ईमान और कुफ्र में फ़र्क़

हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अनहु कहते हैं कि रसूल करीम (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया एसा कोई नबी नहीं गुज़रा, जिस ने अपनी उम्मत को छोटे काना(यानी दज्जाल)से ना डराया हो। आगाह रहो! दज्जाल काना होगा और तुम्हारा परवरदिगार काना नहीं है, नीज़ इस(दज्जाल)की दोनों आँखों के दरमयान क, फ, र (यानी कुफ्र का लफ़्ज़) लिखा हुआ होगा। (बुख़ारी-ओ-मुस्लिम)

एसा कोई नबी नहीं गुज़रा से‍‍‍ ये बात वाज़िह होती है कि अल्लाह ताआला ने दज्जाल के ज़ाहिर होने का मुतय्यना वक़्त किसी पर भी ज़ाहिर नहीं फ़रमाया, बस इस क़दर मालूम है कि वो क़ियामत से पहले ज़ाहिर होगा और चूँ कि क़ियामत आने का मुतय्यन वक़्त किसी को नहीं मालूम है, इस लिए दज्जाल के होने का वक़्त भी किसी को नहीं मालूम।

तुम्हारा परवरदिगार काना नहीं है यानी अल्लाह ताआला इस से पाक है कि उसकी ज़ात-ओ-सिफ़ात में कोई एब-ओ-नुक़्स हो। वाज़िह रहे कि हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने ये बात अवाम को समझाने के लिए फ़रमाई है, ताकि उनके अक़ल-ओ-फ़हम में आजाए कि इबादत-ओ-इताअत इसी ज़ात की होसकती है, जो अपनी ज़ात-ओ-सिफ़ात में किसी भी तरह का कोई एब-ओ-नुक़्स ना रखता हो।

क, फ, र से कुफ्र का लफ़्ज़ मुराद है, चुनांचे मुसाबीह और मशकत के नुस्ख़ों में ये तीनों हर्फ़ इसी तरह अलाहिदा अलाहिदा लिखे हुए हैं और इस से ये मफ़हूम होता है कि गोया दरजाल के चेहरे पर कुफ्र का लफ़्ज़ इसी तरह लिखा होगा, नीज़ इस में इस तरफ़ इशारा है कि दज्जाल दज्जाल तबाही-ओ-हलाकत यानी कुफ्र की तरफ़ बुलाने वाला और कुफ्र के फैलने का बाइस होगा ना कि फ़लाह-ओ-नजात की तरफ़ बुलाने वाला होगा, लिहाज़ा इस से बचना और उसकी इताअत ना करना वाजिब होगा।

दरहक़ीक़त ये अल्लाह ताआला की तरफ़ से इस उम्मत के हक़ में एक बड़ी नेमत है कि दज्जाल की दोनों आँखों के दरमयान कुफ्र का लफ़्ज़ नुमायां होगा।