ईरान परमाणु समझौता: एक झलक में समझे पुरी हक़ीक़त, अमेरिका ने क्यों तोड़ा?

इस समय ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले और ईरान की उसे चालू रखने की धमकी के बाद पूरी दुनिया में हलचल पैदा हो गई है।

अमेरिका के इस फैसले का असर भारत समेत कई देशों में पड़ने जा रहा है और ऐसा माना जा रहा है कि इससे आनेवाले दिनों में और तल्खी बढ़ सकती है। लेकिन, अब सवाल ये उठता है कि क्या है परमाणु कार्यक्रम और क्यों अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु कार्यक्रम से खुद को अलग होने का फैसला किया है।

दरअसल, परमाणु कार्यक्रम के तहत किसी भी देश को उसके शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के साथ वह उसका उत्पादन कर अपना परमाणु कार्यक्रम चला सकता है। इसमें परमाणु ऊर्जा का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए होता है। लेकिन, कई देश इसका चोरी छुपे इस्तेमाल बम बनाने के लिए करते हैं।

अमेरिका जब ईरान के साथ परमाणु समझौता से अलग हुआ है तो उसके बाद भारत ने बिल्कुल सधा हुआ जवाब देते हुए सभी पक्षों से अपील की और कहा कि परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के ईरान के अधिकार का सम्मान करें और सभी विवादास्पद मुद्दों का बातचीत एवं कूटनीति से शांतिपूर्ण समाधान निकालें।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि भारत का हमेशा से रुख रहा है कि परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के ईरान के अधिकार का सम्मान करते हुए उसके परमाणु मसले का बातचीत एवं कूटनीति से शांतिपूर्ण समाधान निकाला जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण है और यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हित में भी है। सभी पक्षों को संयुक्त समग्र कार्ययोजना के कारण उपजे मुद्दों के समाधान के लिए रचनात्मक प्रयास करने चाहिए।

दरअल, जुलाई 2015 में बराक ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के साथ मिलकर ईरान ने परमाणु समझौता किया था। इस समझौते के अनुसार, ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम के भंडार को कम करना था और अपने परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिए खोलना था।

इसके बदले में उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में आंशिक रियायत दी गई थी। वहीं राष्ट्रपति ट्रंप का आरोप है कि ईरान ने दुनिया से छिपकर अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा। वह किसी बड़ी साजिश को अंजाम दे रहा था।

संयुक्त राष्ट्र की परमाणु वॉचडॉग अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने अपनी तिमाही रिपोर्ट मंश ईरान के परमाणु कार्यक्रम को समझौते के अनुसार सही ठहराया है।

रिपोर्ट में कहा है कि ईरान वर्ष 2015 में बड़े देशों के साथ किये गये परमाणु समझौते की शर्तों के अनुसार ही अपने परमाणु कार्यक्रमों को चला रहा है। आईएईए की रिपोर्ट के अनुसार ईरान ने समझौते के अनुसार यूरेनियम परमाणु भंडार की न्यून संवर्धन की सीमा को पार नहीं किया है और तय सीमा 3.67 प्रतिशत से अधिक यूरेनियम संवर्धन नहीं किया।

दरअसल परमाणु बम बनाने के लिए कई चरणों से गुज़रना पड़ता है। यूरेनियम धातु का खनन, कुटाई-पिसाई और फिर सफ़ाई के बाद इसे केक यलो में परिवर्तित किया जाता है, जिसे बाद में गैस की शक्ल में परिवर्तित किया जाता है।

यूरेनियम हस्का फ्लोराइट, जिसके बग़ैर यूरेनियम का संवर्धन संभव ही नहीं, के साथ-साथ यूरेनियम डाईऑक्साइड की रॉड बनाकर उसे परमाणु बिजलीघर के लिए ईंधन के तौर पर तैयार किया जाता है।

परमाणु हथियार बनाने के लिए यूरेनियम के अधिक सीमा तक संवर्धन की आवश्यकता होती है और गैस (यूएफबी) को धातु (मेटल) की शक्ल दी जाती है और इन्हीं धातु छड़ों को हथियारों में प्रयोग के लिए उपयुक्त बनाया जाता है और आख़िर में परमाणु हथियारों को चलाने के लिए उनका भूमिगत परीक्षण किया जाता है।

साभार- ‘हिंदुस्तान लाइव’