उर्दू के शायर नज़ीर अकबराबादी की यौम-ए-पैदाइश

आगरा: उर्दू के मुमताज़ शायर नज़ीर अकबराबादी जिन्होंने एक आम आदमी की ज़िंदगी को मौज़ू-ए-सुख़न बनाया था और हिन्दुस्तानी तहवारों बिलख़ुसूस दीवाली और ईद पर मुतास्सिर कुन नज़्में तहरीर की थीं। उनकी यौम-ए-पैदाइश के मौक़े पर ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किया गया।

नज़ीर अकबराबादी का मक़बरा यहां ताज-महल के क़रीब ताज गंज में वाक़्य है जो कि साल भर सुनसान रहता है। लेकिन यौम-ए-पैदाइश के मौक़े पर 18 वीं सदी के अवामी शायर को गुलहाए अक़ीदत पेश करने के लिए एक बड़ी क़तार लगाई जाती है।

जहां का माहौल फूलों की ख़ुशबू से मुअत्तर होजाता है। आगरा डेवलप्मेंट‌ अथॉरीटी ने मक़बरे की हिफ़ाज़त के लिए एक साएबान नसब कर दिया है। नज़ीर अकबराबादी ने अपनी शायरी के ज़रिये आगरा को एक नई शनाख़्त अता की और वो मुसलमानों के साथ हिंदूओं में भी मक़बूल थे उन्होंने ईद और तहवारों के अलावा कबूतरबाज़ी और पतंग बाज़ी पर मुनफ़रद नज़्में लिखी थीं।

यौम-ए-पैदाइश के मौक़े पर 1930 से बसंत मेला मुनाक़िद किया जाता है। जिसमें शारा-ए-किराम नज़ीर की नज़्में सुनाते हैं। उनकी मशहूर गीतों में सब ठाट पड़ा रह जाएगा। जब लड़ चलेगा बंजारा और रोटी और मुफ़लिसी शामिल हैं। सदर बुरज मंडल हेरिटेज कंज़र्वेशन सोसाइटी सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि मिर्ज़ा ग़ालिब , मीर और नज़ीर उर्दू अदब के सतून थे जिनका आगरा से भी ताल्लुक़ था।