नई दिल्ली: सदर जम्हुरिया प्रणब मुख़र्जी ने नाकाफ़ी बारिश के सबब लगातार दूसरे साल भी ज़रई पैदावार में कमी के अंदेशों पर गहिरी तशवीश का इज़हार किया और कहा कि साईंसी तरक़्क़ियों के बावजूद हिन्दुस्तानी ज़राअत, मौसम के शिकंजे से हुनूज़ मुकम्मल तौर पर आज़ाद नहीं हो सका है।
काबुल काशत इलाक़ों की अक्सरीयत क़हत, तूफ़ान-ओ-सेलाब जैसे मौसमी आफ़ात से बुरी तरह मुतास्सिर हो रहे हैं जिसके पेश-ए-नज़र सदर जम्हुरिया ने इस चैलेंज से निमटने के लिए संजीदा मसाई करने और हिन्दुस्तानी ज़रात को मौसमी तग़य्युरात के असरात से महफ़ूज़ बनाने की ज़रूरत पर-ज़ोर दिया।
सदर हिंद ने हिन्दुस्तानी ज़रई तहक़ीक़ी इदारों पर-ज़ोर दिया कि वो दस्तियाब मौक़ों से ऐसी टेक्नोलोजी मुतआरिफ़ करें जो मौसमी तग़य्युरात का मुक़ाबला करसके। उन्होंने इस ज़िमन में बायो टेक्नोलोजी और नेनू टेक्नोलोजी के फ़रोग़ की एहमियत को उजागर किया। प्रणब मुख़र्जी ने दालों और ख़ुर्दनी तेल के लिए दरआमदात पर इन्हिसार का तज़किरा भी किया।
हिन्दुस्तानी ज़रई तहक़ीक़ी इदारा (आईएआरआई 54 वीं जलसे तक़सीम अस्नाद से ख़िताब करते हुए कहा कि साल 2014-15 के दौरान काफ़ी बारिश के सबब 2013-14 के मुक़ाबले ज़रई अजनास की पैदावार में 265 मिलियन टन की रिकार्ड कमी हुई। सदर प्रणब मुख़र्जी ने कहा कि ”क़ुदरत, इस साल भी हम पर ज़्यादा मेहरबान नहीं रही।
नाकाफ़ी बारिश के बाद कहतसाली रही, जिससे लगातार दूसरे साल भी ज़रई पैदावार मुतास्सिर होने का अंदेशा है। ये अमर बाइस-ए-तशवीश है”। सदर ने मज़ीद कहा कि ”अब संजीदा मसाई का वक़्त आ गया है क्योंकि हिन्दुस्तान का 80 फ़ीसद ज़रई इलाक़ा सेलाब, तूफ़ान और क़हत जैसे संगीन-ओ-बदतरीन मौसमी हालात की गिरिफ़त में है”।
उन्होंने कहा कि आलमी मौसमी हालात मज़ीद नासाज़गार हो सकते हैं। आईएआरआई जैसे इदारों को चाहिए कि वो बायो टेक्नोलोजी, कंप्यूटिंग बायोलोजी, संसर टेक्नोलोजी जैसे दस्तियाब मौक़ों के ज़रिये मौसम से निमटने टेक्नोलोजी पर मबनी हल दरयाफ़त करें। सदर मुख़र्जी ने कहा कि ”तकनीकी-ओ-माली इमदाद और नज़रियात के ज़रिये ज़रई तरीक़ों और तकनीकों को असरी-ओ-इख़तिराई बनाया जाये।