नागराजा राव, एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए और परवरिश के दौर ने उन्हें इस क़दर कट्टर बना दिया कि वो इस्लाम और मुसलमानों से सख्त नफ़रत करने लगे. 18 साल की उम्र में क़ुरान पढने के बाद जब उन्हें ये महसूस हुआ कि जो बातें उन्हें बतायी गयी वो सब एक वहेम है और इससे सच्चाई का कोई वजूद ही नहीं. RSS के लिए भी काम कर चुके नागराजा राव से उमर राव होने के सफ़र को बयान करते हुए उमर कहते हैं कि मुझे अज़ान की आवाज़ से इस क़दर चिढ़ थी कि संगीत को इतनी तेज़ आवाज़ में बजाता था कि अज़ान सुनाई ही ना पड़े. इस्लाम से उनकी असल पहचान तब हुई जब उनकी माँ ने गर्मियों की छुट्टी में उन्हें एक मुस्लिम कंपनी में काम करने के लिए कहा, अपने घर वालों को परेशान ना करने के मकसद से मैंने एक ग़ैर मुस्लिम कंपनी में काम करने का फ़ैसला किया. असल में उन्हें इस बात को लेकर ज़्यादा चिढ़ थी कि जो भी मुस्लिम कम्पनी में काम करते थे, अक्सर मुसलमान हो जाते थे.
मुसलमानों का मज़ाक़ उड़ाने के ऐतबार से उन्होंने क़ुरान पढने का फ़ैसला किया. क़ुरान पढने के बाद उन्हें पता चला कि अभी तक जो वो सोचते समझते आये थे सब ग़लत था.
राव ने बताया कि जब मैंने अपनी माँ से कहा कि वेदों में तो मूर्ती पूजा की मनाही है, फिर क्यूँ करते हैं हम मूर्ती पूजा. इस पर उनकी माँ ने कहा कि हमारे बाप-दादा करते आये हैं, इसलिए हमें भी करना है.
अगले ही रोज़ उन्होंने सुरह बक़रा पढ़ी और उसमें पढ़ा कि “जब आप उनसे कहेंगे वो करो जो अल्लाह ने कहा है, तो वो कहेंगे नहीं, हम वो करेंगे जो हमारे पूर्वज करते आये हैं. ” [सुराः बक़रा 170]
ये पढ़ कर मैं हैरान रह गया और मैंने धीरे धीरे मूर्ती पूजा बंद कर दी और फिर मैं मुसलमान हो गया.