उत्तर प्रदेश चुनाव स्पेशल: सपा-बसपा की लड़ाई में ओवैसी….

लखनऊ: उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ पर सिआसत के मुद्दे पर अंदाज़ा लगाना बड़ा मुश्किल रहता है लेकिन फिर भी कुछ हिम्मत जुटाते हुए हमने प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कुछ लोगों से पता करने की कोशिश की कि प्रदेश में किसकी सिआसत कामयाब हो रही है और किसकी सियासी चालें बेकार जा रही हैं. लखनऊ शहर की मशहूर लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्रों से हमने ये पूछने की कोशिश की कि यहाँ किसकी फ़िज़ा है? जैसे ही हमने सवाल पूछा एक छात्र बोल पडा कि “मायावती मुख्यमंत्री बनेंगी”, फ़ौरन ही उसका एक साथी बोल पड़ा.. “कहीं नहीं, अखिलेश ही जीतेंगे”, इस मुद्दे पर वो अपनी अपनी कहते रहते इससे पहले हमने कुछ शांत छात्र छात्राओं से पूछा, उनकी प्रतिक्रया मिली जुली सी मालूम दे रही थी हालाँकि कुछ भाजपा के साथ जाने की बात कर रहे थे लेकिन फिर वहाँ अखिलेश और मायावती का मुद्दा उभर गया और फिर छात्रों में दो गुट बन गए और अच्छी बहस होने लगी. एक पक्ष मायावती के कामों को याद करने लगा तो दूसरा समाजवादी पार्टी की विचारधारा की बड़ाई करने लगा. ये बहस कुछ चाय पे चर्चा की तरह रही और इसमें कोई भी पक्ष झुकने को तय्यार नहीं हुआ और आख़िर दोनों ही पक्षों ने अपने अपने नेताओं की जीत का भरोसा मुझे दिला दिया.

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बहरहाल, थोडा शहर की तरफ़ आये तो विकासनगर में लोगों ने बीजेपी के पक्ष में वोट करने की बात कही जबकि खुर्रमनगर में लोगों ने समाजवादी पार्टी को जिताने की ज़्यादा वकालत की. हालाँकि इन इलाकों में अच्छी तादाद में बसपा के लोग भी दिखाई दिए तो कुछ ऐसे भी थे जो कांग्रेस के कामों की तारीफ़ कर रहे थे. चाय की दूकान पे मौजूद कुछ लड़कों ने ओवैसी के हक़ में वोट करने की बात भी कही और वो दावा करने लगे कि सिर्फ़ ओवैसी ही मुसलमानों और दलितों का भला कर सकता है.

शहर की इस छोटी सी चहलक़दमी में मेरे साथ मेरे मित्र प्रशांत मिश्र और ज्योति राय भी थे, मेरे ये दोनों ही मित्र राजनीति में ख़ासी बहस किया करते हैं मौक़ा पा के ये भी अपनी अपनी बात करने लगे और दोनों ही दोस्त अपनी अपनी विचारधारा को लेकर दोस्ताना बहस करने लगे, प्रशांत जहाँ इस बात पे क़ायम थे कि समाजवादी पार्टी ही चुनाव जीतेगी और ओवैसी के चुनाव में आने से सपा को फ़ायदा होगा वहीँ ज्योति का कहना था कि वो वोट कैंडिडेट के बेसिस पे देंगे लेकिन ये ज़रूर दावा करते हैं कि ओवैसी के चुनाव में आने से सपा को ख़ासा नुक़सान होगा क्यूंकि समाजवादी को ही मुस्लिम वोट अधिक करता है और ओवैसी इसी वोट पे निशाना लगाए हैं. इस बात से असहमत होते हुए प्रशांत कहते हैं कि नहीं “जय मीम, जय भीम” का नारा लेकर चलने वाले ओवैसी सबसे अधिक नुक़सान  बसपा का पहुंचाएंगे.

कुछ इसी तरह का माहौल हमें शहर में देखने को मिल रहा है लेकिन मोदी लहर अब बिलकुल ख़त्म हो चुकी है लोग केंद्र सरकार से ख़ासे नाराज़ हैं और इसका फ़ायदा शायद समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी दोनों को ही मिलने की उम्मीद है. कांग्रेस भी पहले से बेहतर स्थिति मालूम दे रही है वहीँ अगर मीम की बात करें तो चर्चा में शामिल होकर इस पार्टी ने एक लड़ाई ज़रूर शुरू कर दी है.

कुल मिला कि ये बहस यूं ही चलती रही और उम्मीद है कि आगे भी चलती रहेगी.

(अरग़वान रब्बही)