उर्दू शाइरी के रॉकस्टार जौन ईलिया की “गुमान” हिंदी में रिलीज़

“अब नहीं कोई बात ख़तरे की,
अब सभी को सभी से ख़तरा है”

गुमान, जो हाल ही में Anybook पब्लिकेशन्स ने देवनागरी स्क्रिप्ट में छापी है जौन ईलिया की पहली हिंदी किताब है. यूं तो उनका इंतिक़ाल 2002 में हो गया है लेकिन उनकी शाइरी ने अब जो रंग पकड़ना शुरू किया है वो लाजवाब है. नौजवान तबक़ा उनकी शाइरी का दीवाना हो रहा है, जो शोहरत उनको ज़िंदा रहते ना मिल सकी वो अब उनके क़दम चूमने को बेताब है. ये सिलसिला वैसे सोशल मीडिया से ही शुरू हुआ था, पहले तो इस पाकिस्तानी शाइर की शाइरी को पढने वाले या समझने वाले बहुत सीमित थे लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफार्म के आ जाने से उनकी शाइरी मंज़र-ए-आम पर आ गयी है. 14 दिसम्बर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में पैदा हुए जौन भारत के बँटवारे के बाद पाकिस्तान में रहने लगे. उन्हें कई ज़बानों की समझ थी और इस बारे में वो बहुत संजीदा भी थे. मशहूर कालमनिस्ट ज़ाहिदा हिना से उनकी शादी हुई और फिर तलाक़ भी हुआ. वो अजीब थे, उनको समझना मुश्किल भी था लेकिन कभी कभी लगता है इतना मुश्किल भी नहीं रहा होगा. उनकी शाइरी की ज़बान बहुत आसान है, बहुत पेचीदा बात बहुत आसानी से कह जाते हैं.मिसाल के तौर पर ये शेर..“हमने देखा तो हमने ये देखा / जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है”

अच्छा, जो बात हम वो उनकी इमेज के बारे में है, पिछले सालों में उनकी शाइरी को जिस तरह से फेसबुक और ट्विटर के ज़रिये लोगों ने पढ़ा है वो कमाल है. उनकी तस्वीर को अलग अलग तरीक़े से एडिट कर के उसमें कुछ नया जोड़ कर, उसमें उनका कोई शे’र लिख कर शेयर करना बहुत आम हो गया है. उनके चाहने वाले रोज़ बढ़ रहे हैं और भारत में उनके चाहने वाले कुछ ज़्यादा ही तेज़ी से बढ़ रहे हैं. उर्दू जानने वाले तो उनकी शाइरी किताबों में पढ़ ही चुके हैं लेकिन हिंदी के जानने वालों के लिए Anybook पब्लिकेशन ने जौन की “गुमान” छाप दी है. सही मायनों में ये हिंदी जानने वाले और उर्दू ना जानने वाले जौन के चाहने वालों के लिए एक नायाब तोहफ़ा है. जौन के कुछ शे’र और…

“कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो,
कि रूठते हो कभी और मनाने लगते हो”

“अब फ़क़त याद रह गयी है तिरी
अब फ़क़त तेरी याद भी कब तक”

हिंदी में गुमान ख़रीदने के लिए आप Anybook पब्लिकेशन्स से कांटेक्ट कर सकते हैं.

Anybook Publications
20, पतपड़गंज, नई दिल्ली
मोबाइल नंबर: 099716 98930