उर्दू बहुत ख़ूबसूरत ज़ुबान है- चित्रांगदा सिंह

‘उर्दू बहुत ख़ूबसूरत ज़ुबान है, हालांकि इसका मेरा रिश्ता सीखने की स्तह पर सिर्फ आठ तालीमी घंटों का है, लेकिन जब किसी को बात करते हुए देखती/सुनती हूँ तो लगता है, सुनती ही रहूँ।’ यह ख़याल हिन्दी फिल्मों की अदाकारा चित्रांगदा सिंह के हैं।

‘हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी’ और दीगर फिल्मों की अदाकारा चित्रांगदा के बारे में कुछ दिन पहले ये ख़बर आयी थी कि वह उर्दू सीख रही है। आज वह ‘सोल्जर्स फॉर वुमेन कैम्पेन’ के लिए हैदराबाद में थीं। एक मुल़ाकात के दौरान जब उनसे पूछा गया कि आपकी उर्दू कहाँ तक पहुंची है? उन्होंने कहा कि अभी तो मैं ने उसके `साउण्ड्स’ सीख रही हूँ। यह बहुत मुश्किल ज़ुबान है। ख़ुसूसन उसका लहजा सीखना काफी कठिन है।

चित्रांगदा सिंह ने बताया कि वह उर्दू सीखने के दौरान जावेद साहब की नज्में ज़ोर-ज़ोर से पढ़ती हैं। ताकि हर्फों के म़खरज का सही अंदाज़ा हो। वह कहती हैं कि उर्दू दुनिया की ख़ूबसूरत तरीन ज़ुबान है। जब वह अपने कुछ दोस्तों को इस ज़ुबान में बात करते हुए सुनती हैं तौ ग़ौर से सुनने लगती हैं। चित्रांगदा कहती हैं, ‘शबाना आज़मी की अम्मी को मैंने बोलते हुए सुना है। वह बहुत अच्छी उर्दू बोलती हैं। हालांकि यह मुश्किल काम है, लेकिन मैं चाहती हूँ कि मैं भी वैसी ही उर्दू बोलूं।’

चित्रांगदा कहती हैं कि लखनऊ में उर्दू आज भी ज़िन्दा है, लेकिन मुंबई ने उसके साथ इन्साफ नहीं किया है।

एक सवाल के जवाब में चित्रांगदा ने कहा कि फिल्मों में औरतों के रोल अब भी उनके साथ इन्साफ नहीं करते। हाँ यह सही है कि समाज में औरत का जो हाल है, वही फिल्मों में भी है। यहाँ भी उनके साथ उसी तरह का इन्साफ होता है, जिस तरह समाज उनके साथ पेश आता है।ं उम्मीद है कि आज समाज में औरतों को देखने का नज़रिया बदल रहा है, इससे उनका मुस्त़कबिल होने की उम्मीद की जा सकती है।

चित्रांगदा 9 साल के बेटे की माँ हैं। फिल्मों में अपनी कुछ अर्से के बाद दूसरी बार सरगर्म हो गयी हैं। उन्होंने गुलज़ार की नज्मों के एक एल्बम सन सेट में भी काम किया है। बताती हैं कि उन्हें एक ऐसे रोल की तलाश है, जिसे एक बेहतर औरत के तौर पर देखा जा सके।