जब अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो अपने क़तरी समकक्ष मुहम्मद अब्दुर्रहमान आले सानी को यह संदेश देते हैं कि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प चाहते हैं कि सऊदी अरब, इमारात, बहरैन और मिस्र के साथ क़तर का जो विवाद है तत्काल समाप्त है
क्योंकि इस विवाद के जारी रहने से फ़ायदा केवल ईरान को मिलने वाला है तो इसका मतलब यह है कि क़तर के लिए ज़रूरी है कि वह चारों अरब देशों की मांगों के सामने घुटने टेक दे और उस अमरीकी गठजोड़ का हिस्सा बन जाए जो ईरान को घेरना और उस पर भारी आर्थिक प्रतिबंध लगाना चाहता है।
यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति ट्रम्प इन दिनों क़तर की सरकार पर कई आयामों से दबाव डाल रहे हैं। हाल ही में ट्रम्प के दामाद और विशेष सलाहकार जेर्ड कुशनर ने क़तर का दौरा किया तो फ़िलिस्तीन के संबंध में डील आफ़ सेंचुरी के तहत मिस्र की सीनाई मरुस्थल में बनाए जाने वाले प्रोजेक्टों के लिए निवेश उपलब्ध कराने के लिए क़तर पर दबाव डालां
तुर्की में रजब तैयब अर्दोग़ान के चुनाव जीतने के बाद क़तर की स्थिति और मज़बूत हो गई है यही कारण है कि क़तर के लोगों ने वाक़िफ़ मार्केट में मिठाइयां बाटीं। ईरान के साथ तुर्की उन गिने चुने देशों में था जिन्होंने चार अरब देशों की ओर से क़तर का बायकाट कर दिए जाने के बाद दोहा सरकार का भरपूर साथ दया। तुर्की ने अपने 30 हज़ार सैनिक क़तर भेज दिए जिनका उद्देश्य क़तर की सरकार का तख़ता उलटने की हर कोशिश को नाकाम बनाना था।
समस्या यह है कि जिन चार देशों ने क़तर का बहिष्कार किया है वह इस संकट को हल करने में कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखा रहे हैं क्योंकि इस स्थिति से उनके नुक़सान नहीं पहुंच रहा है। सऊदी अरब ने क़तर से मिलने वाली अपनी ज़मीनी सीमा पर नहर बना रहा है जिसका लक्ष्य क़तर को पूरी तरह एक द्वीप में बदल देना है क्योंकि क़तर की ज़मीनी सीमा केवल सऊदी अरब से मिलती है। नहर खोदने का काम कुछ हफ़्तों के भीतर शुरू हो जाएगा।
क़तर के विदेश मंत्री शैख़ मुहम्मद बिन अब्दुर्रहमान ने कुछ दिन पहले बयान दिया कि कुवैत ने इस संकट में मध्यस्थता करने का नया प्रयास शुरू किया है लेकिन सऊदी अरब, इमारात, बहरैन और मिस्र ने कुवैत की सरकार की ओर से भेजे गए पत्रों का जवाब ही नहीं दिया हालांकि क़तर ने तत्काल जवाब देते हुए कुवैत से कहा था कि वह वार्ता के लिए तैयार है। इससे पता चलता है कि चारों देशों यही आशा है कि संकट लंबा खिंचने पर क़तर पर दबाव बढ़ेगा और वह मांगें मानने पर मजबूर हो जाएगा।
अमरीकी राष्ट्रपति ने क़तर के सामने अपनी मांग तो रख दी है लेकिन यह पता नहीं चला कि क़तर ने इसका क्या जवाब दिया है। इसलिए अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि क़तर की सरकार क्या क़दम उठाने वाली है।
चारों अरब देशों ने क़तर के सामने जो शर्तें रखी हैं क़तर उन्हें मानता है तो इसका मतलब यह होगा कि क़तर के शासक रियाज़ पहुंच जाएं और सभी 13 शर्तें मान लें जिनमें अलजज़ीरा टीवी चैनल को बंद करने की शर्त भी शामिल है।
अमरीका ने क़तर के सामने बहुत कठिन विकल्प रखे हैं। या तो क़तर अमरीकी मोर्चे में शामिल हो जाए और ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध को अधिक कठोर बनाने में हिस्सा ले।
इस बीच एक घटना यह हुई कि क़तर के विदेश मंत्रालय ने यह घोषणा कर दी कि क़तर की राजदूत ने तेहरान में ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ से मुलाक़ात की है। यह मुलाक़ात बुधवार को हुई जिसमें आपसी रूचि के मामलों में सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया।
एसा लगता है कि क़तर के विदेश मंत्रालय ने इस ख़बर को जारी करके अमरीका की मांग पर अपना जवाब दे दिया है।