उर्दू ज़बान इज़हार-ए-ख़्याल का बेहतरीन ज़रिया : शम्सुलरहमन फ़ारूक़ी

नाविल निगार नक़्क़ाद और शायर शम्सुलरहमन फ़ारूक़ी जो उर्दू अदब की एक नामवर शख़्सियत हैं ने आज एक अहम बयान देते हुए कहा कि ज़बान जो इज़हार-ए-ख़्याल का एक ज़रिया है अब नाराज़गी ज़ाहिर करने का ज़रिया भी बन चुकी है।

दुनिया की मुख़्तलिफ़ ज़बानों के बारे में कोई ये नहीं कह सकता कि फ़ुलां फ़ुलां ज़बान उसकी मिल्कियत है कई ऐसे मुसन्निफ़ीन हैं जो ये नहीं चाहते कि उनकी तस्नीफ़ात का तर्जुमा सिवाए उनके कोई दीगर अदबी शख़्स करे अफ्सोसनाक बात ये है कि ज़बान भी अब मिल्कियत और जायदाद के ज़ुमरे में आगई है जबकि ऐसे लोगों को एक दूसरे से मरबूत करने का ज़रिया होना चाहिये था और ये थी भी! शम्सुलरहमन फ़ारूक़ी ने हिंदुस्तानी लिसानी फ़ैस्टीवल के तीसरे ऐडीशन में शिरकत के दौरान ये बात कही जो इंडिया हैबिटाट सैंटर में जारी है।

शम्सुलरहमन फ़ारूक़ी ने हाल ही एक नाविल शाय किया है जिस का नाम है दी मेरर आफ़ ब्यूटी जो उर्दू के मशहूर मारूफ़ शायर दाग़ देहलवी की वालिदा वज़ीर ख़ानम की ज़िंदगी और उस दौर की तर्जुमानी करता है ख़ुसूसी तौर पर 19 वीं सदी की दिल्ली की ख़ूबसूरत अक्कासी की गई है।

ये नाविल शम्सुलरहमन फ़ारूक़ी की 2006 में तहरीर करदा उर्दू नाविल का अंग्रेज़ी तर्जुमा है। उन्होंने कहा कि उनका ताल्लुक़ आज़म गढ़ से है और ये उन केलिए एक इंतिहाई मायूसकुन बात है कि भोजपोरी जैसी शीरीं ज़बान को आज तक एक मुकम्मल ज़बान का दर्जा नहीं दिया गया है। इस लिटरेचर फ़ैस्टीवल में साहित्य कल्ला एकेडेमी विनर विनोद कुमार शुक्ला भी मौजूद थे।