उर्दू तो मोहब्बत की ज़ुबान…

उर्दू मोहब्बत की ज़ुबान है जिसका अदीब (Literature) भी बेहद अफज़ूदा है। यह सिर्फ मुसलमानों में नहीं बल्कि गैर मुसलमानों में भी मकबूल है। उर्दू शायरी की बात ही निराली है। हिंदूओं में भी खासी मकबूल हो चुकी उर्दू और हिंदी में तालमेल जरुरी है।

उर्दू से मोहब्बत करने वाले ही उसका माकूल तरक्की कर सकते हैं। यह बातें उत्तरप्रदेश के गोरखपुर वाकेय् उर्दू सरकारी कॉलेज के महका के सदर डॉ. कलीम कैसर ने कही हैं। डॉ. कैसर गुलशन-ए-अदब जबलपुर और कौमी काउंसिल बराए फरोग उर्दू नई दिल्ली की तरफ से मुनाकिद उर्दू भाषा व साहित्य की तरक्की में मध्य भारत के ताऊन के मौजू पर बोल रहे थे। अंजुमन इस्लामिया गर्ल्स कॉलेज गोहलपुर में मुनाकिद अखिल भारतीय सेमिनार में मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड के साबिक एसके मुद्दीन ने आगाज़ करते हुए कहा उर्दू मजहबी नहीं हिंदुस्तानियों की ज़ुबान है। मिठास से भरपूर उर्दू को हिंदी के साथ हर हिंदुस्तानी को बढ़ावा देना चाहिए।

ताहिर नक्काश बुरहानपुर, डॉ. महमूद शेख, प्रो. अशफाक आरिफ जबलपुर, असलम चिश्ती पुणे, अंजुम बाराम्बकी, डॉ. शफीक आब्दी बंगलौर, कशिश वारसी मुरादाबाद, शम्स तबरेजी हरियाणा ने भी अपने मजमुन पढ़े। तिलावते कुरान व नात शरीफ से सेमिनार का आगाज़ हुआ। गुलशन-ए-अदब के बाबू अनवर निजामी, शेख निजामी, शकील साजिद, शफीक अंसारी ने मेहमानो का इस्तकबाल किया।

बशुक्रिया: प्रदेश टुडे