उच्च शिक्षित लोग भी जातिवादी मानसिकता से उबर नहीं पाये हैं- मीरा कुमार

बेंगलुरु। राष्ट्रपति पद की विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार ने राष्ट्रपति चुनाव को दो दलितों के बीच ‘संघर्ष’ करार देते हुए देश में चल रही बहस पर आज खेद व्यक्त किया और कहा कि इससे पता चलता है कि उच्च शिक्षित वर्ग भी जातिवादी मानसिकता से अब तक उबर नहीं पाया है।

कुमार ने कांग्रेस और जनता दल (सेकुलर) विधायकों से अपने पक्ष में मतदान करने की अपील करने के बाद यहां संवाददाताओं से कहा कि इस तरह की बहस होना शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि मैं बहुत चिंतित हूं कि ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन मैं इस बात से खुश भी हूं कि ऐसी बहस से स्पष्ट हो गया है कि 2017 में जब देश आधुनिक काल में प्रवेश कर चुका है तब भी लोगों की सोच कैसी है।

उच्च शिक्षित लोग भी जातिवादी मानसिकता से उबर नहीं पाये हैं। मैं यह बहुत पीड़ा के साथ अनुभव कर रही हूं। मैं चिंतित हूं कि क्यों ऐसा होता चला आ रहा है। उन्होंने कहा कि इस तरह के सवाल इससे पहले के राष्ट्रपति चुनावों में क्यों नहीं उठे जब उच्च समुदायों के लोग उम्मीदवार थे। इससे पहले के चुनावों में इस तरह की बहस नहीं हुई और लोग राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बारे में ही चर्चा करते थे।

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि इससे पहले लोग राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की जाति के बारे में चर्चा नहीं करते थे। उम्मीदवार के चरित्र,अनुभव, योग्यता आदि की चर्चा की जाती थी। लोग कभी यह बहस नहीं करते थे कि उम्मीदवार किस जाति का है।

उन्होंने कहा कि लेकिन जब मैं और राम नाथ कोविंद चुनाव के लिए खड़े हुए तो जाति को लेकर बहस शुरू हो गई और इसके अलावा कोई अन्य बातों की चर्चा हीं नहीं करता। आज हम कहां खड़े हैं। सभी लोग समाज और राष्ट्र की तरक्की चाहते हैं,लोग सुविधाओं में सुधार चाहते हैं।

मीरा कुमार ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी सोच व्यापक हो और यह जाति आधारित न हो लेकिन हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार ने कहा कि जातियों के बीच अभी भी बहुत भेदभाव हैं। दलितों को निम्न और तुच्छ माना जाता है।

यह बहुत दुखद और शर्मनाक है कि देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित चुनाव का ‘दलितीकरण’ कर दिया गया है। देश को इस तरह की सोच से बाहर निकलना चाहिए। उन्होंने कहा कि दलितों के साथ हो रहे भेदभाव और उन पर किए जा रहे अत्याचार के विरुद्ध लोगों का खड़ा होना तो स्वागत योग्य है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में जाति के मुद्दे को लाना कैसे उचित हो सकता है।