हासिल करेंगे । हिंदूस्तान की मआशी तरक़्क़ी की रफ़्तार साल 2011 12 में सिर्फ 6.5 फीसद रह गई थी जो गुज़श्ता 9 बरस में सब से कम है । रवां ( चलित) इक़तिसादी ( आर्थिक) साल के इबतिदाई (प्रारम्भ में) सहि माही में है।

रफ़्तार महिज़ ( सिर्फ) 5.5 फीसद रह गई थी । इस एतिमाद का इज़हार करते हुए कि दरकार सेविंग और सरमाया कारी (नीवेशको) की बदौलत हिंदूस्तान की मआशी ( माली) तरक़्क़ी की शरह ( दर) 8 फीसद या इससे ज़ाइद हो जाएगी ।

मिस्टर चिदम़्बरम ने कहा कि इस रफ़्तार से तरक़्क़ी शरह को हमें अपना मक़सद बना लेना चाहीए और इस की तकमील ( पूर्ती) के लिए जद्द-ओ-जहद करनी चाहीए । हुकूमत ने हालिया अर्सा में इस्लाहात के कई इक़दाम किए हैं लेकिन इंश्योरेंस और पेंशन के शोबा ( Sector) में रास्त बैरूनी सरमाया कारी (विदेशी निवेशको) की हद में इज़ाफ़ा के लिए इस क़ानूनसाज़ी करने की ज़रूरत होगी ।

हुकूमत अपोज़ीशन बी जे पी की ताईद ( समर्थन) हासिल किए बगैर क़ानूनसाज़ी नहीं कर पाएगी । मिस्टर चिदम़्बरम ने कहा कि देरपा ( विलम्ब) इस्लाहात ज़रूरी हैं ताकि ज़्यादा सरमाया ( निवेश) हासिल किया जा सके और इज़ाफ़ी शरह तरक़्क़ी को यक़ीनी बनाया जा सके इसके लिए इस्लाहात पर इत्तिफ़ाक़ ( सहमति) राय ज़रूरी है ।

सारे सयासी निज़ाम में ताईद (समर्थन) हासिल करने की अमली ज़रूरत है ताकि क़ानूनसाज़ी मुम्किन हो सके। एसा नहीं किया गया तो हमें इस्लाहात पर अमल आवरी में मुश्किलात दरपेश आ सकती हैं। उन्हों ने रीटेल शोबा में रास्त बैरूनी सरमाया कारी पर भी अनुदेशों ( Instructions) को मुस्तर्द कर दिया।