उलेमा का टीवी पर बहस करना गैर इस्लामी- दरगाह आला हज़रात

लखनऊ। मुसलमान और इस्लाम के नाम पर टीवी पर होने वाली बेसिर पैर की बहसों में शामिल होकर खुद को चमकाने कोशिश करने वाले उलमा के लिए बुरी खबर है। बरेली की दरगाह आला हज़रात के दारुल इफ्ता ने इसे गैर शरई करार दिया है।
दारुल इफ्ता के फतवा मरकज़ी के मुफ़्ती मोहम्मद नाज़िम अली कादिर का यह फतवा उस वक़्त आया है, जब आलिमों के कुछ जाने पहचाने चेहरे आजकल मोदी सरकार के करीब आने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोगों को गाहे बगाहे प्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री से मुलाकात करते देखा जा सकता है। यही लोग टीवी चैनलोँ पर मुसलिम मसले पर सरकार का दबे और खुले तौर पर बचाओ करते में लंबी लंबी तकरीरें झड़ते हैं। मुफ़्ती मोहम्मद कहते हैं यह नाजायज़ है। उन्होंने अपने फतवे में लिखा है कि टीवी वीडियो जायज़ नहीं। इसपर तकरीर और बहस करना भी नाजायज़ है। इस बारे में तफ़सील से जानने के लिए उन्होंने तजुशशरिया मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान की किताब “टीवी वीडियो का ऑपरेशन और शरई हुक्म” का अध्ययन करने की भी सलाह दी है। इस पुस्तक में इस्लाम की रोशनी में टीवी पर बहस या तकरीर करने को हराम करार दिया है। इस बारे में जानकारी हांसिल करने के लिए शाहाबाद के गुलफाम अंसारी ने दारुक इफ्ता में सवाल डाला था। जिसमें उन्होंने ने पूछा था कि उलमा हज़रात टीवी पर तकरीर किया करते एवं बहस में हिस्सा लेते हैं, जो शरई ऐतबार से कितना सही है। कुरआन, हदीस की रौशनी में इसे कैसे देखा जाए। इस बारे में दारुल इफ्ता के मुफ़्ती गुलाम मुस्तफा कहते हैं कि यूँ तो इस मुद्दे पर पूरी बहस हो सकती है, पर तस्वीर खींचना खिंचवाना इस्लाम में हराम है। उन्होंने टीवी को भी वाहयात बताया। यह नाच गाने का माध्यम है। इस लिए भी उलमा को टीवी पर नहीं आना चाहिए। बताया गया कि फतवा जारी करने से पहले आला हज़रत अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी,उनके पीर हज़रात सय्यद मुस्तफा हसन मियां खानकाह बरकातीय।, मारहरा शरीफ, मुफ़्ती आज़म हिंद मुस्तफा रज़ा खान, हज़रत तहसीन रज़ा खान सहित दुनिया भर के इस्लामी विद्वानों के फतवे का अध्ययन किया गया है।

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