नुज़ूल ए क़ुरआन का सबसे अहम मक़सद लोगों के अंदर तक़वा की रूह पैदा करना है। इस का इस्तिहकाम पूरी शरीयत का इस्तिहकाम और इसका इन्हिदाम पूरी शरीयत का मिस्मार हो जाना है। इसके बगै़र ना तो अक़ाइद-ओ-कुल्लियात ए दीन में पुख़्तगी आ सकती है और ना ही अख़लाक़-ओ-आमाल दुरुस्त हो सकते हैं, यानी तक़वा तमाम इस्लामी आमाल का असल है।
तक़वा दिल की इस कैफ़ीयत को कहते हैं, जिससे इंसान का ज़मीर बेदार रहता है। गोया इसके अंदर बुरे कामों से रोकने और अच्छे कामों की दावत देने के लिए एक पहरेदार बैठ गया है। ये जिस दिल में अपना नशेमन बना लेता है, इसके अंदर हक़ के लिए एक जोश तलब बराबर उबलता रहता है और बातिल की मुख़ालिफ़त की आग हर वक़्त भड़कती रहती है।
ये मोमिन के दिल में ख़ुदा का जलाया हुआ चिराग़ है, जिसकी रोशनी में वो हदूद अल्लाह का निहायत शिद्दत से लिहाज़ रखता है और हर आन अपने तमाम हरकात-ओ-सकनात का जायज़ा लिया करता है। इसके बाद इसे किसी पहरेदार की ज़रूरत नहीं है, इसलिए कि इसके क़ल्ब में तक़वा की रूह कारफ़रमा हो गई है।
तक़वा अव्वल भी है और आख़िर भी, जो लोग क़ुरआन मजीद ग़ौर से पढ़ते हैं, उनसे ये हक़ीक़त पोशीदा नहीं कि तक़वा शरीयत की असास भी है और इसके कोने की आख़िरी ईंट भी। दूसरे अलफ़ाज़ में तक़वा का वजूद शराए के अज़आन का मुहर्रिक भी है और उनके हरकत में आने का मक़सूद भी।
चुनांचे क़ुरआन मजीद में बेशुमार जगह इन दोनों हक़ीक़तों को मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से वाज़िह किया गया है, जिनसे मालूम होगा कि तक़वा बगै़र शरीयत के नहीं है। सूरा बक़रा (आयत २ता४) में इरशाद बारी ए तआला है डरने वालों के लिए हिदायत है जो ईमान लाते हैं बिन देखे और नमाज़ क़ायम करते हैं और हमारी दी हुई रोज़ी राह ए ख़ुदा में ख़र्च करते हैं और जो कुछ तुम पर नाज़िल किया गया और जो कुछ तुमसे पहले उतारा गया है इस पर ईमान लाते हैं और आख़िरत पर यक़ीन रखते हैं।
मज़कूरा बाला आयात में तक़वा को ईमान बिल्लाह, बिलकिताब और ईमान बिलआखिरत की असल क़रार दिया गया है, यानी तक़वा ही शरीयत ए इलाहीकी राह में क़दम ए अव्वल है, दूसरे अलफ़ाज़ में इसे यूं समझिए कि शरीयत के अहकाम पर ईमान-ओ-इज़आन उस वक़्त मुम्किन है, जब इंसान का ज़मीर बेदार हो।
सूरा ताहा (आयत २,३) में इरशाद ए रब्बानी है कि हमने तुम पर क़ुरआन इसलिए नाज़िल नहीं किया कि अपनी जान मुसीबत में डाल दो, बल्कि ये डरने वालों के लिए याददेहानी है। क़ुरआन मजीद एक सहीफ़ा ए फ़ित्रत है, इसकी आवाज़ दिल की आवाज़ है, इसकी तालीम दिल की तर्जुमान है, लेकिन इसकी दावत पर यक़ीन करने के लिए ज़रूरी है कि आईना-ए-दिल हर तरह की कसाफ़तों से मुजल्ली और ख़शीयत-ओ-तक़वा की रोशनी से मुनव्वर हो। एक दूसरी जगह यूं इरशाद होता है कि ऐ ईमान वालो! जिन्होंने तुम्हारे दीन को हंसी और खेल बना रखा है, उन लोगों में से जिन को तुम से पहले किताब दी जा चुकी है और कुफ़्फ़ार को दोस्त ना बनाॶ और तुम सच्चे मोमिन हो तो ख़ुदा से डरते रहो। (अलमायदा।५७)
मज़कूरा बाला आयात में तक़वा को ईमान की शर्त क़रार दिया गया है, यानी बगै़र इसके ना तो अक़ाइद का इस्तिहकाम मुम्किन है और ना आमाल की दुरूस्तगी। एक और मुक़ाम पर तक़वा की हदूद निहायत शरह-ओ-बस्त के साथ मज़कूर हैं। इरशाद होता है नेकी इसमें नहीं है कि अपना मुँह मशरिक़ की जानिब करो या मग़रिब की तरफ़, बल्कि असल नेकी उनकी है जो अल्लाह, रोज़ ए आख़िरत, फ़रिश्तों, किताबों और पैग़म्बरों पर ईमान लाए और माल को उनकी मुहब्बत में रिश्तेदारों, यतीमों, मुहताजों, मुसाफ़िरों और मांगने वालों को दिए। नमाज़ों की पाबंदी की और ज़कात देते रहे और जब इक़रार कर लिया तो अपने क़ौल के पूरे तंगी में और तकलीफ़ के वक़्त में साबित क़दम रहे। यही लोग सच्चे हैं और यही तक़वा वाले हैं। यही एक तरफ़ क़ुलूब को ईमान की रोशनी से मालामाल कर देता है और दूसरी तरफ़ आमाल को इख़लास की रूह से मामूर कर देता है। (अलबक़रा। १७७)
एक दूसरे मुक़ाम पर यूं मज़कूर है कि याद रखू कि मुक़र्रबीन इलाही पर ना ख़ौफ़ तारी होगा और ना वो ग़मगीं होंगे, यही लोग ईमान वाले और तक़वा वाले हैं (सूरा यूनुस।६२,६३)
मज़कूरा बाला आयात में ईमान को तक़वा के साथ मिला दिया गया है।
ऐसा इसलिए किया गया है कि ईमान की असल रूह तक़वा है। एक दूसरी जगह यूं मज़कूर है कि ऐ पैग़ंबर! तुम उन को आदम के दो बेटों हाबील और काबील का क़िस्सा सुना दो, जबकि दोनों ख़ुदा की जनाब में नयाज़ें चढ़ाईं तो एक की नयाज़ कुबूल हुई और दूसरे की कुबूल ना हुई।
इस पर क़ाबील ने हाबील से कहा कि में यक़ीनन तुझे क़त्ल कुर्दोंगा। हाबील ने कहा कि अल्लाह तो अहल तक़वा ही की नयाज़ें क़बूल करता है (सूरा अल मायदा।२७)
मज़कूरा बाला आयात से मालूम होता है कि ख़ुदा के दरबार में कोई पेशकश बगै़र तक़वा के शरफ़ क़बूलीयत हासिल नहीं कर सकती। इन आयात से मालूम होता है कि आमाल ख़ैर का सरचश्मा यही तक़वा है, जब ये दिलों में जगह पा लेता है तो ख़ुदबख़ुद हर गोशा से नेक कामों के सोते (चश्मे) जारी हो जाते हैं।
———-बिलकीस मुईन उद्दीन