उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को गठबंधन की जरूरत क्यों पड़ी?

नई दिल्ली। आखिरकार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का गठबंधन समाजवादी पार्टी से हो ही गई। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह गठबंधन चुनाव जीत भी सकती है। मगर एक सवाल जरूर है, आखिर कांग्रेस की वोट बैंक कहा गायब हो गया। कहा जाता है कि उत्तर भारत में पार्टी ने मुस्लिम समुदाय का समर्थन लगभग खो दिया।

इसमें 1984 के दौरान दरवाजे खोलने और फिर 1989 में शिलान्यास कार्य को मंजूरी देना मुख्य वजहें थी। इसके बाद रही सही कसर कांग्रेस के नेतृत्व वाली नरसिम्हा राव सरकार के दौरान बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना ने पूरी कर दिया। इस घटना के बाद मुस्लिम वोटबैंक समाजवादी पार्टी की ओर खिसक गया। यही वजह है कि रविवार को सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन के पीछे अहम वजह यही है कि कांग्रेस पार्टी एक बार फिर मुस्लिम वोटरों को अपने साथ जोड़ना चाहती है। बीजेपी को रोकने के लिए पार्टी ने सेक्युलर ताकतों को एक करने के लिए कदम उठाया है।

कांग्रेस की जमीन खिसकने के पीछे एक अहम वजह क्षेत्रीय पार्टियों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का उभार है। इसमें समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम वोटरों को अपने साथ जोड़ लिया, दूसरी ओर से बहुजन समाज पार्टी ने दलित वोटरों को अपने साथ जोड़ लिया। कांग्रेस के कमजोर होने की दूसरी वजह नेतृत्व कमजोर होना रहा। राजीव गांधी के निधन के बाद के बाद पार्टी में नेतृत्व का संकट रहा।

सोनिया गांधी के हाथों में नेतृत्व जाने से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केजरी रहे। यूपी की जनता इनसे खुद को जोड़ने में असमर्थ रही। दूसरी ओर राज्य में भी पार्टी का कोई बड़ा नेता सामने नहीं आया। जिससे कांग्रेस का जनाधार खिसका। 1997 में सोनिया के हाथों में पार्टी का नेतृत्व आने के बाद इसकी स्थिति में सुधार नजर आया। हालांकि यूपी में पार्टी की स्थिति को सुधारने की कवायद कामयाब नहीं हो सकी।

करीब 20 साल के बाद आखिरकार कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में गठबंधन की रणनीति समझ में आई। पार्टी ने बीजेपी की प्रदेश की सत्ता से दूर रखने के लिए समाजवादी पार्टी से गठबंधन की रणनीति को आगे बढ़ाया। इसकी वजह भी थी कि बसपा सुप्रीमो मायावती चुनाव पूर्व गठबंधन को तैयार नहीं थी, सपा का नेतृत्व कर रहे यादव परिवार में झगड़ा चल रहा था।

मुलायम सिंह यादव लगातार कांग्रेस के खिलाफ थे, ऐसे में जब अखिलेश यादव के हाथ में सपा का नेतृत्व आया तो कांग्रेस की ओर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने बातचीत शुरू की और आखिरकार गठबंधन फाइनल हो सका। कुल मिलाकर अब कांग्रेस पार्टी को यही सीधा रास्ता नजर आया कि यूपी की सत्ता में वापसी कर सकें।