किसी भी क़ौम और मुल्क की तरक़्क़ी के लिए उस की नई नसल का तालीम याफ़्ता होना ज़रूरी होता है और नई नसल उस वक़्त ही तालीम याफ़्ता हो सकती है जब उसे तालीमी सहूलतें फ़राहम की जाएं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में वैसे तो हज़ारों की तादाद में प्राइमरी, अपर प्राइमरी और हाई स्कूल्स काम कर रहे हैं जिन में से मुतअद्दिद स्कूलों की हालत बेहतर नहीं है।
इस के बावजूद ये बात यक़ीन से कही जा सकती है कि उर्दू मीडियम स्कूल्स की हालत इसी तरह ख़स्ता है तरक़्क़ी के इस दौर में शहर के बाअज़ मुक़ामात पर ऐसे स्कूल्स भी काम कर रहे हैं जहां तलबा के लिए किसी किस्म की बुनियादी सहूलत नहीं।
पीने के पानी की अदम दस्तयाबी एक मसअला बना हुआ है हद तो ये है कि इस लिए कि बैतुल ख़ुला में मुबैयना तौर पर पानी नहीं है तलबा को बैठने के लिए फ़र्नीचर नहीं है वो कटी फटी चटाईयों पर बैठे तालीम हासिल कर रहे हैं।
बिलकुल इसी तरह की सूरते हाल गवर्नमेंट हाई स्कूल उर्दू और इंग्लिश मीडियम लंगर हौज़ हाशिम नगर गोलकुंडा मंडल की आर सी सी इमारत में काम कर रहे प्राइमरी स्कूल की है। अब सवाल ये पैदा होता है कि आख़िर इन हालात में बच्चे किस तरह तालीम हासिल करेंगे और तरक़्क़ी के मनाज़िल तय करेंगे?
दफ़्तर सियासत को जब इस स्कूल की हालते ज़ार के बारे में औलियाए तलबा ने वाक़िफ़ कराया तब एडीटर सियासत जनाब ज़ाहिद अली ख़ान की हिदायत पर दक्कन वक़्फ़ प्रोटेक्शन सोसाइटी के वफ़्द ने इस के सदर जनाब उसमान बिन मुहम्मद अलहाजरी की क़ियादत में स्कूल का दौरा किया। और बच्चों से बात की।